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________________ 809080Papac30.90090050 9.046:0: 20: 600305 Yaado opana 20 | ३४ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । मेरा परम सौभाग्य रहा कि मुझे सद्गुरुवर्य उपाध्यायश्री पुष्कर आप भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमत्त थे, सदा स्वाध्याय और मुनि जी म. जैसे संघ अनुशास्ता प्राप्त हुए जिनका जीवन समता, ध्यान में तल्लीन रहते थे। मैंने देखा वृद्धावस्था में आपका शरीर ममता और सहिष्णुता का पावन संगम था। आपका व्यक्तित्व अनन्त अस्वस्थ हो गया था। कई बार तीव्र ज्वर भी रहता था, तन आकाश में सुशोभित इन्द्रधनुष की तरह बहुरंगी प्रतिभा से युक्त अस्वस्थ था किन्तु आपका आत्मबल गजब का था। आपका मन था, उपवन में खिले हुए विविध प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों की तरह । कभी भी अस्वस्थ नहीं हुआ, उस अस्वस्थ स्थिति में भी यदि हम आपकी संयम-साधना पल्लवित और पुष्पित थी जो भी आपके लोग आपकी सेवा में पहुँचते तो आप हमारे से विविध प्रकार के सान्निध्य में पहुँचता वह चारित्र की सौरभ में सुवासित हो जाता प्रश्न पूछते थे, उत्तर न आने पर आप स्वयं उत्तर प्रदान करते। था। चारित्र बल के कारण भक्तगण स्वतः खिंचे चले आते थे, हम कहते कि गुरुदेव आराम कीजिए पर आप आराम को तो इसीलिए कवि के हृदतंत्री के तार इस प्रकार झनझना उठे हराम ही मानते थे, आपका यह दिव्य संदेश था कि, उट्ठिए! णो "कल्पनाओं को शक्ल दिया तुमने, पमायए!! उठो, प्रमाद को छोड़ो। अनन्त-अनन्त काल से प्रमाद की मेरे जीवन को संबल दिया तुमने। दिशा में सोए रहे हो, अब यह जीवन मिला है यदि इस जीवन में जिन्दगी के घने अँधेरों को, भी तुमने प्रमाद किया तो फिर कहाँ साधना करोगे? रोशनी में बदल दिया तुमने ॥" गुरुदेव जागृति का संदेश देते हुए यह प्रबल प्रेरणा देते थे कि कैसे भल सकता है आपको आपने मेरे जीवन को विविध साधु बने हो तो भजन करो, तप करो, जप करो नहीं तो याद सद्गुणों के रंग से रंगा, जीवन को नया मोड़ दिया है, आपके रखनासान्निध्य को पाकर मेरा जीवन धन्य हो उठा। अंधे को आँख, पंगु "गृहस्थी केरा टुकड़ा, लाम्बा-लाम्बा दांत। को पैर और संतप्त हृदय को सान्त्वना मिलने से जितनी आनन्द भजन करे तो उबरे, नहीं तो काढ़े आंत॥" की अनुभूति होती है, उससे कई गुना आनन्द की अनुभूति मुझे कितनी थी सद्गुरु में जागरूकता। यह है इसका स्पष्ट निदर्शन। हुई, आपके स्नेह से पगी हुई छांव को पाकर मुझे उसी तरह की अनुभूति हुई कि मध्याह्न की चिलचिलाती धूप में किसी धने वृक्ष की आज गुरुदेव हमारे बीच नहीं हैं परन्तु उनका पवित्र जीवन आज भी हमें प्रेरणा दे रहा है, यह सत्य हैछांव सुस्ताने को प्राप्त हुई हो। प्रत्येक सांस में आपने त्याग और वैराग्य की संयम-साधना की और स्वाध्याय की प्रेरणा दी। आज वे "बहुत दिनों बाद हस्तियाँ ऐसी भू पर आती हैं। सारी स्मृतियाँ और अनुभूतियाँ स्मृति पटल पर उभर कर आ रही जिनके गुण गौरव से जनता धन्य-धन्य हो जाती है।" हैं, आपके सद्गुण रूपी मुक्ताओं को शब्द सूत्र में पिरोने का मेरा यह प्रयास है। आपका जीवन सूर्य की तरह तेजस्वी था तो मेरा यह प्रयास नन्हें से दीपक की तरह है। श्रद्धा भरा प्रणाम मेरे जीवन की अँधेरी रात में आप प्रभात बनकर उदित हुए और मेरे मन रूपी कमल को खिला दिया। आपकी कृपा रूपी -श्री गीतेश मुनि 'गीत' किरणें पाकर मेरा जीवन ही परिवर्तित हो गया। आपके आनन पर (श्री गणेश मुनि जी शास्त्री के सुशिष्य) जो मृदु हास्य अठखेलियाँ करता था उससे यह स्पष्टतः ज्ञात होता -भारतीय संस्कृति त्याग प्रधान संस्कृति है। त्याग-संयम के था कि आपका अन्तर्हृदय आनन्द से छलक रहा है, उसकी कहीं कारण ही मानव से महामानव, इन्सान से भगवान और आत्मा से थाह नहीं। गीर्वाण गिरा के यशस्वी शब्दों में इतना ही कहा जा परमात्मा के रूप में रूपायित होते हैं। सकता है -महापुरुषों की धरती होने के कारण ही भारत देश धर्म “अधरं मधुरं वचनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं। प्रधान व आर्य देश कहलाता है। भारत देश को विश्व का गुरु इसी हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरं॥" कारण माना गया है। यहाँ जितने धर्म, पंथ, ग्रन्थ, संत-महन्त हुए आपका जीवन मोती की तरह पानीदार था, आपका या हैं उतने किसी भी देश में नहीं मिलेंगे। आभावलन प्रभावपूर्ण था, आपका तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी प -सर्वधर्म समभाव के कारण हमारा भारतवर्ष महान् है। समयचेहरा दूसरों को अपना बनाने में सक्षम था, इसीलिए तो कवि ने समय पर इस पुण्य धरा पर पुण्य पुरुष जन्म लेकर अध्यात्मकहा है शान्ति का संदेश देकर अस्त-व्यस्त संत्रस्त मानव समाज में अभिनव 'यूं तो दुनियाँ के समुद्र में, कभी कमी होती नहीं। चेतना का संचार करते हैं। २० वीं सदी के चमकते संत सितारों में लाख गौहर देख लो, इस आब का मोती नहीं।" उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा 000066oR AGO Stein Education menariotal ap 00.0000000000006. 00% 19:00900906:00.00AMORON 905DADIMATHouse.glD 000 Swgli janrelbnd.org AGS602055058666086.
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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