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आचार्य श्री आनन्दऋषि जी : अपनी नजर में
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परमश्रद्धेय आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज पंजाब प्रदेश में विहरण करते हुए मुकेरियां (जिला होशियारपुर) पधारे। वहाँ पर एक टीचर यूनियन है। पूज्यश्री के मुकेरियां पधारने पर टीचर यूनियन के अध्यापक और अध्यापिकाएँ २०-३० की संख्या में इकट्ठे होकर धर्मचर्चा करने के विचार से पूज्यश्री की सेवा में उपस्थित हुआ करते थे। मुझे अच्छी तरह से स्मरण है कि अध्यापक लोग पूज्य आचार्यदेव के सामने बड़े-बड़े गम्भीर और चिन्तनीय प्रश्न रखा करते थे, उनको विश्वास था कि ये वयोवृद्ध सन्त आज के उलझे हुए प्रश्नों को समाहित नहीं कर सकेंगे, परन्तु प्रश्न सुनने के साथ ही पूज्य आचार्यदेव तत्काल ही उनका समाधान कर देते। श्रद्धेय आचार्यदेव का मेधा-वैभव देखकर अध्यापक लोग आश्चर्यचकित रह गये । प्रायः अजैनों में यह धारणा पायी जाती है कि जैन साधु अनपढ़ और अशिक्षित होते हैं, अतः ये लोग किसी भी प्रश्न का समाधान नहीं कर सकते, पर जब आचार्यश्री के बौद्धिक चमत्कार देखे तो सबके सब बड़े प्रभावित हुए और श्रद्धापूर्ण हृदय से नतमस्तक होकर इनके मेधावैभव के गीत गाते नहीं थकते थे।
सं० २०१७ की बात होगी । जैनधर्मदिवाकर, आचार्यसम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज ने श्रमणसंघीय दूषित परिस्थितियों के कारण श्रद्धास्पद उपाचार्य पूज्य श्री गणेशीलाल जी महाराज से अपने प्रदत्त समस्त अधिकार वापस लेकर श्रमण संघ की गाड़ी को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिए एक "श्रमणसंघीय कार्यवाहक समिति" बनाई थी। दूरदृष्टा परमगम्भीर आचार्यसम्राट श्री जी महाराज ने श्रमणसंघीय अधिकार न तो अपने पास रखे और न ही श्रद्धेय उपाचार्य श्री जी महाराज के पास रहने दिए, सबके सब अधिकार इस कार्यवाहक समिति को सम्भला दिए थे। इस समिति में उपाध्याय पण्डितरत्न पूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज, श्रद्धेय प्रवर्तक श्री पन्नालाल जी महाराज, पंजाब-प्रवर्तक पण्डित श्री शुक्लचन्द्र जी महाराज, कविरत्न उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज आदि पाँच मुनिराज थे। जब इस समिति के संयोजक बनाने का प्रश्न सामने आया तो दूरदर्शी आचार्यसम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज ने हमारे सम्मानास्पद उपाध्याय पूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज को ही उसका संयोजक बनाया। आचार्यसम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के मानस में पूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज के मेधापूर्ण कार्य-संचालन पर कितना अधिक भरोसा था ? वे इनकी प्रतिभामयी योग्यता का कितना आदर किया करते थे, वह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। आचार्यप्रवर पूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज ने भी अद्वितीय योग्यता, दूरदर्शिता तथा शान्तिप्रधान नीति के माध्यम से श्रमण संघ के महारथ का कहीं गत्यवरोध नहीं होने दिया। आज भी यह महारथ अपनी अभिराम एवं अविराम गति से चलता चला आ रहा है।
४. बहुश्रुत-शास्त्रों के ज्ञाता महापुरुष को बहुश्रुत कहते हैं। स्वदर्शन और परदर्शन का मर्मज्ञ विद्वान आचार्य होता है। आत्मा, परमात्मा, जीव, अजीव, नरक, स्वर्ग, लोक और परलोक के सम्बन्ध में अपना क्या विश्वास है ? अन्य परम्पराएँ इनके सम्बन्ध में क्या मान्यताएँ रखती हैं आदि सभी तथ्यों को जो प्रामाणिक रूप से जानता है, वह व्यक्ति आचार्यपद के पावन आसन पर विराजमान हो सकता है। हमारे परमादरणीय सन्तसम्राट पूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज बहुश्रुत मुनिराज हैं । जैन तथा अजैन ग्रंथों का इन्हें पर्याप्त बोध है। जैन तथा अजैन दर्शन के गूढ़ रहस्य इनसे अनजाने नहीं हैं। जिन व्यक्तियों ने श्रद्धेय आचार्यदेव के प्रवचन सुने हैं वे भलीभांति जानते हैं कि इनके प्रवचनों में जैन, अजैन सभी ग्रन्थों के उद्धरण होते हैं, उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी भाषा के प्रासंगिक पद्य भी सुनने को मिलते हैं। यही कारण है कि पूज्य आचार्यश्री के प्रवचनों से जैनेतर जनता भी पूर्ण उत्साह, समुल्लास और श्रद्धान के साथ प्रतिलाभित होती है। इन आँखों ने स्वयं देखा है कि जब आचार्यसम्राट पूज्य श्री जी महाराज फगवाड़ा (जिला जालन्धर) में पधारे तो वहाँ एक कन्यापाठशाला में प्रवचन दिया करते थे। पूज्य आचार्यश्री अपने प्रवचनों में जब वैदिक-परम्परा के जाने-माने श्रीमद्भगवद्गीता आदि ग्रन्थों
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