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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चम
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आयम्बिल उपवास, ओली तपरी आसता।
तनरी मेटे त्रास, सत्य कहे पुष्कर श्रमण ।। नर-तन मिलियो नीठ, इणने मत अलो गमा। ध्यान राख रे धीठ, मुनि पुष्कर मन ने कहे ॥
काम, वाम रो कोप, टणकाईरो टोप है।
लखो दिवो है लोप, उणने पुष्कर मुनि अहा ॥ अमरगच्छरी आन, प्रान समान पिछान ने। मुनि पुष्कर मतिमान, पाले पूरण प्रेम सू॥
मन ऊपर मजबूत, आत्मारो अंकुश लगा। ३ पुष्कर अवधूत, महि में विचरे मोद सू॥
शुभ-कामना
D साध्वी श्री रोशनवर जी प्रभाकर तृषातुर तोय क्षुधातुर भोजन, थाक चढ़े जब शीतल छाया। दीन अनाथ को सहाय मिले, जिम दानिन के कर में धन माया ।। ज्यों अलि अरविंद चन्द चकोरिय, आतम साधक को गुरु राया। त्यों जग में मुनि पुष्करराज का ये अभिनन्दन मो-मन भाया ॥१॥
थे मोती मेवाड़ का, तारक तार पिरोय । जैन संघ गल में सुभग, जग मग करत जिरोय ॥२॥ हो दीर्घायु निरुजतन, बढ़े शिष्य समुदाय । मरुधर रा माझी बनो, सफल मनासा प्रायः ॥३।।
भाव-वन्दना
B महासती कौशल्यावर जी
ज्ञाने संयम आदरे निरखिने निस्सार आ विश्वने, मोहादी रिपु मारवा चित धरे उत्कृष्ट वैराग्यने । शान्तीना अवतार धारण करे साची करे देशना, पद्मश्री मुनि पुष्कर प्रवरने भावे करूं वन्दना ।। सेवी सद्गुरुदेव मुख्य विनये रत्नत्रयी ने गमे, व्याख्याने जनमन्त्रमुग्ध बनता अध्यात्मतेजोनिधि । साधे संयम साधना प्रतिदिने योगी मनस्वी महान्, ऐसे पुष्करदेव नी शरण मां भावे करू वन्दना ॥ छोड्या जाणि विभाव-भाव परना शुद्धात्मने पामवां, धैर्योदात्त विनम्रता दिलधरी संशुद्ध चारित्र की। देशोदेश फरी सदा हितमना तारे भवी आत्मने, कौशल्या गुरुदेव पुष्कर तणी भावे करू वन्दना ।।
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