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श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
पेखो मुनि पुष्कर प्रभा
पं० बालाराम कवि-किकर (जोधपुर, राज० )
ज्ञानसिन्धु गुरुराय, भवियण तारक भव्य थे । पावन जारा पाय, सेवे मुनि पुष्कर सदा ॥
अघहारी अरिहन्त अन्त न ज्यारी युक्ति रो । पुष्कर मुनि प्रणमन्त, विनय सहित म्हांने सदा ॥ सिद्ध हुए जो सूर, नूर उणारो निरखवा । पुलके प्रेम प्रचूर पुष्कर मुनि रो पेखलो ||
उपकारी आचार्य शिरोधार्य है सर्वदा । आस्ता यह अनिवार्य मुनि पुष्कर रे मन बसे । पाठकरे परताप तुरत मिटे भव-ताप-त्रय । जये जिणारी जाप, प्रतिपल पुष्कर मुनि अहा ! ॥
गौतम गणधर और, भे जेते अणगार भुवि । माने निज शिरमौर, व्हांने पुष्कर मुनि विमल ॥ पावन प्रेम प्रसार, पूज्य पंच परमेष्ठि पद । मन में मोद अपार, मुनि पुष्कर माने सदा ॥ षट् दरशन रो साद, शुचि दरक्षण स्वाद्वाय
जग में है जिण माय सूं । मुनि पुष्कर रे मन बस्यो ।
मन
अपनो मजबूत, उलझायो अरिहन्त पद । ऐसे जो अवभूत. पुष्कर मुनि है पेललो ॥
लखि राजुल री भक्ति, मुक्ति मुरझगी मन ही मन । सुन्दर वाहिज शक्ति, मुनि पुष्कर रे मन बसे ।
सेवा-धर्म समान, धर्म आन ना धरणि पर । गुरु तारक मुख ज्ञान, ओ पुष्कर मुनि आदरयो ।
भक्ति, भक्त भगवन्त तारक गुरु इन त्रिपुटिरो । आप्यो ज्ञान अनन्त, मुनि पुष्कर ने मोद सूं ॥ समरांगणे । मन बसे ।।
जूंजे जबरा जेह, संयम रे निर्मल व्हांरो नेह मुनि पुष्कर रे जबर पुण्य गो जाग, रूठ जगतरा राग सूं । वसगो उर वैराग, पुष्कर मुनि रे पेखलो ।।
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हट्यो । लो ॥
जनम मरण से जाल, हाल हरामी ना शाले उर ओ शाल, पुष्कर मुनि रे पेख दीन दुखी री दाह, देखि दया से द्रवित हो । यथायोग्य उर आह, उणरी मुनि पुष्कर हरे ॥
जानत सकल जहान, जयणा जिनशासन तणी । उण जयणां री आन मुनि पुष्कर राजे महा ।।
निगमागमरो नाण, भाणहाररो भव्यपन । करण आत्म-कल्याण, गुरुमुख पुष्कर मुनि ग्रह्मो ॥
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