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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार।
"तभावेनाव्ययं तदभावाव्ययं नित्यमिति निश्चीयते।" सर्वार्थसिद्धि ५।३१
अर्थ-जिस वस्तु का जो भाव है उसरूप से च्युत न होना तद्भावाव्यय है अर्थात् नित्य है ऐसा निश्चित होता है।
'अवस्थित' शब्द से यह बतलाया गया कि अनेक परिणमन होने पर भी धर्म, अधर्म, काल, आकाश और पुद्गल कभी चेतनरूप नहीं परिणमते और जी द्रव्य कभी प्रचेतनरूप नहीं परिणमते । राजवातिक अध्याय ५ सूत्र ४ वार्तिक ४। इसप्रकार जो द्रव्यगत स्वभाव है उसको अन्यथा करने में कोई भी समर्थ नहीं है ।
-जं.ग. 21-12-67/VII/ मुमुक्ष द्रव्यों में एक प्रदेश स्वभाव शंका-अखंडता होने के कारण जीव के एक प्रदेशी स्वभाव लिखा था। परन्तु इस अपेक्षा तो धर्म, अधर्म और आकाश के भी एक प्रदेश स्वभाव होना चाहिये क्योंकि वे भी तो अखंड द्रव्य हैं ?
समाधान-धर्म, अधर्म और आकाशद्रव्यों में भी एकप्रदेश स्वभाव है। कहा भी है-'भेदकल्पनानिरपेक्षेणेतरेषां धर्माधर्माकाशजीवानां चाखण्डत्वादेकप्रदेशत्वम् ।' भेद-कल्पना की निरपेक्षता से धर्म, अधर्म, आकाश और जीव द्रव्यों के भी अखंड होने के कारण एक प्रदेश स्वभाव है। आलाप-पद्धति ।
-जं. ग. 23-4-64/1X/ मदनलाल समी द्रव्य आकार सहित हैं शंका-कालद्रव्य और आकाशद्रव्य आकारसहित है या आकाररहित है, क्योंकि मैंने एकस्थान पर पढ़ा कि द्रव्य में सामान्यगुण होने के कारण प्रवेशत्वगुण की अपेक्षा आकारसहित है। यदि यह सामान्यगुण की अपेक्षा आकारसहित है तो निरंश परमाणु को भी आकारसहित मानना पड़ेगा अथवा सिद्धों में भी आकार मानना पड़ेगा?
समाधान–प्रत्येक द्रव्य प्राकारसहित हैं। कोई भी द्रव्य निराकार नहीं है। निराकार द्रव्य हो ही नहीं सकता। परमाणु का आकार गोल है। श्री जिनसेनाचार्य ने कहा है
अणवः कार्यलिङ्गाः स्युः द्विस्पर्शाः परिमण्डलाः ।
एकवर्णरसा नित्याः स्युरनित्याश्च पर्ययः ॥१४८॥ आदिपुराण पर्व २४ परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, इन्द्रियों से नहीं जाने जाते । घट-पट आदि परमाणुनों के कार्य हैं उन्हीं से उनका अनुमान किया जाता है । परमाणु में कोई भी दो अविरुद्ध स्पर्श रहते हैं, एकवर्ण, एकगंध, एकरस, रहता है। वे परमाणु गोल और नित्य होते हैं तथा पर्याय की अपेक्षा अनित्य भी होते हैं। सिद्धों का भी पुरुषाकार है जो अन्तिम शरीर से कुछ कम है।
णिक्कमा अढगुणा किंचूणा चरमदेहदो सिद्धा। लोयग्गठिवा णिच्चा उप्पादवएहि संजुत्ता ॥१४॥ पुरिसायारो अप्पा सिद्धो झाएह लोयसिहरत्थो ॥५१॥ द्रव्यसंग्रह
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