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प्रथम खण्ड : अवार्चन
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आप एकबार अवश्य कर्नाटक पधारें। सन् १९७२ में अध्यात्मयोगी पूज्य उपाध्यायश्री का सार्वजनिक अभिसाण्डेराव सम्मेलन होने के कारण गुरुदेवश्री महाराष्ट्र नन्दन होना चाहिए। मैंने अपने हृदय की बात स्नेहीसे पुनः राजस्थान में पधार गये। हमें लगा कि हमारी साथियों से कही। उन्होंने मेरी बात का हार्दिक समर्थन भावना मूर्तरूप नहीं ले सकेगी । हमारे हृदय की उत्कट किया। मुझे लिखते हुए यह गौरव है कि गुरुदेव जैसे भावना थी जिसके कारण गुरुदेव श्री राजस्थान से पुनः तेजस्वी सन्तों को पाकर कर्नाटक अपने आप को धन्य अनुअहमदाबाद सन् १९७४ के वर्षावास हेतु पधारे । हमारा भव करने लगा। गुरुदेवश्री कर्नाटक के जिस किसी भी संघ गुरुदेवश्री की सेवा में पहुँचा। भाव-भीनी प्रार्थना क्षेत्र में पधारे, वहाँ उनका जो भव्य प्रभाव पड़ा उसको की। हमारी भक्ति के कारण गुरुदेवश्री ने कर्नाटक की शब्दों में अभिव्यक्त करना कठिन है। मुझे सात्विक गौरव ओर विहार का फरमाया। किन्तु सन् १९७५ का वर्षा- है कि गुरुदेव श्री के अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु मैं एक निमित्त वास गुरुदेवश्री का पूना में हुआ। वहाँ भी हमारा संघ बना, जिसके कारण यह भव्य आयोजन हो सका । मैं रायपहुंचा । हमारी भावना को मूर्तरूप मिला। १९७६ में चूर संघ की ओर से गुरुदेवश्री चरणों में भावांजली रायचूर का वर्षावास अत्यन्त यशस्वी रहा । गुरुदेव श्री के प्रस्तुत करता हूँ और यह मंगल कामना करता हूँ कि आप कर्नाटक में पधारने से तप, जप तथा भावना की अभिवृद्धि श्री पूर्ण स्वस्थ रहकर हम सभी को सदा मार्गदर्शन देते देखकर गुरुदेवश्री के हत्तन्त्री के तार भी झनझना उठे कि रहें। भूले-भटके जीवनराहियों को पथ-प्रदर्शन करते रहें। वस्तुतः कर्नाटक प्रान्त अद्भुत है। यहाँ की धार्मिक आपके मंगलमय आशीर्वाद से हम धर्म के क्षेत्र में सदा भावना अनूठी है। रायचूर वर्षावास में ही मेरे मन में आगे बढ़ते रहें। यह भव्य भावना जागृत हुई कि ऐसा महान् तपस्वी अनासक्तयोगी गुरुदेव
श्री चुन्नीलाल जी धर्मावत
कोषाध्यक्ष, श्री तारकगुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर] परम श्रद्धय सदगुरुवर्य के सम्बन्ध में क्या लिखू, कुछ किन्तु ग्रन्थालय के कार्य के कारण इन वर्षों में गुरुदेव श्री समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि भाव असीम है और के अत्यन्त निकट रहने का सौभाग्य मुझे बार-बार मिला भाषा ससीम है । असीम भावों को ससीम शब्दों में बांधना है। मैंने गुरुदेव श्री के जीवन को बहुत ही निकटता से उसी तरह कठिन है जिस तरह विराट् सागर को नन्हें से देखा है। मुझे यह लिखते हुए अपार हर्ष है कि गुरुदेव श्री गागर में भरना। गुरुदेवश्री हमारे आराध्यदेव हैं। उनका का जीवन बहुत ही ऊपर उठा हुआ है। ग्रन्थालय के निर्मल व्यक्तित्व और बहु आयामी कृतित्व हमारे लिए सदा विकास में गुरुदेव का आशीर्वाद अवश्य रहा है, किन्तु ही आदर्श रहा है । हम उनके द्वारा बताये गये मार्ग पर गुरुदेवश्री सदा अनासक्त रहे हैं। उनके अन्तर्मानस में सदा चलते रहे हैं। और भविष्य में भी सदा चलते रहने किंचित् मात्र भी लगाव नहीं है। सदा उन्होंने यही कहा का दृढ़ संकल्प है।
है कि सन्त का कार्य सन्त करे और गृहस्थ का कार्य ___गुरुदेवश्री के पावन उपदेश से पदराडा में श्री तारक गृहस्थ करें। सन्तों को गृहस्थ के कार्य में दखल करना गरु जैन ग्रन्थालय की स्थापना हुई। ग्रन्थालय ने कुछ ही योग्य नहीं है। वस्तुतः अद्भुत है गुरुदेव श्री की त्याग की समय में जन-जन के मन में आकर्षण पैदा किया। मेरे निर्मल भावना। अन्तर्मानस में ये विचार लहराने लगे कि ग्रन्थालय का मुझे यह लिखते हुए सात्विक गौरव होता है कि गुरुप्रधान कार्यालय उदयपुर हो तो समाज की अधिक सेवा देव श्री हमारे समाज के एक देदीप्यमान तेजस्वी सितारे हो सकती है, किन्तु उदयपुर में ग्रन्थों के रखने हेतु मकान हैं। उनके जैसी विमल विभूतियाँ बहुत ही कम हैं । गुरुका अभाव था। मैंने अपने हृदय की बात अपने स्नेही देव श्री की दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर ग्रन्थालय ने साथियों से कही, उन्हें मेरी बात पसन्द आयी। और अनेक ग्रन्थ प्रकाशित कर अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की है। गुरुदेव श्री का भी मंगल आशीर्वाद हमें प्राप्त हुआ जिसके और राजस्थानकेसरी अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन समिति फलस्वरूप ग्रन्थालय का भव्य भवन हम ले सके। और की ओर से ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है यह भी प्रसन्नता उत्कृष्ट मौलिक तथा सर्वजनोपयोगी साहित्य का प्रकाशन की बात है। प्रत्येक श्रद्धालु का कर्तव्य है कि सद् गुरुदेव कर ग्रन्थालय ने प्रसिद्ध साहित्य संस्थान के रूप में कीर्ति के चरणों में अपनी श्रद्धा समर्पित करे। प्राप्त की है। मेरा परम सौभाग्य रहा कि प्रस्तुत संस्थान मैं इस मंगलमय प्रसंग पर श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थकी अभिवृद्धि में मेरा कुछ योगदान रहा। यों गुरुदेव श्री लय परिवार की ओर से अपनी भाव-भीनी श्रद्धा गुरु चरणों का सम्बन्ध हमारे परिवार के साथ अतीतकाल से है। में समर्पित करता हूँ कि आपश्री युग-युग तक हमें मार्गदर्शन हम सात पीढ़ी से आपकी ही परम्परा के अनुयायी रहे हैं। देते रहे जिससे हम सदा निर्माण पथ पर आगे बढ़ते रहें ।
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