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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
लेते हैं सो क्या यह वास्तव में ठीक है ? यदि ऐसा ही माना जाय तो जलरेखावत् संज्वलन कषाय में आयु का बंध नहीं होना चाहिये और देवायु का बन्ध सातवें गुणस्थान तक बतलाया है सो किस आधार पर बंधता है, स्पष्ट कीजिये ।
समाधान- - क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार प्रकार की कषाय हैं । इनमें से प्रत्येक के प्रनन्तानुबंधी, प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन ये चार भेद हैं। इसप्रकार कषाय सोलहप्रकार की है ।
"अनन्तानुबन्ध्याप्रत्याख्यानप्रत्याख्यान संज्वलन विकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमाया लोभाः । " ॥ ८९ ॥
[ मोक्षशास्त्र ]
अर्थ - श्रनन्तानुबन्धी, प्रप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन ये प्रत्येक क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से सोलह कषाय हैं ।
पढमादिया कसाया सम्मत्तं वेससयल चारितं । जहखादं घादंति य गुणणामा होंति सेसावि ॥ ४५ ॥
अर्थ - अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन ये चारकषाय क्रम से सम्यक्त्व को, देशचारित्र को सकलचारित्र को और यथाख्यातचारित्र को घातती हैं ।
गो. क. ]
केवलणाणावरणं वंसण छक्कं कसायवारसयं ।
मिच्छं च सव्वधादी सम्मामिच्छं अबंधहि ॥ ३९ ॥ ( गो. क.
अर्थ- केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण और पाँचनिद्रा इसप्रकार दर्शनावरण के छः भेद, तथा अनंतानुबन्धी-अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान- क्रोध-मान- माया लोभ ये बारहकषाय और मिथ्यात्वमोहनीय सब मिलकर २० प्रकृतियाँ सर्वघाती हैं तथा सम्यग्मिथ्यात्व अबन्धप्रकृति भी सर्वघाती है। अर्थात् १६ कषायों में से अनन्तानुबन्धी, श्रप्रत्याख्यान, और प्रत्याख्यान तो सर्वघातिया प्रकृति हैं और संज्वलनदेशघाती है। प्रथम बारहकषाय में सर्व घातिस्पर्द्धक होते हैं, देशघाति स्पर्द्धक नहीं होते । चारसज्वलनकषाय में सर्वघाती और देशघाती दोनों प्रकार के स्पर्द्धक होते हैं ।
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सती य लवादारू अट्ठी सेलोवमाहू घादीणं बार- अनंतिम भागोत्ति बेसघावी तवो सभ्ये ॥१८०॥ (गो.क.) अर्थ - घातिया कर्मों की शक्ति लता - काठ हड्डी और पत्थर के समान है। लता और दारू का अनन्तव भाग देशघातिया है शेष सब सर्वघातिया हैं ।
आवरणदेस घावंतराय संजलण पुरिस सत्तरसं ।
चदुविध भावपरिणदा तिविधा भावाहु सेसाणं ॥१८२॥ ( गो . क. )
अर्थ - आवरण की देशघातिया ७ प्रकृतियाँ, अंतराय ५, संज्वलनकषाय ४ और पुरुषवेद इन १७ प्रकृतियों
में चारों प्रकार के स्पर्द्धक होते हैं और घातिया कर्म की शेष सब बंधप्रकृतियों में अस्थि, शैल, दारू, इन तीन प्रकार के सर्वघाति स्पर्द्धक होते हैं, लतारूप स्पर्द्धक नहीं होते, क्योंकि वे देशघाति हैं । इससे सिद्ध है कि अनंताबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन इन चारों कषायों में शैल ( पत्थर की रेखा, पत्थर, बाँस की जड़,
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