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[जाबन का महत्वपूर्ण निधि श्राचार, नद्राचार के विविध पहलुओं का विश्लेषण]
३ आचारः परमो धर्मः
आपने पढ़ा होगा और सुना होगा-'आचारः परमो धर्मः ।' अर्थात् आचरण को पूर्ण विशुद्ध रखना सबसे बड़ा धर्म है।
मानव के जीवन में आचार को प्रधानता दी गई है। जिसका आचरण पवित्र होता है, उस व्यक्ति का संमार में सम्मान होता है और वह अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। यद्यपि इस जगत में अनेक व्यक्ति रूपसम्पन्न होते हैं, अनेक धनसम्पन्न होते हैं और अनेक सत्तासम्पन्न पाये जाते हैं। किन्तु अगर वे आचार सम्पन्न नहीं होते तो उनकी अन्य सम्पन्नताएँ व्यर्थ मानी जाती हैं। उस तिजोरी के समान जो आकार में बड़ी है, सुन्दर है और फौलाद के समान मजबूत है, किन्तु अन्दर से खाली है, एक पाई भी उसमें नहीं है। जिस प्रकार ऐसी तिजोरी का होना न होना बराबर है, ठीक इसी प्रकार अन्य अनेक विशेषतायें होते भी आचरणहीन व्यक्ति का होना, न होना समान है। मी तिजोरी के समान ही उस मनुष्य का कोई महत्व नहीं है। आचार का अर्थ
आचार का अर्थ है-मर्यादित जीवन बिताना। अगर व्यक्ति अपने जीवन को मर्यादा में नहीं रखता, अर्थात् अपनी इन्द्रियों पर एवं मन पर संयम नहीं रखता तो उसका आचरण भी कदापि शुद्ध नहीं रह पाता।
तीन प्रकार के योग माने गये हैं। वे हैं-मनोयोग, वचनयोग एवं काययोग ।
मनोयोग का काम है-चिन्तन करना या विचार करना। आप चाहे उत्तम कार्य करें या अधम कार्य करें, दोनों के लिए ही पहले मनोयोग द्वारा विचार किया जायेगा कि कार्य किस प्रकार और किस विधि से करना है। इन सब बातों का निश्चय करना ही मनोयोग का काम है।
मनोयोग के पश्चात वचनयोग का कार्य प्रारम्भ होता है। मन के द्वारा किसी भी कार्य के करने का निश्चय हो जाने पर वे विचार जबान पर आते हैं। वाणी मन में उमड़ने वाले विचारों की ही प्रतिध्वनि होती है। अगर मन में विचार न आयें तो वे वाणी में भी नहीं उतर सकते । क्योंकि वाणी में विचार करने की शक्ति नहीं है। केवल उच्चारण करने की सामर्थ्य होती है। इसलिए विचार न होने पर उच्चारण भी नहीं हो सकता है।
विचार, उच्चार और आचार, इन तीनों में चर धातु का प्रयोग होता है, जिसका अर्थ है 'चलना' ! मन में विचार आया कि ऐसा करना है तो वचन के द्वारा शब्द उठते हैं कि हमको ऐसा करना है । विचार चाहे सामाजिक विषय से सम्बन्ध रखता हो अथवा राजनीति से । वे मन में उठते हैं और तब वचनों से जाहिर होते हैं। कहने का अर्थ यह है कि किसी भी कार्य की नीव मन के विचारों से देखी जाती है, अतः मन में शुद्ध विचार आने चाहिए । जिन व्यक्तियों के पल्ले में पुण्य होता है, उनके मन में शुभ विचार आते हैं और उसके विपरीत जो पुण्यहीन हैं, उनके मन में अशुभ विचारों का उदय होता है।
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