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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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द्रव्यलिंग कार्य है। द्रव्य लिंग कारण है और संयमरूप भावलिंग कार्य (साध्य) है। संसार, देह भोगों का स्वरूप विचार निमित्त है, वस्त्रत्यागादिरूप द्रव्यलिंग नैमित्तिक क्रिया है। तत्पश्चात् द्रव्यलिंग निमित्त है और भावलिंग ( संयम ) नैमित्तिक भाव हैं ।
-जं. ग.7-5-64/XI/ सरदारमल द्रव्यलिंग व भावलिंग में कारण-कार्यपना शंका-क्या वयलिंग के बिना भालिंगी मुनि हो सकता है ? ___ समाधान-द्रव्यलिंग के बिना संयम अर्थात् भावलिंग नहीं हो सकता है, क्योंकि वस्त्र भावअसंयम का अविनाभावी है। श्री वीरसेनाचार्य ने धवल पु. १ में कहा भी है।
"भावसंयमस्तासां सवाससामध्यविरुद्ध इति चेत्, न तासां भावसंयमोऽस्ति भावासंयमाविनामाविवस्त्रापाद्य - वानान्यथानुपपत्तेः।"
अर्थ-वस्त्रसहित होते हुए भी भावसंयम के होने में कोई विरोध नहीं आना चाहिए ? वस्त्र सहित के भावसंयम नहीं है, क्योंकि भावसंयम के मानने पर, उनके भावप्रसंयम का अविनाभावी वस्त्रादिक का ग्रहण करना नहीं बन सकता है। श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने भी कहा है
णिज्चेलपाणिपत्त उवट्ठ परमजिणवारदेहि । एक्को वि मोक्खमग्गोसेसा य अमग्गया सवे ॥१०॥ सूत्रपाहड
वस्त्ररहित दिगम्बरमुद्रारूप और करपात्र में खड़ा होकर प्राहार करना ऐसा द्रव्यलिंग एक अद्वितीय मोक्षमार्ग तीर्थंकर परमदेव जिनेन्द्र ने उपदेश्या है। इस सिवाय अन्य रीति हैं वे सर्व अमार्ग हैं ।
णवि सिज्झइ वत्थधरो जिणसासण जइ वि होई तिस्थयरो।
जग्गो विमोक्खमग्गो सेसाउम्मग्गया सवे ॥ २३ ॥ सूत्रपाहड़ जिन शासन विर्षे ऐसा कहा है कि वस्त्र का धरने वाला मोक्ष नहीं पावे है। तीर्थंकर भी होय तो जैसे गृहस्थ रहै तेतै मोक्ष न पावे, दीक्षा लेय दिगम्बर रूप धारे तब मोक्ष पावे, जाते नग्नपणा है सो ही मोक्षमार्ग है शेष सब लिंग उन्मार्ग हैं।
'द्रव्यलिंगमिदं ज्ञेयं भावलिंगस्यकारणं ।' ( षट्प्राभृत संग्रह १२९ ) यह द्रव्यलिंग भावलिंग का कारण है । इसलिये कहा है'द्रयलिगं समास्थाय भावलिंगी भवेद्यतिः ।' द्रव्य लिंग को धारण करके ही यति भावलिंगी होते हैं।
जिनके दिगम्बरेतर समाज के संस्कार हैं वे उन संस्कारों के वश सवस्त्र को परमगुरुदेव मानते हैं, वस्त्र. सहित के अप्रमत्तसंयत नामक सातवाँगुणस्थान मानते हैं, क्योंकि उनका ऐसा सिद्धान्त है कि परद्रव्यरूप वस्त्र से भावसंयम की हानि नहीं हो सकती है।
-जं. ग. 10-4-69/V/ इन्दौरीलाल
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