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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर जायेगा, कारण कि यह क्षमाशील, जैन कथा साहित्य के महान् लेखक, ज्ञान दिवाकर, अध्यात्मयोगी संत पुरुषोत्तम थे। उनकी अध्यात्म किरणें देश-विदेशों में विकीर्ण हो रही हैं। -भारत के विभिन्न प्रान्तों में विचरण कर धर्म-ज्ञान-गंगा प्रवाहित की, जिससे हजारों-हजार व्यक्ति अन्धकार से प्रकाश में, अधर्म से धर्म की राह पर चल पड़े। आपकी वाणी में जादू था जिससे श्रोताओं के मन पर सीधा असर पड़ता था। लोह चुम्बक की भाँति आपके व्यक्तित्व में कशिश थी । आपश्री ने अपने शिष्यशिष्याओं को ज्ञान-साधना में निपुण बनाया। आज अनेक संत व महासतियाँ धुरन्धर विद्वान, कवि, प्रवक्ता, लेखक हैं जिनमें आचार्य प्रवर समर्थ साहित्यकार श्री देवेन्द्र मुनि जी म एवं मेरे दादा गुरुदेव प्रसिद्ध साहित्यकार ज्ञानज्योति श्री गणेश मुनि जी शास्त्री अग्रगण्य हैं। -उदयपुर में समायोजित चादर समारोह के ऐतिहासिक प्रसंग पर मैंने परदादा गुरुदेव उपाध्याय श्री जी म. सा. का स्नेहपूर्ण आशीष पाया तो अन्तर्मन झूम उठा। -इतने बड़े महापुरुष होते हुए भी उन्होंने मुझ बाल मुनि को वात्सल्य भरी वाणी में सत् शिक्षाओं का अमृत प्रदान किया वह अनुपम है। -आज ये महापुरुष संतश्रेष्ठ देह दृष्टि से नहीं हैं पर उनके अगणित उपकार सदियों तक समाज देश का मार्गदर्शन करते रहेंगे। उस दिव्यात्मा को मेरा शतशः वन्दन' ! नमन। शत-शत नमन स्व. श्री नेम मुनिजी वास्तव में उपाध्याय श्री जी म. समाज के एक पिता थे। उदार हृदय से सबको ज्ञान-दान दिया, बड़े-बड़े उपकार किये, ऐसे परम पिता के दर्शन न हो सके इसका हृदय में महा दुःख है। उपाध्याय श्री जी म. आशाओं के केन्द्र थे। शासनदेव से हार्दिक विनम्र प्रार्थना है कि उपाध्याय श्री जी की शान्तात्मा को पूर्ण अध्यात्म शान्ति प्राप्त हो, आचार्य सम्राट् एवं समस्त सुशिष्य परिवार को इस वियोगजन्य महादुःख को सहन करने की शक्ति प्राप्त हो । यदि सोने को तपा दिया जावे तो कुन्दन बन जाता है। - उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि Heroptio ३५ पुष्करत्व के प्रतीक : उपाध्याय श्री जी -अमृत ऋषि 'साहित्यरत्न' पुष्कर शब्द पवित्रता एवं पावनता का प्रतीक है। जिसमें व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र को पावन बनाने की शक्ति निहित है वही पुष्कर बन सकने की सामर्थ्य रखता है। पावन व्यक्ति को यदि पावन बनाने का कार्य किया जाए तो कोई महत्व नहीं रखता। महत्ता तभी मालूम होती है जब नैतिक आचरणों से गिरे हुए व्यक्ति को पावन बनाने के लिए कार्य किया जाए। उसको नैतिक और आध्यात्मिक विकास की ओर उन्मुख करने के लिए साहसिक कदम उठाया जाए। हिन्दू धारणा के अनुसार पुष्कर में अवगाहन करने वाला मानव अपने समस्त पापों का विसर्जन कर देता है। उसके शरीर पर जो पाप-रज लिपटी हुई होती है वह पुष्कर के पानी से मुक्त हो जाती है। वह पुष्करमय बन जाता है। अगर पुष्कर में निर्मलता का अंश नहीं समाहित होता तो आगत व्यक्तियों को पुष्कर बनाने की क्षमता उसमें नहीं रहती। पुष्कर में नैतिक एवं आध्यात्मिक आदर्श समाये हुए रहते हैं। उन आदर्शों के द्वारा ही मानव को महामानव बनाने की सामर्थ्य विद्यमान होती है ऐसे ही मेवाड़ की माटी में खेले उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. में समागत व्यक्तियों को पुष्करत्व बनाने की विलक्षण क्षमता थी। जो कोई भी उनके सान्निध्य में एक पल भी व्यतीत कर देता तो पुष्कर के अंश आये बिना उसमें नहीं रहते । पतित से पावन बनाने का एक अविराम कार्यक्रम उनका चल पड़ता। उनका व्यक्तित्व सृजनशील था। सृजन कल्पना के आधार पर होता है। जिसके पास कल्पनाओं का अक्षय स्रोत निहित होता है, वही सृजनात्मक कार्यों को सरंजाम दे सकता है। उपाध्याय श्री जी की मनस्-तरंगें समाज को विकासोन्मुखी बनाने के लिए तरह-तरह की कल्पनाओं से आप्लावित रहती थीं। समाज को खोखला बनाने वाली कुरूढ़ियों के प्रति सदैव चिंतित रहते थे। उन रूढ़ियों को समाज से निर्मूलीकरण करने के लिए समय-समय पर अपने प्रवचनों के द्वारा जेहाद के स्वर छोड़ते थे। वे वाङ्मयी थे। किसी भी दर्शन का अध्ययन करना हो तो तत्सम्बन्धी साहित्य की आवश्यकता महसूस होती है। लेकिन उपाध्याय श्री जी के श्री चरणों में जो कोई अध्ययनार्थ पहुँच गया उन्हें साहित्य की कोई जरूरत नहीं होती थी। क्योंकि उनकी प्रकाण्ड पाण्डित्यता ही साहित्य होता था। वे सरस्वती पुत्र थे। उनकी वाणी में शारदा का अस्तित्व निर्झरित होता रहता था। जैन दर्शन ही नहीं अपितु इतर दर्शनों की गहरी विद्वत्ता उनके सृजनात्मक तुलनात्मक साहित्य से स्पष्टतः परिलक्षित होती है। उन्हें आगममनीषी और For Private & Personal www.jahelibrary.go
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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