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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
अर्थ-जिसने समस्त तत्त्वों को जान लिया है और जो हीन जीवों के द्वारा अगम्य मोक्षमार्ग में गमन करना चाहते हैं ऐसे चक्रवर्ती भरत ने मार्ग हितकारी भोजन के समान प्रयासहीन यम तथा समितियों से पूर्ण संयम को धारण किया था सो ठीक ही है, क्योंकि पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को समझने वाले पुरुष संयम के अतिरिक्त अन्य किसी पदार्थ की प्रार्थना नहीं करते।
यहाँ पर यह कथन नहीं किया गया कि भरत चक्रवर्ती ने स्वयं दीक्षा ली थी या किसी अन्य से दीक्षा ली थी। जिस समय तक पार्षग्रंथ में इस सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख न मिल जावे उस समय तक ठीक-ठीक उत्तर दिया जाना असम्भव है।
श्रीकृष्णजी के भाई बलदेव ने स्वयं दीक्षा ली थी। कहा भी है--
पल्लवस्थजिननाथशिष्यतां संसृतोऽस्म्यहमिह स्थितोऽपि सन् । इत्युदीर्य जगृहे मुनिस्थिति पंचमुष्टिभिरपास्य मूर्धजान् ॥६३/७४॥ हरिवंशपुराण
अर्थ-बलदेव ने, 'मैं यहाँ रहता हुआ भी पल्लव देश में स्थित श्री नेमिजिनेन्द्र की शिष्यता को प्राप्त हुआ हूं' यह कहकर पंच मुष्टियों से सिर के बाल उखाड़ कर मुनि-दीक्षा धारण करली।
इस प्रकार तीर्थंकरों के अतिरिक्त अन्य महान् पुरुष भी परोक्ष रूप से अन्य को गुरु मानकर स्वयं दीक्षा ले सकते हैं।
-जें. ग. 27-5-71/VII/र. ला. जैन मारीचि को सम्यग्दर्शन हुआ या नहीं ? शंका-भरत के पुत्र मारीचि को उसी भव में सम्यक्त्व हुआ था या नहीं ?
समाधान-भरत के पुत्र मारीचि को उसी भव में सम्यक्त्व हुआ था या नहीं, ऐसा कथन आर्ष ग्रन्थ में मेरे देखने में नहीं आया। सम्यक्त्व से च्युत होकर सातवें नरक की आयु बाँध कर सातवें नरक में उत्पन्न होने में कोई बाधा नहीं आती है।
---पलाचार/ब. प्र. स./१८-६-६९
मरुदेवी का जन्मक्षेत्र शंका-नाभिराय और मरुदेवी की शादी हुई तो क्या मरुदेवी का जन्म ऐरावत क्षेत्र में हुआ था ?
समाधान-आर्ष ग्रन्थ में ऐसा कथन मेरे देखने में नहीं आया है। आर्ष ग्रन्थ के आधार बिना यह नहीं कहा जा सकता कि मरुदेवी का जन्म ऐरावत क्षेत्र में हआ था।
-गं. ग. 17-7-67/VI/ज. प्र. म. कु.
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