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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
ज्ञानोपासना, साधुसंगति और व्रतनिष्ठा ये आपके प्रादर्शजीवन के मूलाधार थे । पण्डितजी अगाधज्ञान की निधि होते हुए भी ज्ञानमदरहित, सरलस्वभावी, मिलनसार, एषणाविरहित, साधुस्वभाव के सत्पुरुष व मानवरत्न थे। आप दिगम्बर जैन समाज की शोभा थे ।
करीब ७६ वर्ष की आयु में आप दिवङ्गत हुए। आपका भौतिक शरीर यद्यपि आज नहीं रहा तथापि आपका आदर्श श्रावक मात्र के मानस पटल पर स्थायीरूपेण अङ्कित है एवं रहेगा।
मैं आपको भक्तिसमेत अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ।
सेवाभावी, विनयशील मुख्तार सा० * श्री ज्ञानचन्द्र जैन 'स्वतन्त्र' शास्त्री, गञ्जबासौदा, म० प्र०
आदरणीय विद्वान् बन्धु स्व० ब्र० पण्डित रतनचन्दजी मुख्तार सहारनपुर वाले, जैन समाज के जाने माने विद्वान् थे । बहुश्रुतज्ञ, बहु श्रुताभ्यासी, धवला, जयधवला व महाधवला ग्रन्थों के अच्छे ज्ञाता थे। प्रकरणवश इन्हीं आगम ग्रन्थों का प्रमाण देते थे । मुख्तारी को छोड़कर आत्मकल्याण में लग जाना यही आपके जीवन की विशेषता थी। यही मानव जीवन की सफलता भी थी। सेवाभावी :
मुख्तार सा० से सबसे पहले मेरा परिचय सन् १९५३ के सितम्बर मास में ईसरी बाजार में हुआ था । पर्युषण के बाद आसोज कृष्णा चतुर्थी को पूज्य क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी की जन्मजयन्ती प्रतिवर्ष विद्वानों, श्रीमानों एवं समाज की ओर से सुन्दर ढंग से विविधकार्यक्रमपूर्वक मनायी जाती थी। मुझे भी वर्णीजयन्ती समारोह का निमंत्रण मिला था अतः मैं सूरत से जयन्ती समारोह में भाग लेने के लिए ईसरी गया था।
बिहार प्रान्त मच्छरों के लिये प्रसिद्ध है। वहाँ मच्छरों के प्रकोप से मलेरिया होने के कारण प्रतिवर्ष सहस्राधिक व्यक्ति मरते हैं। ब्रह्मचारियों के कमरे में मुझे ठहराया गया था; उसी कमरे में पं० रतनचन्दजी मुख्तार भी ठहरे हुए थे । ईसरी पहुँचने के ५-६ घन्टे बाद ही मुझे मलेरिया ने धर दबोचा। बड़े जोर से बुखार चढ आया। ठण्ड और कम्पन के कारण चार-चार रजाइयाँ भी अपर्याप्त थीं। जब मुख्तार सा० को ज्ञात हा कि स्वतन्त्रजी को बुखार चढ़ आया है तो वे उसी समय डाक्टर को बुला कर लाये । डॉ० सा० ने दवा दी, इंजेक्शन लगाया पर लाभ न हुआ।
तीन दिन तक बुखार न उतरा। तब मुख्तार सा० सेवाभावी, परोपकारी, धर्मात्मा सज्जन श्रीमान बद्रीप्रसादजी सरावगी पटनावालों को मेरे कमरे में लेकर आए और मुझे दिखाकर बोले कि स्वतन्त्रजी को अभी पटना ले चलना है। उसी समय उनकी कार में मैं पटना चला आया, साथ में मुख्तारजी भी आये । दो दिन पटना रहने पर बुखार कुछ कम हुआ। इन पाँच दिनों में मुख्तार सा० निरन्तर मेरी सेवा-सुश्रूषा एवं परिचर्या में ही लगे रहे।
छठे दिन जब मैं ज्वरमुक्त हो गया तब मुख्तार सा० और मैं दोनों पटना से साथ-साथ रवाना हुए । वे सहारनपुर उतर गए, मैं सूरत चला आया। इन पांच दिनों के बीच मुख्तार सा० ने माता-पिता की तरह मेरी
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