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{ वाग देवता का दिव्य रूप
३४९16300008 शब्दशक्ति का माहात्म्य विभिन्न विज्ञों की दृष्टि में
लेना, उससे संबंधित आध्यात्मिक एवं मानसिक-बौद्धिक लाभों को नादयोग के द्वारा शब्दों की अनुपमेय शक्ति का परिचय प्राप्त
याद करके सजीव कर लेना तथा उस पर निष्ठा एवं आस्था में RRC होता है। नादयोग के प्रयोग द्वारा आत्मिक शक्तियों के परिचय के
दृढ़ता लाना, ये ही तो जपयोग के मूल उद्देश्य हैं। रूप में आन्तरिक ध्वनियों का साक्षात्कार किया जाता है। शब्द की जपसाधना से उत्कृष्ट आध्यात्मिक एवं भौतिक लाभ इस सूक्ष्म शक्ति का जब साधक विकास कर लेता है तो उसे सारा
जपसाधना का आश्रय लेने वाला साधक धीरे-धीरे इतना ऊंचा आकाश ही नहीं, सारा ब्रह्माण्ड शब्दमय लगता है। इसी आधार पर
उठ जाता है कि वह साधना से समाधि तक पहुँच जाता है। इससे वैयाकरण भर्तृहरि ने "शब्दः ब्रह्म" (शब्द ब्रह्मरूप है) कहा है।
आत्म साक्षात्कार एवं परमात्म साक्षात्कार का मार्ग प्रशस्त हो जाता नैयायिक-वैशेषिकों ने शब्द को आकाश का गुण माना है। किसी ने
है। यह मेरा अपना अनुभव है कि श्रद्धा, विश्वास एवं इच्छाशब्द को नित्य और किसी ने अनित्य माना है। योगदर्शन में कहा
शक्ति के साथ जप द्वारा नवकार मंत्र जैसे महामंत्रों में सन्निहित गया है-शब्द और आकाश दोनों पर संयम करने से स्वर-शक्ति की ।
| दिव्य आत्मशक्तियों को जगाया जा सकता है। सुप्रसिद्ध विचारक| वृद्धि होती है। पदार्थ-विज्ञानियों ने शब्द को भौतिक तरंगों का
"सर जान वुडरफ" ने अपने ग्रन्थ “गारलैण्ड ऑफ लेटर्स' में स्पन्दन भर कहा है। आधुनिक मनोविज्ञान ने पदार्थ विज्ञान से एक
लिखा है कि मंत्र या शब्दों की विशिष्ट रचना में गुप्त अर्थ एवं कदम आगे बढ़कर वाणी के वैचारिक प्रभाव की महत्ता स्वीकार
शक्ति होती है, जो अभ्यासकर्ता को दिव्य शक्तियों का पुंज बना की है तथा मानसोपचार में उसकी क्षमता के छोटे-मोटे प्रयोग भी
देती है। पातंजलयोगदर्शन में कहा गया है-मंत्रजप से सिद्धियां प्राप्त होने लगे हैं। किन्तु अध्यात्म विज्ञान ने माना है कि शब्द की
होती हैं। वैचारिक एवं संवेदनात्मक क्षमता भौतिक विज्ञान तथा प्राचीन मनोविज्ञान की विषयवस्तु न होकर आध्यात्मिक है।
आध्यात्मिक महत्व के अतिरिक्त जप का भौतिक महत्व भी
कम नहीं है। शरीर और मन में अनेकानेक शक्तियां, क्षमताएं - जप के साथ योग शब्द जोड़ने के पीछे आशय
आसन मारे बैठी है, जो विविध चक्रों, उपत्पिकाओं और ग्रंथियों में जप के साथ योग शब्द जोड़कर अध्यात्मनिष्ठों ने यह संकेत विद्यमान हैं। जपयोग की साधना द्वारा उन्हें जगाया जा सके तो किया है कि जप उन्हीं शब्दों और मंत्रों का किया जाए, जो साधक को अतीन्द्रिय और अलौकिक विशेषताएं और क्षमताएं प्राप्त आध्यात्मिक विकास के प्रयोजन को सिद्ध करता हो, जिससे व्यक्ति हो सकती हैं। ये सिद्धियां भौतिक प्रतिभा और आत्मिक शक्तियों के में परमात्मा या मोक्ष रूप ध्येय की प्रति तन्मयता, एकाग्रता, रूप में जिन साधना के आश्रय से विकसित हो सकती हैं, उनमें तल्लीनता एवं दृढ़निष्ठा जगे, आंतरिक सुषुप्त शक्तियां जगें। सबसे सुगम और सर्वप्रथम स्थान के योग्य जप को माना गया है। जपयोग में मंत्रशक्ति के इसी आध्यात्मिक प्रभाव का उपयोग किया जप से मन, बुद्धि, चित्त, हृदय आदि सभी अन्तःकरण परिशुद्ध एवं जाता है तथा आत्मा में निहित ज्ञान-दर्शन-चारित्र-सुख (आनंद), एकमात्र ध्येय में एकाग्र हो जाते हैं। आत्मबल आदि शक्तियों को अभिव्यक्त करने का पुरुषार्थ किया
जपयोग का महत्व क्यों ? जाता है।
वास्तव में जपयोग अचेतन मन को जागृत करने की एक नामजप से मन को प्रशिक्षित करने हेतु चार भूमिकाएं
वैज्ञानिक विधि है। आत्मा के निजी गुणों के समुच्चय को प्राप्त बन्धुओ!
करने के लिए परमात्मा से तादात्म्य जोड़ने का अद्भुत योग है।
इससे न केवल साधक का मनोबल दृढ़ होता है, उसकी आस्था नाम जप से मन को प्रशिक्षित करने हेतु मनोविज्ञान शास्त्र में
परिपक्व होती है, उसके विचारों में विवेकशीलता और समर्पणवृत्ति चार स्तर बताए हैं, १. लर्निंग, २. रिटेन्सन, ३. रिकॉल और ४.
आती है। बुद्धि भी निर्मल एवं पवित्र बनती है। जप से मनुष्य रिकाम्बिशन! लर्निंग का अर्थ बार-बार स्मरण करना, दोहराना है।
भौतिक ऋद्धि-सिद्धियों का स्वामी बन जाता है, यह इतना महत्वपूर्ण इस भूमिका में पुनरावृत्ति का आश्रय लिया जाता है। दूसरी परत
नहीं, उससे भी बढ़कर है, आध्यात्मिक समृद्धियों का स्वामी बनना। है-रिटेंसन अर्थात्-प्रस्तुत जानकारी या कार्यप्रणाली को स्वभाव का
5 जपयोग एक ऐसा विधान है, जिससे मनुष्य प्रेरणा प्राप्त कर अंग बना लेना। तीसरी भूमिका है-रिकॉल, उसका अर्थ है-भूतकाल
भव-बन्धनों से मुक्त होने की दिशा में तीव्रता से प्रयाण कर सकता की उस संबंध में अच्छी बातों को पुनः स्मृतिपथ पर लाकर सजीव
है, साथ ही वह व्यक्तिगत जीवन में शांति, कषायों की उपशांति, कर लेना। चौथी भूमिका है-रिकाम्बिशन अर्थात् उसे मान्यता प्रदान
वासनाओं से मुक्ति पाने का अधिकारी हो जाता है। कर देना, उसे निष्ठा, आस्था एवं विश्वास में परिणत कर देना। जप साधना में इन्हीं सब प्रयोजनों को पूरा करना पड़ता है। व्यक्ति नाम जप के विषय में विविध मनीषियों के उद्गार को समष्टि सत्ता से अथवा आत्मा को परमात्मसत्ता से जोड़ने के भारत के जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों धर्म परम्पराओं में जप लिए मन को बार-बार स्मरण दिलाना, उसे अपने स्वभाव में बुन । को अपनाया गया है। सूफी मत एवं कैथोलिक मत वाले इसे
की आस्था
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