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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । RDC था। इतने महान् संत होते हुए भी अहंकार और ममकार से वे दूर जाता है। उनकी तेजोमय स्मृति की रेखाएँ मिटाए नहीं मिटतीं और
थे। दूसरी विशेषता यह थी, वे बहुत ही दयालु प्रकृति के थे। किसी भुलाने से भुलाई नहीं जा सकतीं। तभी व्यक्ति को कष्ट से उत्पीड़ित देखते तो उनका हृदय दया से प्रदेश उपाध्याय राज्य रामटेव श्री पुष्कर मनि जी म के मैंने द्रवित हो उठता था और वे दया करके उसे सदा/सर्वदा दुःख से । कब टा
दा/सवदा दुःख स कब दर्शन किए वह तिथि तो पूर्ण स्मरण नहीं है। हाँ सन् १९८७ मुक्त होने का उपाय बताते थे।
में पूना संत सम्मेलन था। हम औरंगाबाद से संघ लेकर उस उपाध्यायश्री जी की विशेषता थी कि वे बहुत ही कम बोलते सम्मेलन में उपस्थित हुए थे, उस समय उपाध्यायश्री के दर्शन का
थे और जो बोलते वह बहुत सारपूर्ण और जीवनोत्थान के लिए सौभाग्य मिला पर अत्यधिक भीड़ भरा वातावरण था, उसके PR प्रेरणादायी होता था। उनके छोटे-छोटे और सरल वाक्य जो उनके। पश्चात् उपाध्यायश्री का महामहिम आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषि म कर हृदय से निकलते थे, दूसरे के हृदय को झकझोर देते थे।
जी म. के नेतृत्व में अहमदनगर में वर्षावास हुआ। उस वर्षावास में 888 उपाध्यायश्री परम सौभाग्यशाली थे, इन तीन वर्षों में उन्होंने ।
अनेकों बार जाने का अवसर मिला, दर्शन भी किए किन्तु PRODP6 तन की व्याधि सहन की किन्तु उनके चेहरे पर वही मधुर मुस्कान ।
वार्तालाप आदि नहीं हो सका। 90P और ताजगी देखने को मिलती थी। १०३ डिग्री ज्वर होने पर भी } अहमदनगर वर्षावास सम्पन्न कर उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि म. D कभी भी उनके चेहरे पर खिन्नता हमने नहीं देखी।
अपने शिष्य मण्डल सहित औरंगाबाद पधारे। औरंगाबाद में 2990 उदयपुर चद्दर समारोह पर औरंगाबाद से हम ट्रेन लेकर पहुंचे।
उपाध्यायश्री का प्रथम बार पदार्पण हुआ। जनता में अपार उत्साह LODDथे, वह ऐतिहासिक प्रसंग दर्शनीय था। लाखों जनमेदिनी के बीच
था। वह उत्साह प्रेक्षणीय था। उपाध्यायश्री के मंगलमय प्रवचन, SD उपाध्यायश्री के प्रधान अन्तेवासी देवेन्द्रमुनि जी म. को श्रमणसंघ
उनके मंगल पाठ में अपार भीड़ समुपस्थित होती। हमने देखा के तृतीय पट्टधर की चादर समर्पित की गई थी। यह चादर स्नेह,
उपाध्यायश्री एक निःस्पृह संत हैं, उनके सामने चाहे धनवान 2 सद्भावना और संगठन की पावन प्रतीक थी। इसलिए इस समारोह
पहुँचता चाहे गरीब, वे धनवानों से भी अधिक गरीब व्यक्तियों को में एक लाख से भी अधिक व्यक्ति भारत के विविध अंचलों से
प्यार करते। उनके मगंल पाठ को श्रवण कर सैंकड़ों व्यक्ति आधि, B पहुँचे। इस समारोह को देखकर हमारा हृदय बांसों उछलने लगा।
व्याधि और उपाधि से मुक्त हो जाते। बड़ा चमत्कारिक था उनके 12 धन्य है ऐसे तेजस्वी गुरु, जिन्होंने अपने शिष्य को इस उच्चतम पद
ध्यान का मंगलपाठ। 20P पर आसीन करने के लिए कितना जीवन खपाया था। शिक्षा दीक्षा औरंगाबाद से विहार करने के बाद रास्ते में प्रायः हर स्थान TOS के लिए कितना पुरुषार्थ किया था। वे सच्चे कलाकार थे, जिन्होंने } पर दर्शनार्थ हम लोग पहुँचते रहे और उपाध्यायश्री की असीम
अपने शिष्य को आराध्य देव के रूप में जन-जन की आस्था का कृपा हमारे पर रही। उपाध्यायश्री का सन् १९८८ इन्दौर वर्षावास केन्द्र बनाया।
सम्पन्न हुआ, उस वर्ष औरंगाबाद से सात बसें लेकर हम लोग D D श्रद्धेय उपाध्यायश्री ने चद्दर समारोह के पश्चात् पंडित-मरण
वर्षावास की विनती के लिए पहुँचे किन्तु उपाध्यायश्री को राजस्थान ADD को वरण किया। हम लोग पुनः औरंगाबाद से आपके चरणों में
की ओर बढ़ना था और हमारी इच्छा थी कि उपाध्यायश्री का पहुँचे और अंतिम दर्शन कर अपने आपको भाग्यवान अनुभव
वर्षावास औरंगाबाद हो। औरंगाबाद संघ का प्रत्येक सदस्य a go करने लगे। उपाध्याय जैसी विमल विभूतियाँ ढूँढ़ने पर भी मिलना
उपाध्यायश्री जी के वर्षावास हेतु प्रयत्नशील था। हमारा प्रबल त कठिन हैं, वे वस्तुतः महान् थे।
पुरुषार्थ भी था, सफलता प्राप्त नहीं हुई।
उपाध्यायश्री जी की सेवा में तीन-चार महीने के बाद कोटि-कोटि वन्दन-अभिनन्दन
औरंगाबाद के हम श्रद्धालुगण पहुँचते रहे। इन चार वर्षों में
उपाध्यायश्री के बीसों बार दर्शन करने का सौभाग्य मिला, -सुवालाल संदीपकुमार छल्लाणी
जितनी-जितनी बार हमने दर्शन किए, हमें अपार आनंद की (औरंगाबाद)
अनुभूति हुई। उपाध्यायश्री की असीम कृपा सदा हमारे पर रही है,
उनके गुणों का जितना वर्णन किया जाए उतना ही कम है। वे जप 30 जीवन में प्रतिपल प्रतिक्षण अनेक व्यक्तियों से हमारा योगी थे, नियमित समय पर उनकी जप-साधना चलती रहती थी। हा साक्षात्कार होता है। चलचित्र की तरह अनेक व्यक्ति जीवन में आते जप-साधना के कारण उन्हें अपार सिद्धि प्राप्त हो गई थी। वे किसी OF हैं और चले जाते हैं पर उनके मिलन और सम्मिलन में किसी को दूर से देखकर ही समझ जाते थे कि वह व्यक्ति किस प्रकार
प्रकार का स्थायित्व नहीं होता पर कुछ ऐसे चुम्बकीय आकर्षण की व्याधि से संत्रस्त है, किस प्रकार उसके मानस में चिन्ता है और SODP संपन्न व्यक्ति होते हैं, जो अपनी अनूठी छाप मन और मस्तिष्क पर वे उसका उपाय भी उसी क्षण उसे बता देते थे, जप करो और जप DD छोड़ जाते हैं, उनका निवास हमारे अन्तर्मानस के सिंहासन पर हो करने से सदा-सदा के लिए समस्या का समाधान हो जायेगा।
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