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'पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : व्यक्तित्व और कृतित्व'
के सम्बन्ध में प्राप्त
अभिमत
ब्र० पं० रतनचन्दजी मुख्तार से मेरा पहला परिचय उनके लेखन के माध्यम से ही हुआ। फिर पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी के सानिध्य में कई बार उनसे मिलना होता रहा। पूज्य प्राचार्य शिवसागरजी महाराज के चरणों में भी उनसे कई जगह-श्री महावीरजी, निवाई, प्रतापगढ़-कई बार चर्चा करने का अवसर मिला। वे सही अर्थों में मननशील विद्वान् थे। उनके द्वारा लिखे गये शंका-समाधान पढ़ने की हमेशा उत्सुकता रहती थी। उन्होंने स्वयं की प्रज्ञा के आधार पर स्वाध्याय द्वारा अपना सैद्धान्तिक ज्ञान बढ़ाया। कोई व्यक्ति निरन्तर पुरुषार्थ कर किसी दुर्गम क्षेत्र में भी कितनी गहरी पैठ बना सकता है, वे इसके अप्रतिम उदाहरण थे। मुख्तार सा. ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर उस पर कलशारोहण किया, साहित्य-रचना में इनकी देन अनूठी है। इस युग में प्राप श्रेष्ठ विद्वान् तथा धर्म-समाज सेवी व्यक्ति हो गये हैं ।
उनके स्मृति ग्रन्थ के बहाने जिसप्रकार उनके विस्तृत कृतित्व का यह प्रसाद पुञ्ज पं. जवाहरलालजी तथा डॉ. चेतनप्रकाशजी पाटनी ने जिज्ञासुत्रों में वितरित करने के लिये तैयार किया है, यह सचमुच बहुत उपयोगी बन गया है । भगवान महावीर के उपरान्त ज्ञान की ज्योति प्राचार्य-परम्परा से इसी प्रकार एक से दूसरे के पास पहुँचती रही है । ज्ञान को स्वयं प्राप्त करना जितना आवश्यक है, इस कलिकाल में उसे दूसरों को उपलब्ध कराना भी उतना ही उपयोगी और आवश्यक है।
श्री जवाहरलालजी आगम के प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव से युक्त एक संकल्पशील जिज्ञासु हैं। मुख्तार सा. के प्रति उनके मन में एक समर्पित शिष्य की श्रद्धा रही है। उसी श्रद्धा से अभिभूत होकर उन्होंने सम्भवतः अपनी शक्ति से अधिक परिश्रम करके प्रस्तुत ग्रन्थ को यह रूप दिया है । इसके लिये वे बधाई के पात्र हैं।
मैं समझता हूँ कि किसी अध्येता विद्वान् को आदरपूर्वक स्मरण करने का इससे अच्छा कोई और माध्यम नहीं हो सकता है।
मैं सम्पादक-द्वय के पुरुषार्थ की सराहना करता हूँ। इन्होंने मुख्तार सा. को इतिहास में अमर कर दिया है।
दिनांक ९-९-८८
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पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री, कटनी (म.प्र.)
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