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ध्यक्तित्व और कृतित्व ]
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हारदु सम्म मिस्सं सुरदुग, णारयचउक्कमणुकमसो। उच्चागोदं मणुगमवेल्लिज्जति जीवेहि ॥३५०॥ (गो० क० )
अर्थ-पाहारकद्विक, सम्यक्त्व प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व, देवगति का युगल, नरकगति आदि ४, उच्चगोत्र और मनुष्यगति का जोड़ा; ये १३ प्रकृतियाँ उद्घ लना की जाति की हैं ।
-जें. ग. 20-8-64/IX/घ. ला. सेठी उद्वेलना-१. सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृति की मिथ्यात्व के कारण उद्वेलना
२. उद्वेलना से स्थिति घातित होती है। शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और मिश्रप्रकृति को पृथक्त्वसागर स्थिति अच्छे परिणामों से होती है या बुरे परिणामों से ? इससे पूर्व कितनी स्थिति होती है ? पृथक्त्वसागर की स्थिति क्या प्रथमगुणस्थान में होती है और अगर ऐसा है तो क्या मिथ्यात्व का बन्ध भी इतना ही होता है।
समाधान-प्रथमोपशम सम्यक्त्व के अभिमुख मिथ्यादृष्टिजीव के पाँच लब्धियाँ होती हैं। १. क्षयोपशमलब्धि, २. विशुद्धिलब्धि, ३. देशनाल ब्धि, ४. प्रायोग्यलब्धि, ५. करणलब्धि । इनमें से चौथी प्रायोग्यलब्धि वाला जाव आयू के बिना शेष सात कर्मों की स्थिति को घटाकर अंतःकोडाकोडीसागर प्रमाण कर देता है। श्री लब्धिसार प्रथ में कहा भी है
अंतोकोडाकोड़ी विट्ठाणे, ठिविरसाण जं करणं । पाउग्गलद्धिणामा, भव्वाभब्वेसु सामण्णा ॥७॥
अर्थात्-स्थिति को अंतःकोड़ाकोड़ीसागर और अनुभाग को द्विस्थानिक करना इसका नाम प्रायोग्यलब्धि है। यह भव्य और अभव्य दोनों के हो सकती है।
प्रथमोपशमसम्यक्त्व की उत्पत्ति के समय मिथ्यात्व की स्थिति अंतःकोडाकोड़ी सागर प्रमाण होती है। वह ही द्रव्य सम्यक्त्व व मिश्रप्रकृतिरूप संक्रमण करता है, अतः उनकी स्थिति भी अंतःकोड़ाकोड़ीसागर प्रमाण होती है। प्रथमोपशमसम्यक्त्व से च्युत होकर जब मिथ्यात्वगुणस्थान में प्राता है तब वहां पर इन सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृतियों की उद्वेलना करता है । ( गो. क. गाथा ३५१)। उद्वलना के द्वारा स्थिति का कम होना विशुद्ध या संक्लेश परिणामों पर निर्भर नहीं है, किन्तु मिथ्यात्वपरिणाम के कारण उद्वेलना होती है और पृथक्त्वसागर स्थिति रह जाती है। किंतु मिथ्यात्व का स्थितिबन्ध तीव्र व मंद परिणामों के द्वारा अपनी अपनी गति के योग्य होता है, उद्वेलना के अनुसार मिथ्यात्व का स्थितिबन्ध नहीं होता है ।
-जं. ग. 14-12-67/VIII/ र. ला. जैन संक्रमण पुरुषवेद का बंधव्युच्छेद के बाद भी अधःप्रवृत्त संक्रम शंका-नपुसकवेवारूढ़ या स्त्रीवेदारूढ़ चारित्रमोह के क्षपक को पुरुषवेद के बन्धविच्छेद के बाद पुरुषवेव में कौनसा संक्रमण होता है ? एवं पुरुषवेवारूढ़ क्षपक को भी समयोन दो आवलिकाल में नवक बंधे हुए पुरुषवेद का कौनसा संक्रमण होता है ?
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