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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
ग्राम में चातुर्मास हुआ उस समय मुझे सद्गुरुदेव के निकट सम्पर्क में रहने का अवसर प्राप्त हुआ । मैंने देखा गुरुदेव श्री का तेजोमय पारदर्शी व्यक्तित्व जिसमें हजारों सद्गुण झलक रहे थे। गुरुदेव जैसे महान् व्यक्ति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे जहाँ बड़े व्यक्तियों से वार्तालाप करते हैं, उससे भी अधिक स्नेह से गरीब व्यक्तियों से तथा छोटे व्यक्तियों से वार्तालाप करते हैं। वे कभी भी किसी का तिरस्कार नहीं करते, किन्तु सदा सत्कार ही करते हैं। सद्गुरुदेव की इस विशेषता ने मुझे आकर्षित किया। मुझे गुरुदेव श्री ने प्रतिक्रमण, भक्तामर आदि का अध्ययन कर वाया और सामाजिक सेवा के कार्य में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। गुरुदेव श्री के पुण्य प्रताप से ही मैं विकास के
परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज स्थानकवासी समाज के एक ज्योतिर्धर सन्त रत्न हैं । उनका चमकता व्यक्तित्व और दमकता कृतित्व जनजन के आकर्षण का केन्द्र है। मैंने सर्वप्रथम उनके बाल्यकाल में दर्शन किये थे। और हमारे गढ़सिवाना पर आज से ही नहीं, आचार्य सम्राट् पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज की कृपा रही और उनकी परम्परा के संत भगवंत सदा उस क्षेत्र में विचरण करते रहे जिसके फलस्वरूप हम लोग स्थानकवासी परम्परा में स्थिर बने रहे । गढ़ सिवाना से तपस्वी श्री हिन्दूमल जी महाराज जैसे महान् सन्त भी निकले ।
अविस्मरणीय वर्षावास
पथ पर आगे बढ़ा। मुझे यह लिखते हुए अपार हर्ष होता है कि गुरुदेव जैसा महान् व्यक्ति मैंने अपने जीवन में नहीं देखा वो सैकड़ों साधु-सन्तों के दर्शन का लाभ मुझे मिला है किन्तु गुरुदेव श्री की जो विशेषता है वह विशेषता मुझे अन्यत्र देखने को नहीं मिली ।
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आचारनिष्ठ सन्त
मुलतानमल रांका, मंत्री, श्री अमर जैन आगम शोध संस्थान, गढ सिवाना
उपाध्याय पुष्कर मुनि जी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य मुझे अनेकों बार मिला । मैंने कई वर्षावासों में उनके दर्शन किये किन्तु जितना सन्निकटता से देखने-परखने का अवसर मिलना चाहिए था वह नहीं मिला था । हमारा बेंगलोर संघ गुरुदेव श्री के वर्षावास हेतु लम्बे समय से प्रयास कर रहा था । जिसके कारण गुरुदेवश्री का सन् १९७७ का वर्षावास बेंगलोर में हुआ । गुरुदेव श्री का प्रस्तुत वर्षावास बेंगलोर संघ के लिए वरदान रूप में रहा । इस वर्षावास में धर्म की जो अपूर्व जागृति हुई उसे बेंगलोर के बढ़ा जन कभी भी विस्मृत नहीं हो सकते। इस वर्षावास में क्या युवक, क्या युवतियाँ, क्या वृद्ध, क्या बालक, क्या साक्षर और क्या निरक्षर सभी ने समान रूप से भाग लिया । बेंगलोर में परस्पर जो संघर्ष की स्थिति थी, वह भी गुरुदेव के पुण्य प्रताप से मिट गयी । तप की दृष्टि से बेंगलोर का
गुरुदेव श्री जहाँ साहित्य के महारथी हैं वहाँ अध्यात्म साधना के अगुआ हैं; जहाँ समाज के मूर्धन्य सन्त हैं, वहाँ परम दयालु भी हैं । जहाँ उनमें चारित्र की उत्कृष्टता है वहाँ उनमें चातुर्य का मणिकांचन संयोग भी है। ऐसे विविधताओं के संगम बीसवीं सदी के महापुरुष सद्गुरुदेव के चरणों में अपनी श्रद्धा के अनन्त सुमन समर्पित करता हुआ अपने को धन्य मानता हूँ ।
गुरुदेव श्री ने भी वहाँ पर चार वर्षावास किये । गुरुदेव श्री को मैंने बहुत ही नजदीक से देखा है । वे महान् विचारक, सफल लेखक, ओजस्वी वक्ता और तेजस्वी आचारनिष्ठायुक्त सन्त हैं। आपश्री ने भारत के विविध अंचलों में विचरण कर जैन धर्म की महान् प्रभावना की । आपश्री जहाँ भी पधारे वहाँ जन-जीवन में अपूर्व जागृति का संचार किया । गुरुदेव जैसे मूर्धन्य सन्त से समाज को अत्यधिक गौरव है। मैं गढ़ सिवाना संघ तथा श्री अमर जैन साहित्य संस्थान की ओर से श्रद्धाचंना समर्पित करता हुआ अपने आपको धन्य अनुभव करता हूँ ।
श्री एस० चम्पालाल मुत्था यह वर्षावास ऐतिहासिक रहा। भाई-बहनों में पैतालीस से अधिक मासखमण हुए और तपोमूर्ति श्रीमती धापूबाई जसराज जी गोलेछा ने १५१ की तपस्या कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। उनका तप महोत्सव गुरुदेव श्री के सान्निध्य में लालबाग के ग्लास हाउस में मनाया गया जिसमें शताधिक संघों की उपस्थिति थी दृश्य दर्शनीय था । मैं साधिकार कह सकता हूँ कि गुरुदेव श्री का पुण्य प्रभाव इतना गजब का है कि अशान्त वातावरण भी अपूर्व शान्ति में परिवर्तित हो जाता है। गुरुदेव श्री का यह वर्षापास सदा स्मरणीय रहेगा। मैं अपनी अनन्त श्रद्धा श्रद्धेय सद्गुरुवर्य के चरणों में समर्पित करता हूँ कि उनके मंगलमय आशीर्वाद से हम सदा धर्म के क्षेत्र में निरन्तर बढ़ते रहें।
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