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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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पांच महाव्रत, पांच सुमति का,
तीन गुप्ति का पालन। कैसे करना कोई सीखे,
बैठ आपके चरणन ॥
निकट दूर से जो भी प्रेमी,
दर्शनार्थ चल आते। शील, साधना, सदाचार, शम, सेवाव्रत
बतलाते॥
नहीं चलाते चौधर अपनी
संग संघ के रहते। महावीर अनुयायी सच्चे,
सभी आपको कहते ॥
सदा दूर विकथा से रहते,
कहते आगम गाथा। हर इक का मन मुग्ध बनाता, खिला कुसुम-सा माथा ॥
: १३ : उन्नत और समुन्नत जीवन
जनता का हो कैसे? अणुव्रत पांच बताकर कहते,
ऐसे भाई ! ऐसे ॥
: १८ : संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी
में हैं करते कविता । नहीं समझते यदि अत्युक्ति
___ कह दें कविता-सविता ।।
शिष्य प्रशिष्य आपके पण्डित,
कविवर लेखक, वक्ता। सपने में भी जिनकी समता,
क्या कोई कर सकता ।।
परम रसीली रसना से है,
जब भी भाषण करते। लगता है श्रीमुख से मानो, माणक-मुक्ता झरते ।।
: १५ : हो न गया हो भाषण चालू
इक से इक यों आगे। लोग नदी बरसाती ज्यों हैं,
आते दौड़े भागे ॥
जैसा सुन्दर नाम आपका
वैसे सुन्दर काम । निशिदिन दुनिया चरण-कमल में,
करती पुण्य प्रणाम ।।
फूल-फलें आपश्री जिससे,
दया धर्म हो रोशन । बड़ी विनय से करता है यह,
"चन्दनमुनि" अभिनन्दन ।।
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