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मन-शक्ति, स्वरूप और साधना : एक विश्लेषण
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५२. वही, ३२/७१ ५३. वही, ३२/७२ ५४. वही, ३२/७५ ५५. वही, ३२/७६ ५६. वही, ३२/७९ ५७. वही, ३२/८० ५८. वही, ३२/८४ ५९. योगशास्त्र (हेमचन्द्र) संपा०, मुनि समदर्शी, प्रका०, श्री ऋषभचन्द
जौहरी किशन लाल जैन, दिल्ली १९६३, ४/२८-३३। ६०. गीता, संपा०, स्वामी प्रभुपाद, प्रका०, भक्ति वेदान्त बुक ट्रस्ट,
बम्बई १९९३, २/६०-६७, ३/४१। ६१. धम्मपद, अनु०, राहुल सांकृत्यायन, प्रका०, बुद्ध बिहार, लखनऊ
१/७-८। उत्तराध्ययनसूत्र, संपा०, साध्वी चन्दना, प्रका०, वीरायतन प्रकाशन,
आगरा, १९७२, ३२/१००। ६३. वही, ३२/१०१। ६४. गीता, ३/४३ ६५. गीता, ३/६ ६६. गीता, २/५९ ६७. उत्तराध्ययनसूत्र, ३२/१०९ ६८. गीता, संपा०, स्वामी प्रभुपाद, प्रका०, भक्तिवेदान्त बुक ट्रस्ट, बम्बई
१९९३, २/६४। ६९. मणो साहसिओ भीमो दुट्ठसो परिधावई।
-उत्तराध्ययनसूत्र, संपा०, साध्वी चन्दना, प्रका०, वीरायतन प्रकाशन, आगरा १९७२, २३/५८
७०. संरम्भ-समारम्भे आरम्भे य तहेव य।
मणं पवत्तमाणां तु नियत्तिज्ज जयं जई।। ---उत्तराध्ययनसूत्र, संपा०, साध्वी चन्दना, प्रका०, वीरायतन
प्रकाशन, आगरा १९७२, २४/११ ७१. गीता, संपा०, स्वामी प्रभुपाद, प्रका०, भक्तिवेदान्त बुक ट्रस्ट, बम्बई
१९९३, ६/३४। ७२. वही, ६/३५। ७३. मन:संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ।-वही, ६/१४। ७४. धम्मपद, (चित्तवर्ग), अनु०, राहुलसांकृत्यायन, बुद्ध विहार,
लखनऊ, ३३-३५। ७५. योगशास्त्र (हेमचन्द्र), ३६-३९। ७६. प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति।
-गीता, संपा०, स्वामी प्रभुपाद, प्रका०, भक्तिवेदान्त बुक ट्रस्ट,
बम्बई, १९९३, ३/३३। ७७. सर्वावस्या एवं राजर्षि! भूतजातैर्जगत्त्रये।
देवादेवारपि देहोज्ञयं द्वयात्मैव स्वभावतः। अज्ञमस्वथ तज्ज्ञ वा यावत्स्वान्तं शरीरकर्म।।
-योगवासिष्ठ, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १९१८,१०५/१०९। ७८. तथा तथा प्रवर्तेत यथा न क्षुभ्यते मनः।
संक्षुब्धे चित्तरत्ने तु सिद्धिर्नैव कदाचन।।
प्रज्ञोपायविनिश्चय,५/४० (उद्धृत बोधिचर्यावतार, भूमिका),पृ०२०। ७९. बोधिचर्यावतार, भूमिका, पृ० २० । ८०. विशेष जानकारी के लिये देखिये-गुणस्थानारोहण। ८१. योगशास्त्र, संपा०, मुनि समदर्शी, प्रका०, श्री ऋषभचन्द्र जौहरी,
किशनलाल जैन, दिल्ली १९६३, १२/३३-३६।
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