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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ २८९ अवधिज्ञानोत्पत्ति में "चिह्नों" का स्वरूप, स्थान एवं उत्पत्ति में करणपना
शंका-चिह्नों को 'करण स्वरूप शरीर प्रदेशों के संस्थान' कहा है। करण स्वरूप शरीर प्रदेशों से क्या तात्पर्य है ? क्या चक्षुरादि इंद्रियवत् शरीर के अवयव विशेष स्वरूप में स्थित इन प्रदेशों का आश्रय करके जानता है ?
समाधान-वर्तमान में भी शरीर पर रेखाओं द्वारा अनेक आकार के चिह्न बने हुए देखे जाते हैं। रेखा द्वारा मत्स्य आदि के आकार शरीर पर बन जाते हैं। काले वर्णवाला बिन्दु के समान गोल आकारवाला शरीर पर 'तिल' रूपी चिह्न भी देखने में आता है। किन्तु इन चिह्नों को इन्द्रिय नहीं कहा जाता।
अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम सर्वाङ्ग होते हुए भी वह अवधिज्ञान इन आत्मप्रदेशों से ही जानता है; अर्थात उपयोग होता है, जहाँ पर शरीर में अवधिज्ञानसम्बन्धी चिह्न होते हैं, अत: इन चिह्नों को करण कहा है। 'करण' उसे कहते हैं जिसके द्वारा कार्य किया जावे। इन चिह्नों में स्थित आत्मप्रदेशों द्वारा अवधिज्ञान जानता है, अतः इन चिह्नों की 'करण' सार्थक संज्ञा है। कोई एक चिह्न द्वारा जानता है व अन्य कोई एक साथ दो चिह्नों द्वारा जानता है, तीसरा कोई तीन आदि चिह्नों द्वारा जानता है, किन्तु इन्द्रियों की संख्या नियत होने से वे उससे अधिक नहीं होती। इसलिए भी इन्द्रियों और चिह्नों में समानता नहीं है। द्रव्यइन्द्रिय ज्ञान में सहायक होती है, किन्तु चिह्न सहायक नहीं होते यह भी इन्द्रियों व चिह्नों में अन्तर है ।
- सं. 19-6-58/V/ जि. कु. गन, पानीपत
एकक्षेत्र अवधि प्रत्यक्ष है शंका-धवल पु० १३ पृ० २९६ नीचे से सातवीं पंक्ति-इस पंक्ति से स्पष्ट ज्ञात होता है कि "एकक्षेत्र" अवधिज्ञान तो परोक्ष है। तीन काल में प्रत्यक्ष नहीं है। सो ठीक है क्या ?
समाधान-एकक्षेत्र अवधिज्ञान की प्रारम्भ में उत्पत्ति प्रतिनियतक्षेत्र से होती है, किन्तु ज्ञान का परिणमन सर्वात्मप्रदेशों से होता है। ज्ञान के परिणमन में सहायता की आवश्यकता नहीं रहती इसलिए प्रत्यक्ष है। डाइरेक्ट ( Direct ) आत्मप्रदेशों से जानता है।
-पत्र 6-5-80/ ज. ला. जैन, भीण्डर अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम सर्वांग में या एकदेश में ? शंका-अवधिज्ञान का क्षयोपशम सर्वांग में होता है या एक देश में, क्योंकि श्री अर्थप्रकाशिका शास्त्र में ( लिखा है कि ) भवप्रत्यय नामक अवधिज्ञान का क्षयोपशम सर्वाङ्ग में होता है, गुणप्रत्यय जिसके नाभि के ऊपर चिह्न विशेष हो, उसमें क्षयोपशम होता है। आत्मा अखण्ड है फिर क्षयोपशम एकदेश में कैसे सम्भव है ?
समाधान-श्री अर्थप्रकाशिका शास्त्रजी के पत्र ४४ पर इसप्रकार लिखा है-"गुणप्रत्यय अवधिज्ञान है सो पर्याप्त मनुष्यनि के तथा संजीपंचेन्द्रियपर्याप्ततिर्यंचनि के उपजै है सो नाभि के ऊपर शङ्ख, पद्म, वज, स्वस्तिक, मत्स्य, कलशादिक शुभ चिह्न करि सहित आत्मा के प्रदेशनि में तिष्ठता है। जो अवधि ज्ञानावरण तथा वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोपशम ते उत्पन्न होय है।" इन पंक्तियों द्वारा पण्डितप्रवर सदासुखदासजी का यह अभिप्राय रहा है
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