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आचार्य प्रवर अभिभापार्यप्रवर अभि श्रीआनन्दअन्यश्रीआनन्दग्रन्थ
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आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आपणों कई आग्रह नी, जिट्ट नी, बात संघ री रेणी चावे आपणी बातरो कई रोवणो?" अस्या सरल साफ ने सुलझ्या ने कुण उलझा सके ?"
समस्याओं रा निपटारा संघ हित री दृष्टि सू व्हे, वे सबां ने रुचे ही या जरूरी नी। कणी रे ही प्रतिकूल कोई बात व्हैं तो थोड़ी घणी अचकचाई पण आवे ने वी में कोई कई के भी दे, पण आचार्य श्री रा कान सुणवा रा मामला में हाथी सू भी म्होटा । सब सुणों पण चू नहीं आ म्होटी बात है।
समुद्र जसी गहराई वेवा सूदुश्मन भी अणा सू मिलता शंके नी। व्यक्तिगत दुश्मन तो अणां रे शायद ही कोई व्हे पण संघ रे नाते मत भेद तो जरूर है ही पण वणां ने भी अणां री ईमानदारी ने सच्चाई पर तनिक भी शंका नी या खास बात है जो बहुत कम जगां मिले ।
संगठन रा जन्मजात हिमायती पूर्ण सेवाप्रेमी, संघहितैषी आत्म-शोधक जैन जगत रा तपा तपाया सो टंच सोना पूज्य आचार्यश्री आनन्दऋषि जी महाराज साहब मानवता री महान विभूति है, जणी पं आपां गौरव को अनुभव कर सका।
ये सौ-सौ वर्षों जीवे ने धर्म समाज ने संस्कृति री सेवा साधे अणी शुभकामना रे साथ हूँ, हार्दिक श्रद्धांजली अर्पण करूं ।
उदारता की मंजुल मूर्ति
0 जीतमल लुणिया, अजमेर [वयोवद्ध गांधावादी साहित्यसेवी]
भारतीय साहित्य में आचार्य का अपूर्व महत्व प्रतिपादित किया गया है। आचार्य को देवस्वरूप मानकर उसकी अर्चना की गई है । आचार्य वह है जो स्वयं आचार का पालन करे और दूसरों को आचार पालन की शिक्षा प्रदान करे।
___ मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि जी महाराज के ७५वें वर्ष के सुनहरे अवसर पर एक विशिष्ट अभिनन्द-ग्रन्थ उन्हें समर्पित किया जा रहा है। यह अनमोल साहित्यिक निधि भारतीय साहित्य की बहुमूल्य उपलब्धि सिद्ध होगी, यह मेरा पूर्ण विश्वास है।
___आचार्यप्रवर के दर्शन एवं निकट संपर्क में आनेका मुझे तीन चार बार सौभाग्य प्राप्त हुआ है, उनके विराट व्यक्तित्व और पवित्र चरित्र की अमिट छाप मेरे मानस पर पड़ी है। उनके जीवन का एक सुमधुर संस्मरण आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित है। अजमेर पधारे थे । मैं उनके दर्शन के लिए पहुँचा । उनके पास कुछ जीवनोपयोयी साहित्य पड़ा हुआ था । पुस्तकों को देखकर मेरा मन पढ़ने के लिए ललक उठा। मैंने आचार्यप्रवर से नम्रनिवेदन किया कि ये पुस्तकें मूल्य से कहाँ से मिल सकेंगी। मुस्कराते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि मैंने ये पुस्तकें पढ़ली हैं, आप पढ़ना चाहते हैं तो इन्हें सहर्ष ले सकते हैं।
आचार्य प्रवर की यह उदारता देखकर मैं आनन्द विभोर हो गया।
विविध भाषाओं और साहित्य के प्रकांड पंडित होते हुए भी आचार्य श्री में विद्वता का अभिमान किंचित मात्र भी नहीं है। यदि कोई आपश्री की आलोचना करता है तो आप उसकी बातों पर गहराई से चितन करते हैं । यदि अपनी कोई भूल ज्ञात होती है तो सरल स्वभाव से उसे स्वीकार कर लेते हैं । यह है आपके जीवन की महान विशेषता ।
आपका जीवन महान है । आप मानव समाज के सच्चे भूषण हैं। आप श्री चिरकाल तक स्वस्थ रहकर जैनशासन की सेवा करें, यही मेरी हार्दिक शुभ कामना व भावना है।
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