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संस्था से, ग्राम से और किसी वस्तु से लगाव नहीं था। उनका मुख्य रूप से लगाव था, साधना के प्रति, उनमें जप की रुचि गजब की थी और वह जप भी वे नवकार महामंत्र का करते थे और उस जाप के कारण उनकी वाणी सिद्ध हो चुकी थी, उनके मुखारबिन्द से जो भी बात निकलती वह पूर्ण सिद्ध होती थी। गुरुदेवश्री के स्वर्गवास के पश्चात् में आचार्यश्री देवेन्द्रमुनिजी म. के दर्शन हेतु भीलवाड़ा पहुँचा, वार्तालाप के प्रसंग में आचार्यश्री ने कहा कि | गुरुदेवश्री की डायरी जो प्राप्त हुई है, उसमें उन्होंने सन् १९७७ में जब बैंगलोर चातुर्मास था, तब लिखा था कि मेरी उम्र ६६ वर्ष और १६ वर्ष की अवशेष है और यह बात पूर्णरूप से सत्य सिद्ध हुई। इससे हम समझ सकते हैं कि गुरुदेवत्री का अतीन्द्रिय ज्ञान कितना गजब का था, उन्हें इतने वर्ष पूर्व अपने जीवन का अनुभव हो गया था।
गुरुदेवश्री के अनेक संस्मरण मेरी स्मृति में चमक रहे हैं, गुरुदेवश्री की असीम कृपा हमारे परिवार पर रही, हमारा हर परिवार का सदस्य उनके प्रति सर्वात्मना समर्पित रहा है। उनकी पावन पुण्य स्मृति सदा बनी रहे, और उनके बताए हुए कार्य को मैं पूर्ण रूप से सम्पन्न कर सकूँ यह हार्दिक इच्छा है और अपने जीवन के अनमोल क्षण उनके नाम से निर्मित कॉलेज की सेवा के लिए मैं पूर्णतया समर्पित हो जाऊँ और गुरुदेवश्री की यशः गाया को द्गिदिगन्त में फैला सकूँ, यही उस महागुरु के चरणों में हार्दिक श्रद्धार्चना |
परम उपकारी गुरुदेव
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नोट मांगीलाल सोलंकी (पूना) लक
सन् १९६९ में श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर मुनि जी म. का वर्षावास साधना सदन, पूना में हुआ। गुरुदेवश्री के मंगलमय प्रवचनों से पूना में एक धर्म की नई लहर व्याप्त हो गई। लोगों को लगा कि मारवाड़ से पधारे हुए संत भगवन्तों के प्रवचन कितने प्रभावशाली होते हैं, साधना सदन का विशाल हॉल भी छोटा पड़ने लगा। श्रद्धेय उपाध्यायश्री की सादड़ी क्षेत्र पर अपार कृपा रही उन्हीं की प्रेरणा से सादड़ी में सन् १९५२ में यशस्वी संत सम्मेलन हुआ और उसमें श्रमणसंघ का निर्माण हुआ। पूना में गुरुदेवश्री का यह वर्षावास अपनी शानी का वर्षावास था क्योंकि हम लोग वर्षों से महाराष्ट्र में रहने लग गए। मारवाड़ में विशेष प्रसंगों पर ही जाने आने का प्रसंग था पर इस वर्षावास में गुरुदेवश्री के निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। गुरुदेवश्री की ध्यान-साधना ने जन-मानस को अत्यधिक प्रभावित किया। हमने स्वयं ने देखा कि रोते और बिलखते हुए श्रद्धालुगण आते और श्रद्धा से मंगलपाठ श्रवण कर हँसते हुए विदा होते। गुरुदेवश्री की
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
साधना का चमत्कार देखकर नास्तिक भी आस्तिक होने लगे, जो युवक कभी नहीं आते थे वे गुरुदेवश्री के संपर्क में आने लगे।
मेरा प्रथम परिचय गुरुदेव श्री से उसी वर्ष सन् १९६९ में हुआ। गुरुदेवश्री का सन् १९७० का वर्षावास दादर बम्बई में हुआ और १९७१ का दादाबाड़ी बम्बई में हुआ। उन दोनों वर्षावासों में अनेकों बार गुरुदेवश्री के दर्शनों का सौभाग्य मुझे और मेरे परिवार को मिलता रहा, गुरुदेवश्री के चरणों में बैठकर हमें अपार आनंद की अनुभूति हुई। सन् १९७५ का वर्षावास हमारी प्रार्थना को सम्मान देकर सादड़ी-सदन में हुआ। उस वर्ष गुरुदेवश्री का वर्षावास रायचूर करने का था पर हमारी प्रार्थना ने चमत्कार दिखाया और गुरुदेवश्री का वर्षावास सादड़ी सदन में हुआ। इस वर्षावास में सादड़ी सदन के सभी आबाल-वृद्धों में जो अपूर्व उत्साह देखने को मिला वह अद्भुत था।
गुरुदेवश्री वहाँ से रायचूर, बैंगलोर, मद्रास और सिकन्दराबाद का वर्षावास सम्पन्न कर राजस्थान पधारते समय पूना पधारे और पन्द्रह दिन से अधिक समय पूना में विराजे। राजस्थान दिल्ली होकर पुनः राजस्थान पधारे। इधर आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि जी म. सा. ने पूना में संत सम्मेलन का मंगलमय आयोजन किया और गुरुदेवश्री का पूना पधारना हुआ और गुरुदेवश्री की असीम कृपा का ही सुफल था कि गुरुदेवश्री के चरणों में हमने प्रार्थना की और मेरी प्रार्थना को सम्मान देकर मेरे नव्य भव्य मकान में गुरुदेवश्री लगभग एक सप्ताह तक विराजे ।
गुरुदेवश्री की दीक्षा जयंती मनाने का भी हमें अवसर मिला । सन् १९९० में गुरुदेवश्री का वर्षावास हमारी जन्मभूमि सादड़ी में हुआ ।
इस वर्षावास में लगभग छः महीने का समय गुरुदेवश्री की सेवा में रहने का सौभाग्य मिला। मैंने और मेरे परिवार ने गुरुदेवश्री के बीसों चमत्कार देखे। गुरुदेवश्री जैसे पवित्र आत्मा ढूँढ़ने पर भी मिलना बहुत ही कठिन है। वे महान् जपयोगी थे और जप करने से उन्हें अनेक लब्धियाँ प्राप्त हो गयी थीं। उनकी वाणी सिद्ध हो गई थी। उनके मुखारबिन्द से निकले हुए शब्द पूर्ण सिद्ध होते थे।
गुरुदेवश्री के स्वर्गवास के समय भी मैं उदयपुर में ही था, उनका दिव्य संधारा देखकर मैं स्तंभित था, वे कितने पुण्यवान थे कि स्वर्गवास के समय श्रमणसंघ के दो सौ से अधिक साधु-साध्वी उनकी सेवा में थे हमारे परिवार पर उनकी असीम कृपा रही है। मैं अपनी ओर से और अपने परिवार की ओर से गुरुदेवश्री के चरणों में श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ।
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यदि सोने को तपा दिया जावे तो कुन्दन बन जाता है। -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
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