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मेरे गुरुदेव
गुरुदेव के सदुपदेश से श्री सीवराज जी पारख गरडा निवासी ने बीस हजार रुपये ज्ञान खाते में दान देकर पुष्ट बना दिया था। उस रकम की आय से अनेक संत सतियों के लिये अभ्यास की व्यवस्था की गई, स्थानक भवनों के निर्माण में सहायता दी और आज भी तिलोक जैन पाठशाला पाथर्डी, श्री फतेचन्द जैन विद्यालय विचवड, श्री अमोल जैन पाठशाला कडा को सहायता मिल रही है । घोड़नदी, मिरी, आलकुटि आदि स्थानों पर पुस्तकालय स्थापित हये थे। वे भी अपने क्षेत्रों में अच्छे पुस्तकालयों में माने जाते हैं ।
गुरुदेवश्री शास्त्रज्ञ प्रवचनकार होने के साथ-साथ विद्वान कवि थे। आपने श्री धर्मपाल चरित्र, वज्रोदर सिंहोदर चरित्र, कलावती सती चरित्र, श्री मणिचन्द्र गुणचन्द्र चरित्र आदि चौपाई काव्य ग्रन्थ लिखे हैं। सामाजिक कुरूढ़ियों जैसे विवाह प्रसंगों पर रात्रि भोजन, वेश्या नृत्य, बारूद के पटाखे आदि छोड़ना तथा अन्य प्रकार के प्रदर्शनों में धन का अपव्यय करना आदि के उन्मूलन के लिये संघों को आह्वान किया और संघों ने लिखित रूप से अपने यहाँ कुरूढ़ियों का उन्मूलन करने की शपथ ली।
गरुदेव ने अपने युग में सृजन का शंखनाद किया। उनका एक ही स्वर था--निर्माण करो ! व्यक्ति निर्माण से लेकर समष्टि निर्माण के लिये उनका निर्देश होता था। महाराष्ट्र प्रान्त में आज जो कुछ भी संघों में चेतना दिख रही है, उसके सूत्रधार गुरुदेव थे। उन्होंने अमृत बीजों का वपन किया और आज की पीढ़ी उनके फलों का आस्वाद ले रही है। वे सबके थे और सब उनके थे।
साथ ही 'अभयदयाणं' आदर्श तो उनके जीवन में प्रति क्षण झलकता था। अहिंसक की सन्निधि में जन्मजात परस्पर विरोधी प्राणी भी अपना बैर त्याग देते हैं एवं हिंसक भी हिंसा से उपरत हो जाते हैं, इसके उदाहरण भी गुरुदेव के जीवन में देखे हैं। उनके अलावा भी ऐसे अनेक दृश्य व संस्मरण स्मृति में हैं जो तपःपूत संयम साधकों में स्वाभाविक रूप से पाये जाते हैं । अत: उनका उल्लेख नहीं किया है।
प्रस्तुत संस्मरण मेरे जीवन में अनुभूत हैं। आज जो कुछ भी अपने में पाता हूँ वह गुरुदेव की देन हैं । गुरुदेव आचार्य थे और आचार्य आचार आदि आठ संपदाओं के धनी होते हैं। उन्होंने आठों संपदाओं को जनहिताय, लोकहिताय वितरण कर प्राणिमात्र को कल्याण का मार्ग दिखाया है। ऐसे गुरु मेरे मन में सदैव बसे रहें । मैं तो यही चाहता हूँ
गुरो भक्ति सदास्तु मे।
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