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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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अंतिम-जिण-णिव्वाणे केबलणाणी य गोयम मुणिदो। बारह-वासे य गये सुधम्मसामी य संजावो ॥१॥ तह वारह-वासे पुण संजावो जम्बु-सामी मुणिणाहो । अठतीस-वास रहियो केवलणाणी य उक्किट्ठो ॥२॥ वासटि-केवल-बासे तिहि मुणी गोयम सुधम्म जंबू य।
बारह बारह दो जग तिय दुगहीणं च चालीसं ॥३॥ इस नन्दि-आम्नाय की पट्टावली में यह बतलाया गया है कि अन्तिम तीर्थङ्कर के पश्चात् श्री गौतम स्वामी केवली हुए जिनका काल बारह वर्ष था। उसके पश्चात् श्री सुधर्माचार्य को केवलज्ञान हुआ जिनका काल भी बारह वर्ष था। पुनः श्री जम्बूस्वामी केवली हुए जिनका काल ३८ वर्ष था। इस प्रकार १२ + १२+३=६२ वर्ष तक तीन अनुबद्ध केवली हुए हैं।
-जे.ग. 21-11-66/IX/ज प्र. म. कु. प्रादिनाथ बाहुबली प्रादि कर्मभूमिया थे शंका-श्री नाभिराय, श्री भगवान आदिनाथ, श्री बाहुबली, श्री भरत आदि तीसरे काल में ही जन्मे हैं, वे भोगभूमि के जीव कहे जा सकते हैं या नहीं ?
समाधान-जिन जीवों की आयु एक कोटि पूर्व से अधिक होती है वे भोगभूमिया मनुष्य व तिर्यंच जीव होते हैं और जिन मनुष्यों या तियंचों की प्रायु एक कोटि पूर्व वर्ष है वे कर्म-भूमिया हैं (धवल पु. ६ पृ. १६९-१७०)। श्री नाभिराय की आयु १ कोटि पूर्व वर्ष की थी। कहा भी है
पणवीसुत्तर पणसयचाउच्छेहो सुवण्णवण्णणिहो।
इगिपुश्वकोडिआऊ मरुदेवी णाम तस्स बधु ॥४।४९५॥ [ति.प.] अर्थ-श्री नाभिराय मनु पाँच सौ पच्चीस धनुष ऊँचे, सुवर्ण के सदृश वर्णवाले, और एक पूर्व कोटि आयु से युक्त थे। उनके मरुदेवी नाम की पत्नी थी।
श्री नाभिराय, श्री भगवान आदिनाथ, श्री बाहुबली, श्री भरत की आयु एक कोटि पूर्व से अधिक नहीं थी, इसलिये ये कर्मभूमिया मनुष्य थे।
- जे. ग. 19-9-66/IXर. ला. जैन, मेरठ आदिनाथ के सहस्रवर्ष तक शुभ भाव रहे थे शंका-छठे व सातवें गुणस्थानों में धर्मध्यान होता है और धर्मध्यान शुभ भाव है, ऐसा 'भावपाहुड' में कहा है । श्री आदिनाथ भगवान ने एक हजार वर्ष तक तप किया तो एक हजार वर्ष तक शुभ भाव हो रहे ? क्या बीच-बीच में शुद्ध भाव नहीं हुए ?
समाधान-किसी भी प्राचार्य ने छठे-सातवें गुणस्थानों में शुक्लध्यान नहीं बतलाया है। सभी आचार्यों ने छठे-सातवें मुणस्थानों में विचरण करते हुए मुनियों के धर्म-ध्यान अर्थात् शुभ भाव बतलाया है। कहा भी है
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