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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार : चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण के हेतु का कथन शंका-तिलोयपण्णत्ती में 'राहु' का कथन तो है, किंतु उसके कारण चन्द्रमा का ग्रहण होता है ऐसा कथन नहीं है । चन्द्रमा का ग्रहण राहु के कारण होता है या स्वभाव से होता है ?
समाधान-तिलोयपण्णती सर्ग ७ गाथा २०५ में दो प्रकार के राहु का कथन है। एक राहु तो प्रतिदिन चन्द्रमा की एक-एक कला को आच्छादित करता है और दूसरे राहु के कारण ग्रहण होता है। वे गाथा इस प्रकार हैं
राहूण पुरतलाणं दुविहप्पाणि हुवंति गमणाणि । दिणपक्ववियप्पेहि दिणराह ससिसरिच्छगदी ॥२०॥ आदे ससहरमंडलसोलसभगेसु एक्कभागंसो । आवरमारणे दीसइ राहूलंघणविसेसेणं ॥२०॥ ससिबिबस्स विणं पडि एक्केक्कपहम्मि भागमेक्केक्कं। पच्छादेदि हु राहू पण्णरसकलाओ परियंते ॥२११॥ पुह पुह ससिबिबाणि छम्मासेसु च पूणिमंत म्मि ।
छाति पम्वराहू णियमेण गदिविसेसेहिं ॥२१६॥ अर्थ-दिन और पर्व के भेद से राहओं के पुरतलों के मन दो प्रकार होते हैं। इनमें दिन-राह की गति चन्द के सदृश होती है। द्वितीय वीथी को प्राप्त होने पर राह के गमन-विशेष से चन्द्र मण्डल के सोलह भागों में से एक भाग पाच्छादित दिखता है। राहु प्रतिदिन एक-एक पथ में पन्द्रह कला पर्यंत चन्द्र-बिम्ब के एक-एक भाग को आच्छादित करता है। पर्वराहु नियम से गति विशेषों के कारण छह मासों में पूर्णिमा के अन्त में पृथक्-पृथक् चन्द्रबिंबों को आच्छादित करते हैं।
लोक विभाग पर्व ६ श्लोक २२ तथा त्रिलोकसार गाथा ३३९ में भी चन्द्र व सूर्य के ग्रहण का कथन है। जो राहु व केतु के कारण होता है ।
-जै. ग. 3-9-70/VI/ अनिलकुमार गुप्ता __ मेरु से कल्पवासी के विमान की दूरी शंका-सुमेरु पर्वत से कितनी ऊंचाई पर कल्पवासी देवों का विमान है ?
समाधान-सुदर्शन मेरु की चूलिका के और प्रथम ऋतु इंद्रक विमान के बीच एक बाल के अग्रभाग का अंतराल है। श्री १०८ नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य ने कहा भी है
गामिगिरिचूलिगुवरि बालग्गंतरहियो हु उडुइंदो ॥ त्रिलोकसार गा० ४७० श्री यतिवृषभाचार्य ने भी कहा है
कणयहिचूलिउरि उत्तरकूमणुयएक्कवालस्स ।
परिमाणोणंतरिदो चे?दि हु इंदओ पढमो ॥ तिलोयपणत्ती कनकाद्रि अर्थात मेरु की चूलिका के ऊपर उत्तर कुरुक्षेत्रवर्ती मनुष्य के एक बाल मात्र के अन्तर से प्रथम इन्द्रक विमान स्थित है।
-जं. ग. 8-8-74/VI/ रो. ला. मित्तल
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