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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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समाधान-अनादि काल से जो जीव अभी तक निगोद में पड़े हए हैं वे नित्य निगोदिया जीव हैं, किंतु उस निगोद में भी योनि अनेक प्रकार की है सब ही योनियां एक प्रकार की नहीं हैं। वे योनियाँ सात लाख प्रकार की हैं। इसलिये नित्य निगोद की सात लाख योनि हैं।
-जं. ग. 6-13/5/65/XIV/मगनमाला तीर्थकर भगवान् जरायुज जन्म वाले होते हैं शंका-तीर्थकर भगवान का पोत जन्म होता है, क्या यह ठीक नहीं है ?
समाधान-श्री तीर्थंकर भगवान जरायुज होते हैं, उनके पोत जन्म नहीं होता है । जो जीव जरायुज हैं वे ही मोक्ष जाते हैं। अन्य जन्म वाले जीव मोक्ष नहीं जा सकते हैं, क्योंकि श्री तीर्थंकर भगवान उसी भव से मोक्ष जाते हैं अत: वे जरायुज हैं।
श्री अकलंकदेव ने राजवार्तिक में कहा भी है
"जरायुजग्रहणमादावभ्यहितत्वात् । सम्यग्दर्शनादि मार्गफलेन मोक्षसुखेन चाभिसंबन्धो नान्येषामित्यभ्यहितत्वम् । रा० वा० २।३३ ।
अर्थ-सूत्र में आदि विषं जरायुज का ग्रहण है सो जरायुज जन्म के अण्डज और पोत की अपेक्षा पूज्यपना तथा प्रधानपना है ताते प्रथम निर्देश है। सम्यग्दर्शन आदि मोक्षमार्ग का फल जे मोक्ष सुख, ताकरि अभिसम्बन्ध जरायुज जन्म के ही होय है, अन्य के नाहीं होय है । याते जरायुज जन्म सूत्र के विष आदि में ग्रहण है ।
श्री श्र तसागर आचार्य ने जिनसहस्रनाम को टीका में 'पद्मभूः' का अर्थ निम्न प्रकार है
"पद्य रुपलक्षिता, भूर्मातुरंगणंयस्येति पद्मभूः। अथवा मातुरुदरे स्वामिनो दिव्यशक्तया कमलं भवति, तत्कणिकायां सिंहासनं भवति, तस्मिसिंहासने स्थितो गर्भ रूपो भगवान वृद्धि याति, इति कारणात् पद्मभूभगवान् भण्यते, पाद भवति पद्मभूः।" ( जिनसहस्रनाम श्रुत०.३-३५ पृ० १५७ )
अर्थ-पापके गर्भ काल में माता के भवन का प्रांगण पद्मों से व्याप्त रहता है। अतः पाप पद्मभू हैं। अथवा गर्भकाल में आपके दिव्य पुण्य के प्रभाव से गर्भाशय में एक कमल की रचना होती है, उसकी कणिका पर एक सिंहासन होता है, उस पर अवस्थित गर्भरूप भगवान् वृद्धि को प्राप्त होते हैं, इस कारण से लोग भगवान को पपभू कहते हैं । पद्म से उत्पन्न होते हैं अतः पद्मभू हैं । श्री महापुराण में भी कहा है
सोऽभाद्विशुद्धगर्भस्थः त्रिबोध विमलाशयः ।
स्फटिकागारमध्यस्थः प्रवीप इव निश्चलः ॥२६४॥ पर्व १२ अर्थ-माता मरुदेवी के निर्मल गर्भ में स्थित तथा मति, श्रत और अवधि इन तीन ज्ञानों से विशुद्ध अन्तः करण को धारण करने वाले भगवान वृषभदेव ऐसे सुशोभित होते थे जैसा कि स्फटिक मणि के बने हुए घर के बीच में रखा हुआ निश्चल दीपक सुशोभित होता है। इस प्रकार श्री तीर्थकर भगवान का जरायुज जन्म होते हुए भी वे माता के गर्भ में निर्मल रहते हैं ।
-जं. ग. 23-9-65/IX/व. पन्नालाल
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