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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ८२५ स तु शक्तिविशेषः स्याउजीवस्याघातिकर्मणाम् । नामादीनां त्रयाणां हि निर्जराकृद्धि निश्चितः ॥४३॥ वण्डकपाटप्रतरलोकपूरणक्रियानुमेयोऽपकर्षणपरप्रकृतिसंक्रमणहेतुर्वा भगवतः स्वपरिणामविशेषः शक्तिविशेषः सोऽन्तरंङ्गसहकारी निःर्थ यसोत्पत्ती रत्नत्रयस्थ: तदभावे नामाद्यघातिकर्मत्रयस्य निर्जरानुपपत्तेः निःश्रेयसानुत्पत्तेः। आयुषस्तु यथाकालमनुभवादेव निर्जरा न पुनरपक्रमात्तस्यानपवय॑त्वात् । तदपेक्षं क्षायिकरत्नत्रयं सयोगकेबलिनः प्रथमसमये मुक्ति न सम्पादयत्येव, तदा तत्सहकारिणोऽसत्त्वात् । क्षायिकत्वान्न सापेक्षमहद्रत्नत्रयं यदि । किन्न क्षीणकषायस्यहरुचारित्रे तथा मते ॥४४॥ केवलापेक्षिणी ते हि यथा तद्वच्च तत्त्रयम् । सहकारिव्यपेक्ष स्यात क्षायिकत्वेनपेक्षिता ॥४५॥ इसका अभिप्राय निम्न प्रकार है प्रश्न-यदि रत्नत्रय को ही मोक्ष के कारणपने का सूचना करनेवाला पहला सूत्र रचा गया है तो केवलज्ञान उत्पन्न होने पर वह रत्नत्रय मरहंतदेव को एकक्षण पश्चात् ही मोक्ष क्यों उत्पन्न नहीं करा देता? उत्तर-कार्य की उत्पत्ति में सहकारी कारणों की भी अपेक्षा रहती है, किन्तु वह सहकारीकारण केवलज्ञान के प्रथम क्षण में नहीं है इसलिये मुक्ति नहीं होती। प्रश्न-वह सहकारी कारण कौनसा है जो रत्नत्रय के पूर्ण होने पर भी अपेक्षित हो रहा है, जिसके प्रभाव में अर्हन्तदेव मुक्ति को प्राप्त नहीं करते हैं ? __ उत्तर--नाम, गोत्र और वेदनीय इन तीन अघातिया कर्मों की निर्जरा करनेवाली आत्मा की विशेषशक्ति सहकारीकारण निश्चितरूप से मानी गयी है । दण्ड, कपाट, प्रत्तर, लोकपूरण क्रिया तथा अपकर्षण, पर-प्रकृति संक्रमण के कारण परिणाम विशेष; ये प्रात्मा की विशेष शक्तियां मोक्ष की उत्पत्ति में रत्नत्रय के अंतरंग सहकारी कारण हो जाती हैं जिनके अभाव में नाम, गोत्र और वेदनीय; इन तीन प्रघातियाकर्मों की निर्जरा नहीं हो सकती और मोक्ष भी प्राप्त नहीं हो सकता। प्रायु तो अपने समयपर फल देकर निर्जरा को प्राप्त होती, उसकी उपक्रम विधि से निर्जरा नहीं होती, क्योंकि वे अनपवायुष्क हैं। सहकारीकारणों की अपेक्षा रखनेवाला क्षायिकरत्नत्रय तेरहवेंगुणस्थान के प्रथमसमय में मुक्ति को प्राप्त नहीं करा सकता, क्योंकि उससमय सहकारीकारणों का अभाव है। प्रश्न-श्री प्रहंत भगवान के क्षायिकरत्नत्रय होने से वह किसी की अपेक्षा नहीं रखता। प्रतिप्रश्न-क्षीणकषाय का क्षायिकसम्यग्दर्शन-चारित्र मोक्ष क्यों नहीं प्राप्त करा देता? प्रतिप्रश्न का उत्तर-क्षीणकषाय का क्षायिकदर्शन व चारित्र केवलज्ञान की अपेक्षा रखता है। इसलिये मुक्ति नहीं प्राप्त करा सकता। प्रश्न का उत्तर-उसीप्रकार क्षायिकरत्नत्रय भी सहकारी कारणों की अपेक्षा रखता है। क्षायिकगुण किसी की अपेक्षा नहीं रखता है इसका अभिप्राय यह है कि अपने स्वरूप को प्राप्त कराने में वे अन्य गुणों की प्रावश्यकता नहीं रखते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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