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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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अर्थ-जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं। उन दोनों की चार पृथ्वी एक ही है। इस बार पृथिवी का विस्तार सूर्यबिम्ब से अधिक चार सौ दस योजन प्रमाण है। इस प्रकार ६ महीने में १८३ गलियों को एक सूर्य पार कर लेता है।
-जं. ग. 15-1-70/VII राजकिनोट जंबद्वीप में सर्य की संख्या और उनका चार-क्षेत्र शंका-जम्बूद्वीप में सूर्य को होय हैं जिनका गमन क्षेत्र ५१० योजन है। जिसमें से ३३० योजन गमन क्षेत्र जम्बूद्वीप से बाहर लवण समुद्र पर है । जम्बूद्वीप का सूर्य लवण समुद्र पर भ्रमण करे तो जहाँ लवण समुद्र में चार सूर्य बताये वहां पर सूर्यों की संख्या छह हो जायगी ? .
समाधान-शंकाकार ने स्वयं जम्बूद्वीप में दो सूर्य माने हैं। इनका गमन क्षेत्र जम्बूद्वीप से मिले हुए बाहरी भाग में हो जाने से क्या ये जम्बूद्वीप के सूर्य नहीं रहेंगे । यदि जम्बूद्वीप से मिले हुए बाहरी क्षेत्र में इन सूर्य के गमन करने मात्र से ये लवणसमुद्र के सूर्य हो जावें तो जम्बूद्वीप में सूर्यों का अभाव हो जाने से आगम से विरोध मा जायगा, क्योंकि आगम में जम्बूद्वीप के दो सूर्यों का उपदेश पाया जाता है । वह आगम इस प्रकार है
जंबूदीवम्मि दुवे दिवायरा ताण एक्कचारमही ।
रविविवाधियपणसयदहुत्तरा जोयणाणि तव्वासो ॥ ति० ५० ७।२१७ अर्थ-जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं। उनकी बार पृथिवी ( गमन क्षेत्र ) एक ही है। इस चार पृथिवी का विस्तार सूर्य बिम्ब से अधिक पांच सौ दश योजन प्रमाण है।
-जं. ग. 12.3-64/IX/स. कु. सेठी ग्रहण प्रादि के समय चन्द्रविमानस्थ जिनबिम्ब की स्थिति शंका-चन्द्रमा के विमान में जिन बिम्ब विराजमान हैं तो अमावस्या, प्रतिपदा व द्वितीया के दिन जिस समय चन्द्रमा की कला कम हो जाती है उस समय या ग्रहण के समय जिन बिम्ब कहाँ रहता है ?
समाधान-अमावस्या, प्रतिपदा व द्वितीया के दिन या अन्य तिथियों में अथवा ग्रहण के समय भी चंद्रमा का विमान ज्यों का त्यों पूर्ण रहता है। चन्द्रमा का विमान घटता बढ़ता नहीं है किंतु चन्द्रविमान के नीचे कृष्ण वर्णवाला राह का विमान आ जाने से हमको पूर्ण चन्द्रविमान दिखाई नहीं देता। जब चन्द्रबिमान ज्यों का त्यों बना रहता है तो उसमें विराजमान जिनबिम्ब भी ज्यों का त्यों रहता है। कहा भी है
ससिबिबस्सविणं पडि एक्केक्क पहम्मिमागमेक्केक्कं । पच्छादेवि ह राह पण्णरसकलाओ परियंतं ॥२११॥ इय एक्कक्क कलाए आवरिदाये ख राह विवेणं । चंवेषक कला मग्गे अस्सि विस्सेदि सो य अमवासो ॥२१२॥ ति. प. अ.७
अर्थ-राह प्रतिदिन एक-एक पथ में पन्द्रह कला पर्यन्त चन्द्रबिंब के एक-एक भाग को पाच्छादित करता है। इस प्रकार राहु बिम्ब के द्वारा एक-एक करके कलाओं के आच्छादित हो जाने पर जिस मार्ग में चन्द्र की एक ही कला दिखती है वह अमावस्या दिवस होता है।
-#. सं. 18-10-56/VI/ जैन वीर दल, निवाई
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