SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २५ ] अनुकूल नहीं रहता और आँखों से भी विशेष काम नहीं हो पाता-यही हम सबके लिए चिन्ता का विषय है; उपचार भी चलता है परन्तु सन्तोषजनक व्यवस्था अभी तक नहीं बन पाई है। मैं आदरणीय पण्डितजी के स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हुआ उनसे अपनी भूलों के लिये क्षमा याचना करता हूँ। मुझे सन्तोष इसी बात का है कि मैं उनके चिर प्रभिलषित स्वप्न को साकार करने में यत्किचित् सहायक बन सका हूँ। इस अनुग्रह के लिए उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद अर्पित करता हूँ। हमारे अनुरोध पर ग्रंथ के मुद्रित फर्मों का अवलोकन कर जिन विद्वानों ने ग्रंथ के सम्बन्ध में अपने अभिमत भिजवाएं हैं, हम उन सबके हृदय से आभारी हैं । आभारी हूँ डॉ० पण्डित पन्नालालजी साहित्याचार्य का जिन्होंने हमें समय समय पर सहर्ष सक्रिय सद्परामर्श देकर हमारे कार्य को सरल बनाया। आदरणीय पण्डितजी के स्वस्थ दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ। पं० प्यारेलालजी कोटडिया तथा पं० पन्नालालजी भोंरावत ( उदयपुर ) का मैं हृदय से आभारी हूँ। आपने प्रस्तुत ग्रन्थ की निर्माणावधि में जब जब भी जिस किसी मूल ग्रंथ की आवश्यकता पड़ी, सूचना प्राप्त होने पर उसे तत्काल भिजवाया। दोनों महानुभावों के निजी संग्रह में सहस्राधिक मूल ग्रन्थ विद्यमान हैं, उनमें से कई दुर्लभ हैं। दोनों श्रुत सेवी स्वस्थ रहें व दीर्घजीवी हों, यही कामना करता हूँ। श्री धूलजी/डालचन्दजी वोरा चावण्ड के हम आभारी हैं जिनसे हमें सदा अपेक्षित योग मिला है। देवशास्त्रगुरुभक्त सुश्रावक श्री निरञ्जनलाल रतनलालजी बैनाड़ा, बैनाड़ा उद्योग, आगरा से मेरा परिचय भीण्डर में ही कल्पद्रुमविधान की अवधि में हुआ । उस समय मैं पं० जवाहरलालजी के घर पर ही ठहरा हुआ था। आप वहां पधारे और आपने बिना हमारी प्रेरणा के ही आगे होकर यह भावना व्यक्त की कि मैं श्रु तसेवा में प्राप द्वारा सम्पाद्यमान 'मुख्तार ग्रन्थ' में कुछ अर्थसहयोग करना चाहता हूँ, आज्ञा दीजिए। हमारी मूक स्वीकृति पर आपने तत्क्षण इस ग्रंथ के लिये इक्कीस हजार रुपये दान राशि देकर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है । एतदर्थ श्रुतसेवी बैनाड़ाजी को कोटिशः धन्यवाद । ऐसे श्रु तसेवी उदारमना पुरुष उभयविध लक्ष्मी से सदा वर्धमान हों, यही शुभेच्छा है। अर्थसहयोगियों की विस्तृत सूची दूसरी जिल्द के परिशिष्ट खण्ड में प्रकाशित की गई है। मैं सभी द्रव्यदातारों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और उनके इस सहयोग के लिए उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद अर्पित करता हूँ। ___ सभी शंकाकारों के प्रति भी मैं हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ और कामना करता हूँ कि उनकी स्वाध्याय रुचि दिनानुदिन वृद्धिंगत हो। शंकाकारों में सभी वर्गों-मुनि, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी, पण्डित, प्रोफेसर, सामान्य पाठक, स्त्री, पुरुष, तरुण प्रादि सभी का समुचित प्रतिनिधित्व है। सभी शंकाकारों-लगभग १७५ की प्रकारादि क्रम से नाम सूची दूसरी जिल्द के परिशिष्ट में प्रकाशित की गई है। उनके नाम के सम्मुख ग्रंथ की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy