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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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होगा। और उपदेश के निरर्थक होने पर एक ही प्रात्मा को रागादिभावों का निमित्तत्व आजायगा, जिससे नित्यकतत्व का प्रसंग पाजायगा. और उससे मोक्ष का अभाव सिद्ध होगा। इसलिये परद्रव्य ही आत्मा के रागादिभावों का निमित्त है।"
मद्य, मांसादि पापों के स्थानों का त्याग करके निर्मल बुद्धिवाले पुरुष जिनधर्म के उपदेश के पात्र होते हैं (पुरुष र्थसिद्धयुपाय श्लोक ७४ )। अंजनचोर आदि अनेक पुरुष सप्तव्यसन का त्याग करके उसी भव से मोक्ष गये हैं । पुराण ग्रन्थों से इनकी कथाएं जानी जा सकती हैं ।
-. ग. 26-9-63/IX/शा. कु. बड़जात्या मद्य-मांस आदि के सेवन करने वाले धर्मोपदेश के पात्र भी नहीं हैं शंका- असंयतसम्यग्दृष्टि के अप्रत्याख्यानकषाय का उदय है, इसलिये उसके चारित्र नहीं होता। चारित्र के अभाव में मद्य, मांस का त्याग भी नहीं होता। क्या सम्यग्दृष्टि मद्य, मांस, मधु का सेवन करता है ?
समाधान-असंयतसम्यग्दृष्टि के अप्रत्याख्यानावरणकषाय का उदय होने से अहिंसा आदि व्रत नहीं होते हैं, किंतु इसका यह अभिप्राय नहीं है कि सम्यग्दृष्टि मद्य, मांस, मधु का सेवन करता है। जिसके मद्य, मांस, मधु का त्याग नहीं है, उसको सम्पग्दर्शन भी उत्पन्न नहीं हो सकता, क्योंकि विशुद्धपरिणामवाले के सम्यग्दर्शन होता है। प्रथमोपशमसम्यक्त्व से पूर्व पाँचलब्धियां होती हैं उनमें से दूसरी विशुद्धिलब्धि ( अर्थात् परिणामों की विशुद्धता ) है। मद्य, मांस, मधु भक्षण करने वाले के परिणाम विशुद्ध नहीं हो सकते, अतः उसके सम्यग्दर्शन भी नहीं हो सकता। जो मद्य, मांस, मधु का सेवन करनेवाला है, वह जिनधर्म के उपदेश का भी पात्र नहीं है ।
अष्टावनिष्टदुस्तरदुरितायतनान्यमूनि परिवर्य ।
जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः ॥७४॥ पु. सि. उ. मद्य, मांस, मधुत्याग बिना जब मनुष्य धर्मोपदेश का भी पात्र नहीं है, तो उसके सम्यग्दर्शन कैसे सम्भव हो सकता है ? अतः सम्यग्दर्शन से पूर्व मद्य, मांस, मधु आदि का त्यागरूप आचरण अवश्य चाहिये ।
-जे. ग. 17-7-67/VI/न. प्र. म. कु. सप्त व्यसन त्यागी लाटरी का टिकिट नहीं खरीद सकता
शंका-सप्त व्यसन का त्यागी क्या लाटरी टिकिट खरीद सकता है ?
समाधान-सप्त व्यसन निम्न प्रकार हैं
जयं मज्जं मंसं वेसा पारदि-चोर परयार।
दुग्गइगमणस्सेदाणि हेउभूवाणि पाबाणि ॥५९॥ बसुनन्दि श्रावकाचार अर्थ-जुआ, शराब, मांस, वेश्या, शिकार, चोरी और परदार सेवन, ये सातों व्यसनदुर्गति-गमन के कारणभूत पाप हैं।
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