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यक्तित्व और कृतित्व ]
निस्सरणात्मक व प्रनिस्सरणात्मक तैजसशरीर
शंका- त० रा० वा० पृ० १५३ पर निःसरणात्मक तैजसशरीर का कथन है । निःसरणात्मक तेजसशरीर किसको कहते हैं ?
समाधान -- औदारिकवै क्रियिकाहारक देहाभ्यंतरस्य देहस्य दीप्ति हेतुर निःतरणात्मकम् । औदारिक, वैकिfor और श्राहारकशरीर में दीप्ति का कारण अनिःसरणात्मक तैजसशरीर है । निःसरणात्मक तैजसशरीर के विषय में ध० पु० ४ पृ० २७ पर निम्न प्रकार कथन है
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"उनमें जो निस्तरणात्मक तैजसशरीर विसर्पण है वह दो प्रकार का है, प्रशस्ततेजस और अप्रशस्ततैजस । उनमें अप्रशस्त निस्सरणात्मक तैजसशरीर १२ योजन लम्बा, ९ योजन विस्तारवाला, सूच्यंगुल के संख्यातवें भाग मोटाईवाला, जपाकुसुम के सदृश लालवर्णवाला, भूमि और पर्वतादि के जलाने में समर्थ, प्रतिपक्ष रहित, रोषरूप ईन्धनवाला, बायें कन्धे से उत्पन्न होने वाला और इच्छित क्षेत्रप्रमाण विसर्प करनेवाला होता है। जो प्रशस्त निस्सरणात्मक तैजसशरीर है वह भी विस्तारादि में तो अप्रशस्त तैजस के समान है, किन्तु इतनी विशेषता है कि वह हंस के समान धवल वर्णवाला है, दाहिने कंधे से उत्पन्न होता है, प्राणियों की अनुकम्पा के निमित्त से उत्पन्न होता है और मारी, रोग प्रादि के प्रशमन करने में समर्थ होता है ।
- जै. ग. 27-3-69 / 1X / क्षु. श्रीतलसागर
कार्मरण शरीर भी सकारण है, अकारण नहीं
शंका- औवारिक, वैऋियिक शरीर की उत्पत्ति में कार्मणशरीर निमित्त कारण है। कार्मणशरीर की उत्पत्ति में कौन निमित्त कारण है ?
समाधान - कार्मणशरीर की उत्पत्ति में मिथ्यादर्शन, अविरति आदि कारण हैं । कहा भी है
" मिथ्यादर्शनादिनिमित्तत्वाच्च । इतरथा ह्यनिर्मोक्षप्रसंग: ।" ( रा. वा. पृ. ७२३ )
अध्याय ८ सूत्र १ में मिथ्यादर्शन, अविरति आदि कर्मबंध के कारण बतलाये गये हैं । उन कर्मों से ही कार्मणशरीर बनता है । अतः कार्मणशरीर का कोई निमित्त नहीं है, यह कहना ठीक नहीं । जिसका कोई कारण नहीं होता वह पदार्थ नित्य माना जाता है । नित्य का कभी विनाश होता नहीं, अत उसका सर्वदा अस्तित्व रहता है । यदि कार्मणशरीर को निष्कारण मान लिया जाय तो उसका कभी विनाश नहीं होगा । कर्मों का नाश न होने से आत्मा की कभी मुक्ति न होगी । अतः कार्मणशरीर सकारण है, प्रकारण नहीं है ।
- जै. ग. 23-1-69/VII / टो. ला. मित्तल
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तैजस कार्मणशरीर नोकर्म नहीं हैं
शंका- औदारिक - वैऋियिक आहारक शरीर को ही नोकर्म कहते हैं या तंज- कार्मण शरीर को भी
कहते हैं ?
समाधान- प्रौदारिक वैक्रियिक- आहारक शरीर को नोकमं कहते हैं । तैजस- कार्मण शरीर को नोकर्मवर्गणा नहीं कहते हैं। श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती ने कहा भी है
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