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________________ ८३ डॉ सागरमल जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व उनके उद्धरण दिये गये हैं ? ५. क्या ग्रन्थकार श्वेताम्बर आगमों में उपलब्ध महावीर के गर्भापहार, विवाह आदि तथ्यों का उल्लेख करता है ? ६. क्या ग्रन्थकार ने अपने गण अन्वयादि का उल्लेख किया है और वे गण क्या यापनीयों से सम्बन्धित हैं ? ७. क्या उस ग्रन्थ का सम्बन्ध उन आचार्यों से है, जो श्वेताम्बर और यापनीय दोनों के पूर्वज रहे हैं ? ८. क्या ग्रन्थ में ऐसा कोई विशिष्ट उल्लेख है, जिसके आधार पर उसे यापनीय परंपरा से सम्बन्धित माना जा सके ? ९. क्या उस ग्रन्थ में क्षुल्लक को गृहस्थ न मानकर अपवाद लिंगधारी मुनि कहा गया है ? १०. क्या उस ग्रन्थ में रुग्ण या वृद्ध मुनि को पात्रादि में आहार लाकर देने का उल्लेख है ? उपरोक्त कसौटी को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक ने कितने व्यवस्थित तरीके से एवं तर्कपुरस्सर ढंग से इस सम्बंध में विचार किया है। अचेलकत्व एवं सचेलकत्व के सम्बन्ध में भी उन्होंने ऐतिहासिक, भौगोलिक परिस्थितियों के साथ-साथ आधार भूत ग्रंथों, अभिलेखों एवं पुरातात्त्विक सामग्रियों के आधार पर जो तलस्पर्शी विवेचना की है वह ध्यान देने योग्य है । इस प्रकार से डॉ० सागरमल जैन ने यापनीय संघ के विषय में एक विशालकाय और अधिकृत ग्रंथ प्रदान किया है इसके लिए उन्होंने जैन और बौद्ध परम्परा के कितने ग्रंथों का अध्ययन किया होगा यह जानकर आश्चर्य होता है उन्होंने इस ग्रन्थ में अपने विषय प्रतिपादन को तो यथार्थ न्याय प्रदान किया ही है किन्तु इसके साथ ही पाठकों के लिए विविध संदर्भो में विपुल सामग्री भी उपलब्ध करा दी है, इन सबमें जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात है वह यह कि वे अपने विवेचन में कहीं भी साम्प्रदायिक अभिनिवेश से भ्रमित नहीं हुए हैं। उनकी उदार एवं मध्यस्थ दृष्टि उन्हें एवं उनके ग्रंथ को गौरव प्रदान करती है उनके इस अवदान के लिए वे निश्चय ही हमारे अभिनन्दन के अधिकारी हैं। पूर्व अध्यक्ष, गुजराती विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय "जैनधर्म और तान्त्रिक साधना"* समीक्षक - प्रो० कमलेश दत्त त्रिपाठी आगमिक तान्त्रिक दर्शन एवं साधना समस्त भारतीय दार्शनिक धार्मिक परम्परा का सामान्य दाय है । वैदिक एवम् आगमिक परम्पराओं के अन्तःसम्बन्ध का विवेचन तथा उनकी परस्पर विरुद्ध अथवा पूरक स्थिति पर विचार आधुनिक भारत-विद्या-विषयक अध्ययन का रोचक क्षेत्र रहा है । इसी प्रकार जैन एवं बौद्ध दर्शन एवं धर्म के अनुशीलन में भी आगमिक-तान्त्रिक पक्ष पर विचार विद्वानों को आकृष्ट करता रहा है। वैष्णव, शैव एवं शाक्त सम्प्रदायों की ही भाँति बौद्ध एवं जैन परम्पराओं में आगमिक-तान्त्रिक स्थिति का पर्सालोचन होता रहा है, किन्तु “जैनधर्म और तान्त्रिक साधना" शीर्षक से प्रस्तुत समीक्ष्य ग्रन्थ डॉक्टर सागरमल जैन की एतद्विषयक गवेषणा का एक ऐसा सुफल है, जो जैन तान्त्रिक साधना की साङ्गोपाङ्ग आलोचना प्रस्तुत करता है। ___ आगमिक-तान्त्रिक दर्शन एवं साधना को सुपरिभाषित करने का प्रयास अनेक विद्वानों ने किया है । इस प्रयत्न में 'आगम' एवं 'तन्त्र' शब्दों के निरुक्तिलभ्य अर्थ एवं आगमिक-तान्त्रिक ग्रन्थों के विवेच्य विषय अथवा प्रमेयभूत अर्थों को आधार बनाकर एक सुव्यवस्थित दृष्टि प्रदान करने का लक्ष्य रहा है। ऐसे समस्त प्रयासों का समुचित अर्थ यही है कि आगम तन्त्र वैदिक साधना मार्ग के समानन्तर या पूरक रूप में एक विशिष्ट साधना पद्वति प्रस्तुत करते हैं । यह आगमिक तान्त्रिक दृष्टि 'मुक्ति के साथ-साथ 'भुक्ति' को भी प्राप्तव्य के रूप में स्वीकृत करती है। आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ भुक्ति के अनुभव को भी दिव्यत्व की ओर ले जाती है। दूसरे शब्दों में आगम-तन्त्र का मार्ग निषेध अथवा वर्जन का मार्ग नहीं है, अपितु 'भोग' के ही उदात्तीकरण से मुक्ति की प्राप्ति का मार्ग है। 'सिद्धि' एवं 'षट्कर्म' को भी इसी दृष्टि से है । नृतत्त्वशास्त्री तन्त्र में 'यातु' और अध्यात्म' का मिश्रण देखते हैं । वस्तुत: यहाँ विश्वास एवं गहन आध्यात्मिक रहस्य-अनुभव को सम्बद्ध कर दिया गया है। आगम-तन्त्र में एक विशेष प्रकार के योग का भी उपदेश किया गया है, जो 'कुण्डलिनी-योग' के नाम से अभिहित होता है। इस योग के साथ एक रहस्यात्मक शरीर-विज्ञान जुड़ा हुआ है, जिसमें पिण्ड का ब्रह्माण्ड और दिव्य लोक के साथ एकत्व स्वीकार किया जाता है। इसीलिए तान्त्रिक साधना में साधक का उपास्य के साथ एकत्व आवश्यक है, जिसमें आन्तर पूजा का विशिष्ट स्थान है। यहाँ तक कि बाह्य-पूजा में भी देवता का अपने हृदय में ही विसर्जन किया जाता है । इस उपासना-पद्धति में विराट 'ब्रह्मांड' का 'पिण्ड' में ही लघुरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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