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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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अक्षय आनन्द के स्त्रोत
0 श्री खूबीलाल मांगीलाल सोलंकी (पूना)
भारत सन्तों का देश है। यहां पर एक से एक बढ़- गुरुदेव श्री की सबसे बड़ी विशेषता है कि वे कभी उदास कर सन्त पैदा हुए हैं जिनके पुनीत प्रसाद से इस देश में और खिन्न नहीं रहते और जो भी उनके निकट सम्पर्क में सामाजिक, नैतिक व धार्मिक जागृति हुई है । अन्यान्य देशों आता है उसकी खिन्नता भी सदा के लिए मिट जाती है । को अपेक्षा आज भी भारत में धार्मिकता है, नैतिकता है। गुरुदेव श्री के मांगलिक में वह अद्भुत शक्ति है कि उससे यह सत्य है कि विश्व के दूषित वातावरण से हम भी बच सभी चिन्ताएं नष्ट हो जाती हैं । मैंने अनेक बार अनुभव नहीं सके हैं। हमारे जीवन में भी अनैतिकता व अधार्मिक कर देखा कि जब मेरे मन में कोई चिन्ता पैदा हुई तब विचार पनप रहे हैं। किन्तु समय-समय पर सन्त गण गुरुदेव का मांगलिक सुना, चिन्ताएं धुएं की तरह उड़ गयी। हमें उस अनैतिकता से बचाने का उद्बोधन देते रहे हैं। जब गुरुदेव नहीं होते हैं तब उनके पुनीत नाम स्मरण से और आध्यात्मिक जागृति की प्रेरणा देते रहें । उसी सन्त ही मानस में अपूर्व शांति प्राप्त होती है । गुरुदेव के सन्निपरम्परा में श्रद्धय सद्गुरुवर्य का नाम मूर्धन्य है । श्रद्धय कट हम जब भी पहुँचते हैं तब उनके मुखारविन्द से यही सदगुरुवर्य के पूना में दो वर्षावास हुए । दोनों वर्षावास में शब्द निकलते हैं-आनन्द ही आनन्द है। वस्तुत; उनकी मुझे सेवा का सौभाग्य मिला । गुरुदेव श्री के निकट सम्पर्क वाणी ही नहीं किन्तु जीवन भी आनन्द का खजाना है। में आने का भी अवसर मिला । मैंने अनुभव किया गुरुदेव इस आनन्द का जितना भी गुण-कीर्तन किया जाय उतना श्री एक विशिष्ट सन्त हैं जिनके मानस में क्षणिक मात्र भी ही कम है। मैं सद्गुरुदेव के चरणों में अपनी अनन्त श्रद्धा सम्प्रदायवाद व पन्थवाद नहीं है। जो भी उनके सम्पर्क में समर्पित करता हूँ। उनका मंगलमय आशीर्वाद हमें सदा आता है वह अपने आपको धन्य अनुभव करने लगता है। मिलता रहे यही मंगल भावना है।
जीवन-नौका के नाविक
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श्री पारसमल जी मूथा (रायचूर) सद्गरुवर्य का महत्त्व भारतवर्ष में आज से नहीं परम श्रद्धय उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज सुदूर अतीत काल से रहा है। हजारों चिन्तकों ने सद्- सच्चे सद्गुरुदेव हैं। उनका जीवन एक सच्चे सद्गुरु का गरुदेव के महत्त्व पर हजारों पृष्ठ लिखे हैं। बिना सद्- जीवन है जो शिष्य के जीवन का निर्माण करता है । सद्गुरुदेव के ज्ञान प्राप्त नहीं होता। सद्गुरु हमारी जीवन गुरुदेव के दर्शनार्थ प्राय: कई वर्षों से मैं जाता रहा हूँ। नौका के नाविक हैं । वे संसार-समुद्र के काम, क्रोध, मोह जब से मैंने आपश्री के दर्शन किये तभी से मेरे मन में आदि के भयंकर आवत्तों में से हमें सकुशल पार पहुँचाते यह विचार उबुद्ध हुआ कि गुरुदेव श्री यदि कर्नाटक हैं । सदगरु हमारे आध्यात्मिक जीवन मन्दिर के जगमगाते पधारे तो कर्नाटक की भावुक जनता गुरुदेव श्री के तेजस्वी दीपक है । उनकी कृपा दृष्टि से ही हमें वह प्रकाश प्राप्त व्यक्तित्व से अत्यधिक धर्म के सन्मुख हो सकती है। जब होता है जिसको लेकर जीवन की विकट घाटियों को हम गुरुदेव श्री सन् १९६७ में महाराष्ट्र में पधारे तभी से सकुशल पार कर सकते हैं।
हमारा संघ प्रतिवर्ष गुरुदेव श्री से प्रार्थना करता रहा कि
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