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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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निर्वृत्यपर्याप्त लब्ध्यपर्याप्त तीन-तीन भेद श्रर्थात् ६ x ३ = १८ संमूर्च्छन पंचेन्द्रिय तिर्यंच के भेद हैं । कर्मभूमिज गर्भज संज्ञी असंज्ञी पंचेन्द्रिय जलचर, स्थलचर, नभचर तियंच (६) । भोगभूमिज गर्भज संज्ञी पंचेन्द्रिय स्थलचर और नभचर तिथंच (२) । ६+२=८ । इनमें से प्रत्येक पर्याप्त और निर्वृत्यपर्याप्त के भेद से दो-दो प्रकार का । इस तरह गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच के १६ प्रकार के, इनमें संमूर्च्छन पंचेन्द्रिय तिर्यंच के १८ भेद मिला देने से कुल पंचेन्द्रिय तियंच १६ + १८ = ३४ प्रकार के हुए ।
आर्यखण्ड, म्लेच्छखण्ड, भोगभूमि, कुभोगभूमि में उत्पन्न होने से गर्भज मनुष्य चार प्रकार के । इनमें से प्रत्येक पर्याप्त निर्वृत्यपर्याप्त दो प्रकार के होते हैं अर्थात् गर्भज मनुष्य ४x२=८ प्रकार के और इनमें लब्ध्यपर्याप्त संमूर्च्छन मिला देने से मनुष्य ८ + १ = ९ प्रकार के ।
द्वीन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय में से प्रत्येक पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त तीन प्रकार के । इस प्रकार विकलेन्द्रिय ३ x ३ = ९ प्रकार ।
४२+२+२+३४+६+६= ६८ जीव समास हैं ।
आगम प्रमाण इस प्रकार है-
पुढवी- जलग्गि वाऊ चत्तारि वि होंति बायरा सुहमा । साहारण पत्तेया arthat पंचमा दुविहा ॥१२४॥ साहारणा वि दुविहा अणाइ-काला व साइकाला य । ते वि य बावर सुहमा सेसा पुण बायरा सब्बे ॥ १२५ ॥ प्रतया वि य दुविहा णिगोद-सहिद तहेब रहिया य । दुविहा होंति तसा वि य वि-ति चउरक्खा तहेव पंचक्खा ॥ १२८ ॥ पंचक्खा विय तिविहा जल-थल आयास- गामिणो तिरिया । प्रत्तेयं ते बुविहा मरगेण जुत्ता अजुता य ॥ १२९ ॥ ते वि पुणो वि य दुविहा गन्भज-जम्मा तहेव संमुच्छा । भोगभुवा गन्मभूवा थलयर - णहगामिणो सब्जी ॥१३०॥ अट्ठ वि गन्भज दुविहा तिविहा संमुच्छिणो वि तेवीसं । इदि पणसीदी भेया सव्वेंस होंति तिरियाणं ॥ १३१ ॥ अज्जव - मिलेच्छ-खंडे भोगमहीसु वि कुभोगभूमीसु । मया हवंति दुविहा निव्वित्तिअपुण्णगा पुण्णा ॥१३२॥ संमुच्छिया मगुस्सा अज्जवखण्डेसु होंति नियमेण । ते पुण लद्धि-अण्णा जारयदेवा विते विहा ॥१३३॥ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा १३१-१३३ की संस्कृत टीका में विशेष कथन है, वह ग्रन्थ से देख लेना चाहिए ।
- जै. ग. 25-5-72 / IX / गु. ला रफीगंज
सम्मूर्च्छन जीवों का कोई नियत आकार नहीं होता
. शंका-सम्मूर्च्छन जीव किस आकार के होते हैं ? कितनी इंद्रिय वाले होते हैं और कहाँ पाये जाते हैं ?
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