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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
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वन्दन-अभिनन्दन
श्री दिनेश मुनि
पुष्कर गुरुवर है सन्त प्रवर । वक्ता लेखक सदगूरु कविवर ।। पुष्कर मुनि का प्यारा नाम । जन-जन पावे सुख आराम ॥ श्रमणसंघ के उजियारे हो। जन-जन के तुम प्यारे हो ।। मेवाड़ देश में जन्म लिया। वाली-सूरज को मुग्ध किया ।। चौदह वर्ष की लघुवय में । श्री तारक गुरु के शिष्य बने । तारक गुरु के शिष्य दुलारे । हो अमर गच्छ के उजियारे॥
पढ़-लिख कर तुम विद्वान बनें। जन-मोहन गुरु महान बने । जन जन के तुम उपकारी हो। मुक्ति मार्ग के सहकारी हो । चरित्र में है क्षीर उज्ज्वलता । जीवन में शशी की शीतलता ।। तेज तुम्हारा सूर्य समान । भाषण का गर्जन सिंह समान ।। ध्यानयोगी जैन समाज सुधार । हे आधि व्याधि उपाधि निवार ।। करता दिनेश शत वन्दन है। गुरु के गुरु तव अभिनन्दन है ।।
सदा रहो जयवंत
। मुनि श्री विनयकुमार 'भीम' सद्गुण - गण - शोभित सतत श्रमण संघ के सन्त । 'पुष्कर' मुनिवर जगत में सदा रहो जयवन्त ।। शत-शत वन्दन "विनय" के, आप करो स्वीकार । "अभिनन्दन" यह तव बने जगतीतल शृंगार ।।
पुष्कर आप सुतीर्थ
श्री महेन्द्र मुनि 'दिनकर' तीर्थ-शिरोमणि तीर्थ है, जैसे पुष्कर तीर्थ । वैसे हो मुनि - संघ में, "पुष्कर" आप सुतीर्थ ।। "महेन्द्र" मेरा नाम है, गुरुजन को सुखकार। करता तव पद-वन्दना, बनकर विनत अपार ।।
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