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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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संकलन पृथक् रूप से प्रकाशित नहीं हुआ है। किन्तु आपका लिखा हुआ सूक्ति-साहित्य काफी मात्रा में है जिसकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो सकती हैं । संक्षेप में उदाहरण रूप में आपकी सूक्तियाँ और उक्तियाँ इस प्रकार हैं
अज्ञ और विज्ञ-जो सब कुछ जानकर के भी अपने आपको नहीं जानता, वह अज्ञ है; और जो अन्य को जानने से पूर्व अपने आपको सम्यक् प्रकार से जानता है वह विज्ञ है।।
धर्म और सम्प्रदाय-धर्म एक प्रवाह है तो सम्प्रदाय उस धर्म रूपी प्रवाह का बान्ध है । बान्ध के मधुर नीर से सिंचाई होती है और खेती लहलहाने लगती है । और उस पानी से विद्य त तैयार होती है और विश्व उसके आलोक से जगमगाने लगता है। वैसे सम्प्रदाय रूपी बान्ध से भी धर्म की सिंचाई होती है, ज्ञान का प्रकाश फैलता है । यदि सम्प्रदाय में संकीर्णता, स्वार्थता, कट्टरता का जहर मिल जाय तो वह लाभ के स्थान पर हानि करेगा।
सहस्राक्ष-मानव दूसरे की भूल को देखने में सहस्राक्ष है किन्तु अपनी भूल को देखने में एकाक्ष भी नहीं है । उस एकाक्ष को भी वह मूंद लेता है-यही सबसे बड़ी विडम्बना है।
जिसकी चाह नहीं उस राह पर मानव चल रहा है। किन्तु जिसकी चाह है उस राह की ओर कदम नहीं बढ़ रहा है। चाह सुख की है किन्तु कार्य दुःख के कर रहा है।
सुख का कारण अभाव नहीं, अतिभाव भी नहीं, किन्तु स्वभाव है।
महान कलाकार-वह महान, कलाकार है जो नीरस जीवन में भी सरसता के सुमधुर सुमन खिलाता है और दुःख की काली कजरारी निशा में भी सुख की शुभ्र चान्दनी के दर्शन करता है।
श्रद्धा और तर्क-श्रद्धा और तर्क जीवन के दो पहलू हैं। परिपूर्ण जीवन के लिए दोनों की अपेक्षा है। श्रद्धारहित जीवन अभिशाप है। तो तकरहित श्रद्धा भी बेकार है। वह सम्यक् श्रद्धा नहीं, अंध श्रद्धा है, शिव नहीं शव है।
___ श्रद्धा में अर्पण है तो तर्क में प्रश्न चिह्न का अंकन है । और है कसौटी का प्रस्तुतीकरण । श्रद्धा पलकें मूंदने की बात कहती है तो तर्क यथार्थता की कसौटी पर कसने की बात कहती है। न कसौटी को भूलना उचित है और न अर्पण को बिसारना ही। दोनों का मूल्य है। घिसते-घिसते चन्दन में भी ऊष्मा पैदा होती है। केवल अर्पण ही अर्पण हो तो समर्पण का आनन्द पीछे रह जायगा।
विचार और आचार-यदि विचार स्फटिक के समान निर्मल है तो आचार भी निर्मल होगा। बिना विमल विचार के आचार निर्मल नहीं हो सकता। विचारक्रान्ति की नींव पर ही आचार-क्रान्ति का भव्य प्रासाद खड़ा होता है।
अभिव्यक्ति-वह शक्ति किस काम की, जिसकी अभिव्यक्ति न हो । सूर्य की चमचमाती किरणों से झुलसते हुए व्यक्ति को वही बीज शांति प्रदान कर सकता है । जो वृक्ष के रूप में अभिव्यक्त हो चुका है।
रमणीय-जो रमणीय है वह शिव भी अवश्य होगा। जो रमणीय है किन्तु कल्याणकारी नहीं है वस्तुतः वह रमणीय नहीं है । वह तो किंपाक फल के सदृश है।
विरोध–विरोध तो ज्योति से पूर्व होने वाला धुआं है । वह कुछ क्षणों के लिए लोगों के नेत्रों को धूमिल बना दे, किन्तु अन्त में ज्योति ही रहती है । जिन्हें ज्योति की आशा है वे धुएँ को देखकर निराश नहीं होते।
पाप की कल्पना-अफीम के फूल की तरह पाप की कल्पना प्रारम्भ में सुन्दर और चित्ताकर्षक है किन्तु अन्त में वही कल्पना सर्प के आलिंगन की तरह नष्ट कर देती है।
उपदेश-उपदेश बर्फ के समान है। वह जितना धीरे-धीरे दिया जायगा उतना ही स्थायी, गहरा और मन में प्रवेश करने वाला होगा।
मौन-मौन वीर अर्जुन के अचूक बाण की तरह है जिसका वार कभी भी खाली नहीं जाता; जो कार्य बोलने से सम्पन्न नहीं हो सकता वह कार्य मौन से हो जाता है। मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक शक्ति है और वह सर्वोत्तम भाषण है ।
अभिमान और विनय-अभिमान का प्रकाश बिजली की चमक की तरह है जो एक क्षण चमकती है और विनय का प्रकाश चमचमाते हुए सूर्य की तरह है जो दीर्घकाल तक चमकता है ।
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