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प्रथम खण्ड : श्रद्धाचन
११७ .
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१.यम
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सज्जन ने सन्मान, आपे जिणसं अ अहा ! प्राज्ञन के प्रिय-प्रान, बनिगे पुष्कर मुनि विमल ।।
मार तणो मदमार, शील तणो शृगार सज ।
ओ पुष्कर अणगार, महि में विचरे मोद ।। मद पांचारो मार, पांच आदरे प्रेम ढूं। इणविध आत्मोद्धार, पेखो, मुनि पुष्कर करे ।।
सुन्दर शुचि साहित्य, कर्मठ कृत्याकृत्य रो।
निर्मल विरचे नित्य, पुष्कर मुनि जे प्रेम । निर्मल मन नवकार, मन्त्र जपे नित मोद सू। उणरे ही आधार, पुष्कर मुनि गुनि भे प्रबल ।
सदा मुक्ति री सेज, सो मैं आनन्द सू।
हुँलसि हिये ओ हेज, पुष्कर मुनि रे पेख लो।। दिल री दुविधा दूर, लूटन की तारक गुरु । निरखण ज्यां रो नूर पुष्कर मुनि प्रेमाकुली ॥
गुरु तारक रो ज्ञान, शिर निवाय ने संग्रह्यो।
जिणसू ओ जग-मान, पायो पुष्कर मुनि प्रबल ।। प्रेमी आते पास, जाते वे वापिस जदा। रख जाते रुचि खास, गुरु पुष्कर की गोद में ।।
सूत्र तणो शुचि सार, ग्रहण कियो गुरु से गहन ।
उणसू आत्मोद्धार, भव्य भिक्षु पुष्कर करे। स्वारथ हित संगीन, परमारथ में लीन है। पुष्कर मुनी प्रवीन, मानहु जल में मीन-जिमि ।।
संकट मोचन शांति नाथ निरन्जन रो सदा।
भेदन हित भव-भ्रांति, जाप मनी पुष्कर जपे ।। करते कपट विसार, जाप अहा ! जिनराज रो। अ पुष्कर अणगार, निर्मल नयनां निरख लो।
प्रज्ञा प्रबल प्रसार, पाप-पुण्य री पारखा।
ओ पुष्कर अणगार, करते हैं कमनीय अति ।। दान, शील, दरकार, तपरु भाव की तथ्यता। ओ पुष्कर अणगार, समजावे है स्नेह सू॥
काम-क्रोध री कार, सार विनारी समजकर ।
पुष्कर अणगार, उल्लंघी आमोद सू॥ लोभ तणो ललकार, तारे अरु मारे तटकु। ओ पुष्कर अणगार, इक छारे इक आदरे॥
सामायिक रो सार, सुन्दर सूत्राधार सू। ओ पुष्कर अणगार, समजावे सबोष दे।
A२-नियम A ३-आसन AB-प्राणायामA५-प्रत्याहार६-धारणा A७. ध्यान A८-समाधि ६-३श्वरपदप्राप्ति
ADVASUNDAR
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