________________
व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ५०३
क्रिमिराग ) के समान, अस्थि ( पृथ्वी की रेखा, हड्डी, मेढे के सींग, चक्रमल ) के समान दारू ( धूलिरेखा, काठ, गोमूत्र, शरीर मल ) के समान स्पर्द्धक होते हैं ।
जड़,
इन वाक्यों के विरुद्ध यह मान्यता कि अनन्तानुबन्धी में मात्र शैल ( पत्थर की रेखा, पत्थर, बांस की क्रिमिराग ) स्पर्द्धक, अप्रत्याख्यान में अस्थि ( पृथ्वी की रेखा, हड्डी, मेढे के सींग, चक्रमल ) स्पर्द्धक ही होते हैं, और प्रत्याख्यान में दारू ( धूलिरेखा, काठ, गोमूत्र, शरीर मल ) के समान और संज्वलन में लता, ( जल रेखा, बेंत, खुरपा, हल्दी के रंग ) के समान ही स्पर्द्धक होते हैं, उचित नहीं है। दूसरे अनन्तानुबन्धी के प्रभाव में प्रत्याख्यान के उदय में तियंचायु नहीं बँध सकती है ।
छठे और सातवें गुणस्थानों में संज्वलनकषाय के देशघातियास्पद्धकों का उदय होता है, सर्वघातिया स्पद्धकों का उदय नहीं होता है । छठे और सातवें गुणस्थानों में देवायु का बन्ध होता है । इससे सिद्ध होता है कि देशघातिस्पर्द्ध कों में भी आयु के बन्ध का विरोध नहीं है ।
गुरण श्रेणी
- जै. ग. 24-10-66 / VI / पं. शांतिकुमार
गुण श्रेणी
शंका- गुणश्र ेणी तीन तरह की बताई है - १. उदयादि २. अवस्थित ३. गलितावशेष । ये तीनों कहाँकहाँ होती हैं ?
समाधान - १. जहाँ उदयावली भी गुणश्रेणी आयाम विषै गर्भित होय तिसको उदयादि गुणश्रेणी कहे है । २. गुणश्रेणी का प्रारम्भ करने के प्रथम समय विषै जो गुरणश्रेणी श्रायाम का प्रमाण था तामें एक-एक समय व्यतीत होते ताके द्वितीयादि समय निविषै गुरणश्रेणी श्रायाम क्रमते एक-एक निषेक घटता होइ अवशेष रहे ताका नाम गलितावशेष है । ३ गुणश्रेणी आयाम के प्रारम्भ करने का प्रथम द्वितीयादि समयनि विषं गुणश्रेणी श्रायाम जेता का तेता रहे । ज्यू ज्यू एक-एक समय व्यतीत होई त्यू त्यू गुणश्रेणीप्रायाम के अनन्तरवर्ती उपरितनस्थिति का एक-एक निषेक गुणश्रेणीआयाम विषं मिलता जाइ तहाँ अवस्थित गुणश्रेणीआयाम कहिए है |
( लब्धिसार पं० टोडरमलजी कृत भाषा टीका पृ० २१-२२ )
तत्वार्थ सूत्र अध्याय ९ सूत्र ४५ में जो दस स्थान असंख्यातगुणनिर्जरा के कहे हैं उन स्थानों में गलितावशेष गुणश्रेणी होय है । संयम या संयमासंयम सम्बन्धी जो निरन्तर गुणश्रेणी निर्जरा होय है वह अवस्थित गुणश्रेणी है । उसमें भी जो उदयागत प्रकृतियाँ हैं उनकी उदयादि गुणश्र णी होय है ।
1
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
- पत्राचार / ब. प्र. स., पटना
www.jainelibrary.org