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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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स्वायुराधष्ट वर्षेभ्यः सर्वेषां परतो भवेत् ।
उदिताष्टकषायाणां तीर्थेषां देशसंयमः ॥३५॥ प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन इन पाठ कषायों का उदय तो नष्ट नहीं हुआ है। किन्तु अनन्तानुबन्धी और अप्रत्याख्यानावरण इन आठ कषायों का उदयअभाव हो जाने से सभी तीर्थंकरों के अपनी प्राय के प्रारम्भिक आठ वर्ष के पश्चात् देश संयम हो जाता है।
इस पाषं वाक्य से तीर्थंकरों के अणुव्रत की सिद्धि हो जाती है, क्योंकि अणुव्रत के बिना देश संयम नहीं हो सकता।
-जं. ग. 13-1-72/VII/ ग. म. सोनी श्रावक खेती कर सकता है शंका-अहिंसा अणुव्रत बाला श्रावक खेती आदि तथा अन्य व्यापार कैसे कर सकता है, क्योंकि इनमें महारंभ व स हिंसा होती है । खेती आदि में भावहिंसा व द्रयहिंसा दोनों होती हैं ?
समाधान-श्रावक संकल्पी हिंसा का त्यागी है । उद्योगी, आरंभी व विरोधी हिंसा का उसके त्याग
हिसा द्वधा प्रोक्ताऽरंभानारंभजत्वतोदक्षः । गृहवासतो निवृत्तो धापि त्रायते तां च ॥ ६/६ ॥ गृहवाससेवनरतो मंद कषायः प्रवृत्तितारंभा:।
आरंभजां स हिंसा शक्नोति न रक्षितु नियतम् ॥६/७॥ अमित. श्राव. अर्थ-हिंसा दो प्रकार की है (१) प्रारम्भ जनित (२) अनारम्भ जनित । गृहवास से निवृत्त मुनि तो दोनों प्रकार की हिंसा का त्याग करे है। गृहवास के सेवने में रत श्रावक मंदकषाय से आरंभ करे हैं, इसलिये आरम्भ-जनित हिंसा का त्याग करने को समर्थ नहीं है। खेती आदि के प्रारम्भ में जो त्रसहिंसा होती है श्रावक उसका त्यागी नहीं है।
-जें. ग. 25-12-69/VIII/रो. ला. नन _ [अधस्तन प्रतिमाधारी ] पंचमगुणस्थानवर्ती युद्ध में लड़ सकता है शंका-क्या पंचमगुणस्थानवर्ता युद्ध में लड़ता भी है ? देशसंयमी कैसे लड़ सकते हैं ?
समाधान-अपने देश व धर्म की रक्षा हेतु पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक युद्ध में लड़ सकता है, क्योंकि वह विरोधी हिंसा का त्यागी नहीं है। वह तो मात्र संकल्पीहिंसा का त्यागी है।
-पताचार 15-11-75/ ज. ला. जन, भीण्डर सामायिक काल में श्रावक के महावतों का उपचार शंका-सर्वार्थ सिद्धि ग्रंथ अध्याय ७ सूत्र २१ में सामायिक के काल में श्रावक के महाव्रत कहे हैं। क्या चौथे गुणस्थान वाला महाव्रती हो सकता है ? यदि सवस्त्र के महावत हो सकते हैं तो सवस्त्र के मुक्ति भी सिद्ध हो जायगी?
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