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प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन
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गुणज्ञ संत
0 पं० गोविन्दराम व्यास
स्मृतियों का इतिहास सचमुच सुहावना है, अद्भुत वह आश्चर्य हुआ कि पुष्करमुनि जी, मुनिश्री कल्याण है, अनूठा है। जब भी मानस पटल पर स्मृतियाँ उद्बुद्ध विजय जी के इतिहास ज्ञान की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा कर होती हैं तो एक अलौकिक आनन्द का अनुभव होता है। रहे थे। उन्होंने कहा "जैन कालगणना" "श्रमण भगवान ___मैं राजस्थान के ऐतिहासिक नगर जालोर में पुरातत्व- महावीर" मुनिश्री जी की उत्कृष्ट रचनाएं हैं, इन रचनाओं वेत्ता मुनिश्री कल्याणविजयजीगणि की सेवा में था। में कल्याणविजयजी महाराज की अद्भुत प्रतिभा का सहज वृद्धावस्था के कारण उनकी नेत्रज्योति मन्द हो चुकी थी। ही परिचय होता है । पुष्कर मुनि जी की प्रस्तुत गुणग्राहक अतः मैं उनके ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ तैयार कर रहा था। वृत्ति ने मेरे मानस को बहुत ही प्रभावित किया और वे उस समय राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी पुष्करमुनि जी स्वयं अपने शिष्यों सहित उनके निवास स्थान पर भी उनसे वहाँ पर पधारे । जब मैंने यह वृत्त सुना तो मैं उनके दर्श- मिलने के लिए पधारे और मुक्त हृदय से वार्तालाप हुआ । नार्थ उनके निवास स्थान पर पहुंचा। वार्तालाप के प्रसंग श्री पुष्कर मुनि जी की जन्मस्थली राजस्थान ही है में मुनिश्री जी की विद्वत्ता स्पष्ट रूप से झलक रही थी। और मेरा जन्म भी राजस्थान में ही हुआ है, अतः राजमैंने अपने जीवन में कई बार देखा कि एक विद्वान् दूसरे स्थानी होने के नाते समत्वयोगी सन्त का हृदय से अभिविद्वान् की प्रशंसा करने में कतराता है, पर मुझे देखकर नन्दन करता हूँ।
निस्पृहयोगी को प्रणाम श्री वानमल पुनमिया, [महामंत्री-राजस्थानकेसरी अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन समिति] इतिहास की कहानी और पुरखों की जबानी में आज अध्यात्मयोगी गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी महाराज भी हमें पढ़ने सुनने को मिलता है कि अमुक आचार्य ने साहब का यशोगान तो काफी दिनों से सुन रहा था। अमुक राजा को, श्रेष्ठी को, किंवा अन्य पीड़ित संकटग्रस्त उनकी साधना व ध्यान की चमत्कारपूर्ण बातें भी सुनी थीं, व्यक्ति को मंगलपाठ सुनाया और वह स्वस्थ हो गया। मगर उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया। जब उनका व्याधि, उपाधि भाग गई, समाधि प्राप्त हुई। भूत-प्रेत की चातुर्मास बम्बई (दादर) सन् १९७० में था तब मैंने कुछ छाया माया की तरह लुप्त हो गई।
समय उनके सान्निध्य में बिताया। उनके निकट सम्पर्क से, __कोई कहता है, यह सब अतिरंजना है, कल्पना है, दो-चार समय मांगलिक श्रवण से मुझे जो अनुभूति हुई, वह या अतिशयोक्ति है। कुछ लोग श्रद्धालु होते हैं, कुछ शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। एक अद्भुत आनन्द, तर्कशील । श्रद्धालु श्रद्धा या शास्त्र से मान लेता है, तर्कशील शान्ति और निर्द्वन्द्वता की हिलोरे मन में उठी और ऐसा को प्रत्यक्ष प्रमाण चाहिए । मैं बचपन से ही तर्कबुद्धि लगा कि यह चमत्कारी परिवर्तन सहसा मेरे अन्दर कैसे वाला रहा हूँ। भले ही हमारा परिवार अडिग श्रद्धालु हुआ। श्रावकों की गणना में आता रहा है, मगर व्यक्तिगत रूप में ध्यान-मुद्रा में बैठकर जाप करते हुए गुरुदेव ने जब मैं साधु-सन्तों की सेवा में कम ही रहा हूँ । तर्क-वितर्क की एक लक्ष्यवेधी दृष्टि से मेरी तरफ देखा तो सहसा एक आदत रही है।
कम्पन, एक हलकी-सी सिहरन मेरे भीतर पैदा हुई, ऐसा
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