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श्रद्धा का लहराता समन्दर
श्रुत ज्ञान की रसायन को प्राप्त किया और संपूर्ण घट की भाँति सदा जीवन में सुरक्षित रखा। ऐसे सरल साधक और ज्ञान आराधक उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज स्थानकवासी जैन समाज की अमूल्य निधि थे। उनके स्वर्गवास से एक महान् आत्मा हमारे बीच से चली गई। उस साधक पुरुष को सौ-सौ नमन करता हूँ।
समत्वभाव के साधक : उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. सा.
-उपप्रवर्तक श्री मेघराजजी म. सा.
साधक समता भाव में जीता है। समता भाव ही साधक जीवन का केन्द्र बिन्दु है । केन्द्र-बिन्दु के निकट जो भवि आत्मा रहती है, वही अपने जीवन का और अन्य भवि आत्माओं के जीवन का उत्थान कर सकती है। वीतराग शासन का मूल ही है समत्व भाव । समत्व भाव के अभाव में बीतराग शासन का अनुयायी कभी भी अपने जीवन में सच्चा साधक नहीं बन सकता है।
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श्रमण संघीय उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. ऐसे ही समत्व भाव के साधक थे। महावीर वाणी के आलोक में उन्होंने अपना जीवन जीया और अपने जीवन का निर्माण तथा उत्थान किया। मैंने जब-जब भी उनके दर्शन किए, अति निकटता से देखा उन्हें वही प्रसन्नवदन, वही समता भाव की निर्मल लहरें उनके चेहरे पर अठखेलियाँ करती हुईं मुझे दिखायी दीं। अभी ४ वर्ष पहले जब आप रतलाम पधारे थे तब आखिरी बार दर्शन- मिलन का प्रसंग बना था । श्रमणसंघ के निर्माण और उत्थान में आपश्री का बहुत बड़ा योगदान रहा है अपने मानापमान की चिंता से निरत सर्वदा संघ के उत्थान के लिए चिंतन करते रहे। जहाँ-जहाँ भी आपश्री जी ने विचरण किया, वहाँ-वहाँ प्रेम, एकता, संगठन और भाईचारे का बिगुल बजाया और जिनवाणी के आधारभूत तत्त्व समता भाव का प्रसार किया। विद्वता और साधकता का अद्भुत सामंजस्य रहा है आप में आपश्री को इस गुरुत्य की ही यह अनुपम देन है कि आपके सुयोग्यतम शिष्य, विद्वद-शिरोमणि, प्रसिद्ध साहित्यकार श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. श्रमणसंघ के तृतीय पट्टधर आचार्य के रूप में संघ को एक अनमोल हीरा मिला है जिनके शासन में श्रमणसंघ और अधिक गौरवान्वित हो और विकास पथ पर बढ़ता रहे, यही अभिलाषा और शुभकामना है।
श्रमणसंघ के उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. के स्वर्गवास से एक बहुत बड़ी श्रमणसंघ में क्षति हुई है। आपकी आत्मा जहाँ भी हो, वहाँ पर और आगे वीतराग-वाणी का प्रकाश पाये और अपनी आत्मा का विकास करे, यही हार्दिक श्रद्धांजलि!
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संत शिरोमणि उपाध्यायश्री
2008
-उप प्रवर्तक भ्रमण विनयकुमार 'भीम'
भारत की परम्परा हमेशा संतों की परम्परा रही है। भारत देश संतों का देश है इस भारत की पुण्य धरा पर अनेक संत, ऋषि हुये, जिन्होंने भारत के इतिहास को उज्ज्वल करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मुझे अत्यधिक खुशी है एवं मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूँ कि श्रमणसंघ के महान् उपाध्याय ज्ञानयोगी, जपयोगी, तपयोगी, साधना के महान मर्मज्ञ विश्व संत उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के दर्शनों का, साथ में रहने का विहार करने का, प्रवचन सुनने का मुझे सौभाग्य मिला। वे क्षण कितने आनन्ददायी थे जब उनको मैं याद करता हूँ तो हृदय गद् गद् हो जाता है। वास्तव में उपाध्यायश्री एक महान् साधनानिष्ठ, श्रमण श्रेष्ठ, संत शिरोमणि थे।
अभी कुछ समय पूर्व उनका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ यह समाज का दुर्भाग्य रहा उपाध्यायश्री के बारे में क्या कहा जाय वे जैन जगत् के जंगम तीर्थ थे, सभी क्षेत्रों में उनका महान आदर, सम्मान, सत्कार एवं वर्चस्व था। उपाध्याय श्री हमारे महामहिम श्रमणसंघ के तृतीय पट्टधर, सफल साहित्यकार आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्रमुनिजी महाराज के महान गुरु थे। उनके गरिमामय जीवन पर स्मृति ग्रन्थ निकल रहा है यह गौरव की बात है।
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वे बहुभाषा विशेषज्ञ थे, वाणी के जादूगर थे, संयम में अपार निष्ठा थी, लगन थी, ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र, विनय, विद्या, विवेक के वह चलते-फिरते विद्यालय थे। उपाध्यायश्री के जीवन पर यह स्मृति ग्रन्थ इतना ही विराट्, व्यापक होगा जितना हमारे उपाध्याय श्री का जीवन था ।
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उपाध्यायश्री प्रबल पुण्यवान थे
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-तपस्वी मोहन मुनिजी
पूज्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. का स्मृति ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। उसके लिए क्या लिखूँ? मैं विद्वान भी नहीं हूँ और लिखने की आदत भी नहीं है। फिर भी उपाध्याय श्री के प्रति अपनी श्रद्धा भावना तो व्यक्त करना ही चाहता हूँ।
शास्त्र में उपाध्याय के २५ गुण बताये हैं जो डिगते प्राणी को स्थिर करे और अज्ञान में भटकते जीव को सद्ज्ञान का बोध देवे, उसे उपाध्याय कहा है।
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