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१२२ श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
श्री पुष्कर गुरु- गुण गीतिका
→ भंवरलाल दोशी कमोल (उदयपुर)
राग-द्वेष को त्याग कर, पाया आतम पन्थ । जय जय हो गुरुदेव की, धन्य धन्य गुणवन्त ॥ स्कृति से ये करते हैं, योग साधना रोज थानकवासी सन्त हैं, पर न पन्थ का बोझ ॥ नमते जिनके चरण में, मानव दानव देव । केसरी सम नित गूंजते, करते हैं सब सेव ॥ सत्यं शिवमिति सुन्दरम् यह मन में अपनाय । रोति शास्त्र की प्रीति से, जन मन को समझाय ॥ उत्तम ब्राह्मण वंश है, गोत्र है पालीवाल । पाया परमानन्द पुनि, जनमें अम्बालाल || ध्येय सदा रहता यही, पाऊँ आत्म-स्वरूप । यातना सहते हुए भी, आप शान्त अनूप ॥
यह हर्ष की ही बात है, हुए श्रमण श्रृंगार । श्री गुरु तारा शरण में, श्रेष्ठ बने अणगार ॥ पुष्कल पुण्य प्रभाव से, किया प्रभावित लोक । करते धर्म प्रचार नित, हरते जन जन शोक || रमण करे निज भाव में, चमके आतम चन्द | मुख पर चमके तेज है, सुखानन्द के कन्द ॥ नित पाते आनन्द जो हर्षित दर्शन पाय । जीवन उज्ज्वल जब बने, कर्मवृन्द भग जाय ॥ अज्ञान हमारा दूर हो, पायें जीवन सार । महावीर उपदेश का पहनें पावन हार ॥ रहे अमर जिन धर्म नित करते शुद्ध प्रचार । हे जग तारक आपका अभिनन्दन शत बार ॥
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महाजसो महाणाणी महादवलो महासुई । महत्वयपरो निष्यं वंदियव्यो महागुरु || १|| बदिओ सव्वलोएहि सब भूयदयापरो । आस्सओ सम्बविज्जानां वदियन्वो महागुरु ||२|| केसरी रायठाणस्स गुणविद आलओ । विसामो सव्वजीवाणं वंदियव्वो महागुरु ॥३॥ सक्कआ - पाईया भासा देसी भासा विसारओ । सारदिंदुपहाधारी बंदियो
जस्स
महागुरु ||४|| दंसणमेत्तेण पावबंधो विणरसइ । पाणिगण सुखाकखी वंदियव्वो सुद्धज्झाणो सुद्धणणो सुद्धचारित्तभूसिओ । जिणसासणरओ निच्चं
महागुरु ||५||
वंदियव्वो महागुरु ||६|| सत्तभाव जुओ सत्तभाव जुओ
विनायसव्व सत्यत्यो सच्चा सच्चपरामंसी
सया ।
वंदियव्वो महागुरु ||७|| मंगलं य जहा धम्मो अरिहासरणं जहा ।
नमोक्कारा जहा पञ्च माला अट्ठसिलोगानां गुरुणा पुक्खरानां उ
अस्स नामं पि मंगलं ॥ ८ ॥ परमायरमंठिया । पायमूले समप्पि || ||
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13] प्राचार्य द० ग० जोशी (अहमदनगर)
वंदियव्वो महागुरु
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