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मेरे गुरुदेव
करने के पश्चात् ही दीक्षा के सम्बन्ध में विचार हो सकता है। बात भी यथार्थ थी, परिवार के ज्येष्ठों की शुभकार्य में आज्ञा लेना अर्थात् वरद आशीर्वाद प्रदान करने जैसा होता है।
अपनी भावना एवं गुरुदेव के संकेत को पूज्य मातुश्री से निवेदन किया। मातुश्री ने प्रत्युत्तर में कहा कि बेटा ! संयम साधना में अग्रसर होने की भावना प्रशंसनीय है, लेकिन अभी बाल्यावस्था के कारण संयम पालन में कठिनाई आ सकेगी। अतः ज्ञानाभ्यास करो।
पूज्य गुरुदेव और मातुश्री की भावना के सम्बन्ध में आज विचार करता हूँ तो एक आदर्श एवं यथार्थता के दर्शन होते हैं कि जैसे आचार के बिना ज्ञान में ओज नहीं आता है, वैसे ही ज्ञान के बिना आचार का पालन भी नहीं हो सकता है। व्यक्ति चाहे कितना भी परिश्रमी हो और उसमें कार्य करने की क्षमता भी हो लेकिन कार्य को सफल बनाने की बुद्धि न हो तो श्रम का अपव्यय होता है और कार्य उचित रूप में सम्पन्न नहीं हो पाता । दूसरी बात यह भी है कि आध्यात्मिक साधना में अग्रसर साधक के लिये साधना में अग्रसर होने के पूर्व आत्मविवेक होना प्रमुख है । अतएव किसी प्रकार का आग्रह न कर मैं ज्ञानाम्यास के लिये विशेषरूप से प्रयत्नशील रहने लगा। जो कुछ भी बुद्धि थी और गुरुदेव से शिक्षा ली थी, उसकी पुनरावृत्ति करता।
पूज्य गुरुदेव जब विभिन्न क्षेत्रों में विहार करते हये पूनः मेरे जन्मस्थान के निकटवर्ती मिरी गाँव पधारे तब मैं भी मातुश्री के साथ ज्ञानाभ्यास के लिये सेवा में उपस्थित हुआ । पाठ्यक्रम के अनुसार थोकड़ों आदि को कंठस्थ करने के साथ सर्वप्रथम दशवकालिक सूत्र का अध्ययन प्रारम्भ हुआ। गुरुदेव श्री वांचन देते, उसके अर्थ को समझाते और उसमें गभित सार की विवेचना करते थे । इधर मेरी बुद्धि में विकास होते जाने से गाथाओं के उच्चारण और अर्थ समझने से एक अनोखे आनन्द की अनुभूति करता और अधिक से अधिक जिज्ञासापूर्वक नये ज्ञान के लिये लालायित रहता । इन्हीं दिनों बांबोरी में दीक्षा महोत्सव होने से मातुश्री के साथ वहाँ गया ।
बांबोरी में दीक्षा महोत्सव के अवसर पर विभिन्न संत, सतियों के दर्शन किये और सबसे बड़ा लाभ मुझे यह हुआ कि सतीशिरोमणि महासती श्री रामकुवर जी म० की प्रधान शिष्या महासती श्री सुन्दर जी म. से महावीर स्तुति 'श्रीपुच्छी सुणं' का अभ्यास करने का गुरुदेव ने फरमाया । महासती श्री जी ने बहुत ही ज्ञान, विवेक एवं प्रसन्नता के साथ अभ्यास कराना प्रारम्भ कर दिया। यह अभ्यास कथा के माध्यम से नीति का ज्ञान कराना जैसा सिद्ध हआ। महावीर स्तुति के साथ और दूसरे-दूसरे ज्ञान की जानकारी मिली। अब मैं कुछ शास्त्रों के अन्तर्रहस्य को समझने लायक बन गया ।
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