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श्री पुष्करमुनि अभिनय
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आवाहन मुद्रा स्थापन मुद्रा सन्निधान मुद्रा स
अस्त्र मुद्रा
शान्ति ग्रही श्रीकार, शान्तिनाथ री शरण में ओ पुष्कर अणगार, देखो पुष्प प्रताप सू ॥
सरस ।
पंच महाव्रत धार, स्वात्माने शोधे ओ पुष्कर अणगार, देखो तारक गुरु दया ॥
सद्गुरु ताराचन्द, दीक्षा दे भव अमित कियो आनन्द, पुष्कर मुनि
द्वन्द्व हर ।
रे पेखलो ॥
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काम-क्रोध मद लोभ, व्यवहारी विषमय विपुल क्षण-क्षण में दे क्षोभ, ताते मुनि पुष्कर तज्या ||
झूठ तणो झणकार, विष सम है व्यवहार में । अस उपदेश उदार, पुष्कर मुनि प्रतिपल करे ॥
पातो दुख अनपार, भव-सागर में भटकतो । हिय में खा आहार, गुरुपद पुष्कर मुनि ब्रह्मा वन्दे वीर बेन जबर एन श्री जैन री । सद्गुरु तारक सेन, आ पुष्कर मुनि आदरी ॥
विज्ञ र, वसुधाधीश, सुनि मुनि पुष्कर रा सबद । विनयी विश्वावीस, वनि दे साधूवाद वित ।
तृषितन की ततकार, प्यास बुझाना प्रेम सूं । सरवर सूं आसार, सीख ग्रही पुष्कर श्रमण ॥
निज को कर नुकशान, प्राण पराया पोखवा । गुंज अहा ! ओ ज्ञान, गुरु पुष्कर तरु सूं ग्रह्यो ।
नास्तिक भी निर्मान होकर हर्षित हृदय से । प्रवचन करते प्रान, पुष्कर मुनि रा प्रेम सूं ॥
चटले चितने चोर, सुन्दरतर स्याद्वाद री । प्रतिपल उणरी पोर, पुनि मुनि पुष्कर री धुके ॥ चाहत चन्द्र चकोर, षट्पद जिमि सलिलज चहे। राश तत्व तिहि तोर, पुष्कर मुनि भी पाद प्रभु ।
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राम रखे दिन रेण वीतरागरा वेण सू तदपि कहे सब सेण, मुनि पुष्कर वे राग-मति ॥
जैन-धर्म री जहाज, तारे भवनिधि से तुरत । गुरुमुख गुण आ गाज, मनधारी पुष्कर मुनी ॥
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अन्तस में जो आंट, अन्त समै वा आखरे । गुरुमुख उगरे गाँठ दी पुष्कर मुनि देख लो ॥ जिण दरशरणरी दौर, षट् दरशण दौरे सदा । गुरुमुख उणरो गोर, पुष्कर मुनि प्रतिपल करे ।
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