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ज्योतिर्धर आचार्य श्री आनन्दऋषि : जीवन-दर्शन
पदाधिकारी नियुक्त कर दिया है। आपसे अधिक योग्यता आचार्य पद को प्राप्त करने के लायक अन्य किसमें है ? वैसे भी उपाध्याय पद ग्रहण करने के पश्चात् से अब तक आप जिस विलक्षण कार्यक्षमतापूर्वक श्रमण संघ का संचालन करते आए हैं, उसे देखते हुए केवल आप ही इस सर्वोच्च एवं महान् पद के अधिकारी बनने का अधिकार रखते हैं।"
यह विचार जिस समय हमारे चरितनायक के समक्ष रखा गया, आपने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया--"मैं तो श्रमण संघ का एक सामान्य सेवक हूँ। आपके विचारों के अनुसार मेरी योग्यता नहीं हैं। "कार्यवाहक समिति" के संयोजक के नाते संघ की सेवा करने में ही मुझे परम सन्तोष है, अतः अधिक भार मुझ पर न डाला जाये, यही ठीक है।"
किन्तु श्रद्धापूरित तथा एकस्वर से उठी हुई आवाज का विरोध कैसे किया जा सकता था ? परिणाम यही हुआ कि चरितनायक को आचार्य मनोनीत कर दिया गया तथा विक्रम संवत् २०२१ में आयोजित किये गए मुनि-सम्मेलन में आपको आचार्य पद की प्रतीक पुनीत चद्दर ओढ़ाई गई।
इसप्रकार प्रारम्भ में रहे हुए एक साधारण मुनि श्री आनन्दऋषि जी महाराज अपनी बहमुखी प्रतिभा एवं अद्वितीय कार्यक्षमता के बल पर क्रमशः उन्नति के सोपानों पर चढ़ते हुए एक दिन श्रमण संघ के सर्वोच्च अधिकारी बन गए। स्पष्ट है कि आपका सम्पूर्ण जीवन समाजसेवा में व्यतीत होता रहा और आज भी श्रमण संघ के आचार्य के रूप में समाज की अपूर्व सेवा करते चले जा रहे हैं।।
आपकी सबसे बड़ी विशेषता शान्तिप्रियता है, जिसके बल पर आप विषम-से-विषम परिस्थिति का मुकाबला भी बड़ी धीरता से करते हैं तथा किसी भी हालत में अपना सन्तुलन नहीं खोते । इतना ही नहीं, आप अपना अहित करने वाले का भी हित करने के प्रयत्न में रहते हैं।
साधना और चमत्कार साधना का क्षेत्र बड़ा विस्तृत और जटिल है। जबतक साधक साधना के मर्म तक न पहुँच जाय, तबतक उसे साधना का आनन्द नहीं आता और साधना का तो लक्ष्य ही है-आत्मानन्द प्राप्त करना। प्रश्न उठता है कि कैसी साधना से साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है ? इसका समाधान यही है कि विवेक और बुद्धि द्वारा कष्टसाध्य साधना करने वाला साधक ही अपने निर्दिष्ट साध्य को पा सकता है।
एक बात और ध्यान में रखने की है कि यद्यपि साधक का उद्देश्य अपना साध्य सिद्ध करना है, तदपि साधना काल में उसकी उत्कृष्टता. पवित्रता एवं विशुद्धता से अनचाहे ही अनेक चमत्कारपूर्ण घटनाएँ भी घटती हुई देखने को मिलती हैं, जिनसे प्रभावित होकर व्यक्ति साधक के प्रति श्रद्धानिष्ठ बन जाते हैं।
हमारे चरितनायक महामान्य आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज की तपोपूत साधना भी ऐसी ही अनेक चमत्कारिक घटनाओं से परिपूर्ण रही है। आपकी वाणी में कुछ ऐसी अनुपम शक्ति है कि आपके मुखारविंद से जो बात निकलती है, उसकी सिद्धि में कभी संशय नहीं रहता। ऐसी अनेक घटनाओं में से कतिपय घटनाएँ पाठकों के लिये दी जा रही हैं।
जीवनडोरी कटते-कटते बची--विद्ववर्य पं० नारायणप्रसाद जी शास्त्री को जो कि अनेक वर्षों से आचार्यसम्राट की सेवा में रहते हुए ज्ञानार्थी सन्तों को संस्कृत एवं व्याकरण आदि का ज्ञान देते आ रहे हैं, शिलांग के टी० बी० हॉस्पिटल में चिकित्सा करवा रहे अपने बड़े पुत्र का पत्र मिला। उसमें लिखा था-"पिताजी ! अशुभ कर्मों के कारण मेरा स्वास्थ्य गिरता चला जा रहा है और अब मैं मरणासन्न स्थिति में आपके एकबार दर्शन कर लेना चाहता हूँ।"
अपने पुत्र के द्वारा लिखे गये ऐसे शब्द सुनकर कौन पिता अपने चित्त को काबू में रख सकता है ?
INE
आपाप्रवन अभिमाचार्यप्रवभिः श्रीआनन्द श्रीआनन्द अ५०
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