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________________ 99- 6000 Soht0900200.00000 Ke 00000000000 | श्रद्धा का लहराता: समन्दर १०३००००० 190909 भावभीनी श्रद्धार्चना सद्गुणों का समुद्र था, उस समुद्र का वर्गीकरण करना कठिन ही नहीं, अति कठिन है। उनके विराट् व्यक्तित्व रूपी सिन्धु को शब्दों : -चुन्नीलाल कसारा के बिन्दु में बांधना बहुत ही कठिन है। उपाध्याय पू. गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. के दर्शनों का संत का वेश धारण करने वाले व्यक्तियों की इस संसार में सौभाग्य सन् १९९० में हुआ जब सादड़ी (मारवाड़) का यशस्वी कमी नहीं, अकेले भारत में छप्पन लाख से भी अधिक साधु हैं, । वर्षावास संपन्न कर आप पाली की ओर पधार रहे थे। मैं सपरिवार ऐसा मैंने सुना है। इतनी साधुओं की फौज किन्तु वे केवल वेश से । औरंगाबाद से दर्शनार्थ ढालोप उपस्थित हुआ। रात्रि के ८.00 बजे साधु हैं, पर उनका आचार और विचार समुन्नत नहीं है, वे स्वयं का समय हो गया, उपाध्यायश्री ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे, उस इन्द्रियों के गुलाम हैं, वासना के दास हैं और व्यसनों के चंगुल में समय उपाचार्यश्री देवेन्द्र मुनि जी म. से मेरा एक घण्टे तक विविध फंसे हुए हैं जो स्वयं अंधकार में भटकते हैं, वे दूसरों को क्या विषयों पर वार्तालाप हुआ। ९.00 बजे उपाध्यायश्री जब ध्यान 900 प्रकाश दे सकते हैं। जिस संत में आध्यात्मिक तेज नहीं, और जो मुद्रा से निवृत्त हुए, उनका मंगल पाठ सुनकर हम लोग जयपुर के 500 भौतिकता के दल-दल में फँसा हुआ है, वह केवल नाम का संत है, लिए प्रस्थित हो गए। ध्यान का मंगल पाठ सुनकर मेरे मन को काम का नहीं। अंधकार को नष्ट करने के लिए हजार-हजार सूर्यों अपूर्व आनंद की उपलब्धि हुई। जोधपुर से अपने आवश्यक कार्य 800 की आवश्यकता नहीं होती, एक ही सूर्य सम्पूर्ण विश्व को । से निवृत्त होकर मैं पुनः उसी रास्ते में औरंगाबाद की ओर बढ़ आलोकित कर सकता है, वही स्थिति संत की है। एक संत जो । रहा था, मैंने पुनः उपाध्यायश्री के दर्शन किए। प्रथम दर्शन में ही संतत्व से युक्त है, वह आलोक प्रदान कर सकता है। मुझे अनुभूति हुई कि उपाध्यायश्री एक पहुँचे हुए महापुरुष, सिद्ध परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. सा. जपयोगी हैं। उन्हें यह सिद्धि प्राप्त हो गई है। किसी व्यक्ति के ऐसे ही निर्मल संत थे। उनका ओजस्वी व्यक्तित्व, तेजस्वी कृतित्व । जीवन में कोई समस्या हो तो वे अपने विशिष्ट ज्ञान के प्रभाव से 90.90 को निहार कर किसका हृदय श्रद्धा के नत नहीं होता। गुरुदेव के बिना पूछे ही बता देते और साथ ही उस समस्या का समाधान किस 503 दर्शन हमने बहुत ही लघुवय में किए। मेरे गांव में जो अरावली की प्रकार होगा, उपाय भी बताते। उपाध्यायश्री का उपाय यही था कि Dia पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है, बड़े गुरुदेव महास्थविरश्री वे साधक को योग की प्रेरणा देते और जप के प्रभाव से वह व्यक्ति ताराचंद्रजी म. और गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्करमुनिजी म. का उपाधि से मुक्त हो जाता। hole आगमन होता रहता और गुरुदेव हमारी व्यवसाय केन्द्र अन्दर मेरे हृदय पर उपाध्यायश्री की साधना की अमिट छाप पड़ी विरार, बम्बई में भी कई बार पधारे। गुरुदेवश्री के प्रति हमारे जब उपाध्यायश्री जोधपुर पधारे तब मैं सुवालाल जी सा. छल्लाणी अन्तमानस में अगाढ़ आस्था है और वह आस्था निरन्तर संपर्क में आदि श्रद्धालुगण उपाध्यायश्री के दर्शन हेतु जोधपुर पहुंचे और त आने पर सतशाखी के रूप में बढ़ती ही चली गई। उसके पश्चात् पीपाड़ चातुर्मास में भी हमने दो बार उपाध्यायश्री के _मैंने जीवन में गुरुदेवश्री के सैंकड़ों बार दर्शन किए हैं, उनके । दर्शन किए। मेरा परम सौभाग्य रहा कि श्री देवेन्द्रमुनि जी म. द्वारा चरणों में बैठने का भी मुझे सौभाग्य मिला है, ज्यों-ज्यों मैंने लिखित "कर्म विज्ञान" के दूसरे भाग के प्रकाशन का सौभाग्य मुझे गुरुदेवश्री के दर्शन किए त्यों-त्यों मेरी आस्था गुरुदेवश्री के प्रति मिला। कर्म विज्ञान के प्रथम भाग को पढ़कर मेरा मन बहुत ही बढ़ती चली गई, गुरुदेवश्री गुणों के पुंज थे, उनके गुणों का वर्णन {आल्हादित हुआ और मैंने आचार्यश्री से निवेदन किया कि इसके करना हमारी शक्ति से परे है, श्रद्धेय गुरुदेवश्री के चरणों में मैं जितने भी भाग निकलें उसके प्रकाशन का लाभ मुझे मिलना चाहिए भाव-भीनी श्रद्धार्चना समर्पित करता हूँ। हे गुरुदेव आप महान् थे और मेरी प्रार्थना को आचार्यश्री ने और उपाध्यायश्री ने सम्मान और सदा महान् बने रहें, मेरी भाव-भीनी श्रद्धार्चना स्वीकार करें दिया। आचार्यश्री और उपाध्यायश्री की कितनी कृपा है, यह सहज FedEO क्योंकि मैं आपका परम भक्त और उपासक रहा हूँ। ही इससे परिज्ञात होता है। 90590000 उपाध्यायश्री के प्रति हमारी निष्ठा ज्यों-ज्यों दर्शन करते रहे, 16000 महान संत उपाध्यायश्री त्यों-त्यों बढ़ती ही गई। हमने सोजत, सिवाना और उदयपुर आदि bete अनेक स्थलों पर उपाध्यायश्री के तीन वर्षों में कई बार दर्शन किए -डॉ. चम्पालाल देशरड़ा और उनके चरणों में बैठकर उनसे वार्तालाप करने का भी अवसर (औरंगाबाद) मिला। परम श्रद्धेय महामहिम उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर मुनि जी म. प्रायः यह माना जाता है कि संत अपने धुन के धनी होते हैं श्रमणसंघ की एक जगमगाती ज्योति थे, जिनका जीवन सूर्य के | पर मैंने देखा कि उपाध्यायश्री बहुत ही सरलमना थे। उनका हृदय समान तेजस्वी और चन्द्रमा के समान सौम्य था। उनका जीवन | स्फटिक की तरह निर्मल था, तनिक मात्र भी उनमें अहंकार नहीं Dad 3000.0:0-0. RESEDieternationPOORoc POETRPARAJPersgha-use pyD 30000 more 40000.00
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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