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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ५६३
अकालमरण के कारण :
कदलीघात मरण अर्थात अकाल मरण किन कारणों से होता है, उन कारणों को श्री १०८ भगवत् कुन्दकुन्द प्राचार्य निम्न दो गाथाओं में कहते हैं
विसवेयणरत्तक्खयभयसत्थग्गहणसंकिलेसाणं । आहारुस्सासाणं णिरोहणा खिज्जए आऊ ॥ २५॥ हिमजलणसलिलगुरुयरपन्वयतरुरुहणपडणभगेहि ।
रसविज्जजोयधारण अणयपसंगेहि विविहेहि ॥ २६ ॥ भावपाहुड़ अर्थ-विषभक्षणतें, वेदना की पीड़ा के निमित्ततें, रक्त कहिये रुधिर ताका क्षयत, भय तें, शस्त्रघाततें, संक्लेश परिणामतें आहार का तथा श्वास का निरोधतें, इन कारणनितें प्रायु का क्षय होय है ।। २५ । हिम कहिये शीत पालातें, अग्नितें जलनेतें, जल में डबनेतें, बड़े पर्वत पर चढकर गिरने तें, बड़े वृक्ष पर चढ़कर गिरने तें, शरीर का भंग होने से, रस कहिये पारा आदिक की विद्या ताका संयोग करि धारण करे भखे ऐसे अन्य अनेक प्रकार के कारणों तें आयु का व्युच्छेद होय है ॥ २६ ॥
यदि सोपक्रमायुष्क अर्थात् संख्यात वर्ष आयु वाले मनुष्य या तिथंच को उपर्युक्त कारणों में से एक या अधिक कारण मिल जायेंगे तो अकालमरण हो जायगा और यदि उपर्यत कारणों में से कोई भी कारण नहीं मिलेगा तो अकालमरण अर्थात् कदलीघात मरण नहीं होगा। कारण का कार्य के साथ अन्वय व्यतिरेक अवश्य पाया जाता है । कहा भी है
"तत्कारणकत्वस्य तदन्वयव्यतिरेकोपलम्भेन व्याप्तत्वात् कुलालकारणस्य घटादेः कुलालान्वयव्यतिरेकोपलम्भप्रसिद्धः। सर्वत्र वाधकाभावात् तस्य तद्व्यापकत्वव्यवस्थानात् । यत्र यदन्वयव्यतिरेकानुपलम्भस्तत्र न तन्निमित्तकत्वं दृष्टम् ।" ( आ० ५० का० ९ टीका )
अर्थ-यह निश्चित है कि जो जिसका कारण होता है उसका उसके साथ अन्वय-व्यतिरेक अवश्य पाया जाता है। जैसे कुम्हार से उत्पन्न होने वाले घट आदिक में कुम्हार का अन्वयव्यतिरेक स्पष्टतः प्रसिद्ध है। सब जगह बाधकों के प्रभाव से कारण की कार्य के अन्वय व्यतिरेक के साथ व्यापकत्व की व्यवस्था है। जिसका जिसके साथ अन्वय व्यतिरेक का प्रभाव है वह उस जन्य नहीं होता है, ऐसा देखा जाता है।
"यस्मिन सत्येव भवति असति तु न भवति तत्तस्य कारणमिति न्यायातू ।" (ध० पु० १२ पृ० २८९ )
अर्थ-जो जिसके होने पर ही होता है और जिसके न होने पर नहीं होता वह उसका कारण होता है, ऐसा न्याय है।
सर्वज्ञ वाणी के अनुसार श्री विद्यानन्दि स्वामी भी कहते हैं कि शस्त्र-परिहार आदि बहिरंग कारणों का अपमृत्यु के साथ अन्वय-व्यतिरेक है । ( श्लोक पृ० ३४३ )
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जब भी जिस जीव की अकाल मृत्यु होगी वह श्री कुन्दकुन्द भगवान द्वारा कहे गये विषभक्षण आदि कारणों के द्वारा ही होगी, विषभक्षण आदि के अभाव में या अभाव कर देने पर अकालमृत्यु नहीं होगी।
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