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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार।
समाधान-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह; इन पाँच पापों के त्यागरूप जो पांचमहावत हैं वे ही यहाँ पर पांच मूलगुण कहे गये हैं।
-पवाधार 77-78/ ज. ला. जैन, श्रीण्डर
उद्दिष्ट आहार के भेद शंका-मुनियों के आहार में भावक के आश्रित १६ उद्गम दोषों में उद्दिष्ट का क्या अर्थ है ? समाधान-मूलाचार पिंड शुद्ध्यधिकार में औद्देशिक दोष का निम्नप्रकार कथन किया है--
जावदियं उद्देसो पासंडोत्ति य हवे समुद्दसो ।
समणोत्ति य आदेसो णिग्गंयोत्ति य हवे समादेसो ॥ ७ ॥ अर्थ-औद्देशिक के चार भेद हैं। (१) यावानुद्दे श (२) पाखंडी समुद्देश (३) श्रमणादेश (४) निग्रन्थसमादेश । सामान्यों के उद्देश्य से, पाखंडियों के उद्देश्य से, श्रमणों के उद्देश्य से और निग्रंथों के उद्देश्य कर जो आहार बनाना वह चार प्रकार का औद्देशिक दोष होता है। उद्देश से बनवाये पाहार को औद्देशिक प्राहार कहना चाहिए । विशेष इसप्रकार है-१. जो कोई आवेंगे उन सबको मैं भोजन दूंगा ऐसा उद्देश-संकल्प मन में करके जो भोजन बनाया जाता है उसको यावानुद्देश कहते हैं । २. जो कोई पाखंडी आगे उन सबको आहार देऊंगा ऐसे उद्देश से बनाये गये आहार को पाखंडी समुद्देश कहते हैं । ३. जो कोई श्रमण आजीवक तापस, रक्तपट, पारिव्रा. जक और छात्र शिष्य आवेंगे उन सबको मैं आहार देऊंगा, ऐसे संकल्प से बनाये हुए आहार को श्रमणादेश कहते हैं। ४. जो कोई निर्ग्रन्थ मुनि पावेगे उनको मैं आहार देऊंगा। ऐसे उद्देश से आहार बनाया जाता है उसको निग्रंथ समादेश कहते हैं। [ मूलाचार पृ. २४३ ]
जो आहार अपने लिये तो न बनाया जावे मात्र उपयुक्त चार प्रकार के उद्देश से बनाया जावे वह उद्दिष्ट आहार है।
-ण. ग. 29-7-65/XI/ कैलाशचन्द्र उत्कृष्ट श्रावक (क्षुल्लक ) मुनि को प्राहार दे सकता है शंका-क्या क्षुल्लक मुनि को आहार दे सकता है ? कैसे ।
समाधान-क्षुल्लक के आहार के दो विधान हैं। (१) एक ही श्रावक के यहाँ भोजन करे। (२) नाना श्रावकों के घर से-थोड़ा-थोड़ा भोजन लाकर अन्तिम श्रावक के घर पर उस प्राप्त भोजन को ग्रहण करे। जो भोजन नाना श्रावकों के घर से वह (क्षुल्लक ) लाया है, उसका स्वामी प्रब वह स्वयं है । अतः यदि उस अन्तिम श्रावक के घर पर मुनि पाजाय तो वह क्षुल्लक अपने प्राप्त आहार में से मुनि को दे सकता है।
-पवाचार 9-8-77) /ज. ला. जैन, भीण्डर महाव्रती प्रायिकाएं मुनि-स्तुत्य होती हैं शंका-स्त्रियों के पांचवां गुणस्थान ही होता है फिर उन्हें मागम में मुनियों के द्वारा स्तुत्य क्यों कहा गया है?
समाधान-यद्यपि द्रव्य स्त्री के पांचवां गुणस्थान ही होता है तथापि बढ़ शील आदि गुणों के कारण वे मुनियों के द्वारा स्तुतियोग्य अर्थात् प्रशंसनीय होती हैं, जैसे सीता आदि । यहां स्तुतियोग्य से प्रशंसनीय लेना चाहिए।
-पत्राचार 15-4-79/-.ला. गेंन, भीण्डर
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