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________________ लिखित कक्षा चार-पाँचकी अपनी अभ्यास पुस्तिकाओंको भी बड़े ध्यानसे सुरक्षित रक्खा हुआ है। उस समयके लेख, पद, कवित्त और निबन्ध भी ज्योंके त्यों सुरक्षित पड़े हैं। जो चीज एक बार आपके हस्तगत हो जाती है, उसका अकारण त्याग आपको सह्य नहीं है। नाहटाजी स्वावलम्बी हैं। हर काम अपने हाथसे करनेके आदी हैं। उन्हें काम करनेमें गौरवकी अनुभूति होती है । पुस्तकालयका छोटा-मोटा साधारण-असाधारण काम स्वयं ही सम्पन्न करते हैं और घरबाजारका भी आप ही निबटाते हैं। श्री नाहटाजीकी यात्रा 'कष्टयात्रा' होती है । श्री भंवरलालजी नाहटाके शब्दों में "आपकी रेल मुसाफिरी प्रायः कष्टकर होती है; क्योंकि पहलेसे रिजर्वेशन कराते नहीं और कार्यव्यस्ततासे गाड़ी छूटते-छूटते जाकर पकड़ते हैं । भागते दौड़ते जीमे और तुरन्त चौविहार किया। आपकी आवश्यकताएँ अल्प है; अतः मुसाफिरीमें इने-गिने कपड़े बीडिंगमें डालते हैं और उसमें भी भार अधिकतर पुस्तकोंका ही रहता है। मुसाफिरीमें पेटी रखते नहीं; यदि कुली नहीं मिला तो स्वयं ही बगलमें बीडिंग डालकर चल पड़ते हैं।" कहनेकी आवश्यकता नहीं कि हमारे चरितनायक श्री अगरचन्दजी नाहटा सरस्वती और लक्ष्मीके वरद-पुत्र हैं। उनके जीवनका रस अध्यात्मरस है। वे अत्यन्त धर्मभीरु लेकिन चारित्र्यपालनमें वज्रसे भी कठोर है। श्रम और स्वावलम्बन उनका जीवट है। वे सव्ययी, धर्मधनी, निर्भय, स्मतिशील, प्रेरक, और समन्वलशील उदार महापुरुष हैं । ऐसे पुरुषोंके अवतरणसे ही धराका नाम वसुन्धरा सार्थक होता है । श्री नाहटाजी भरे-पूरे परिवारके मुखिया हैं । आपके पाँच लड़कियां और दो लड़के हैं । सबसे बड़ी लड़की जेठी बाई है। शेष लड़कियोंके नाम हैं-शान्तिबाई, किरणबाई, संतोषबाई और कान्ताबाई । धर्मचन्द बड़े पुत्र और विजयचन्द छोटे पुत्र हैं । नाहटाजीने अपनी सन्तानको सुपठित और सुशिक्षित किया है। कान्ता और धर्मचन्द दशम कक्षोत्तीर्ण हैं । विजयचन्दने बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण की है। आपके एक पोता और एक्कीस नाती-नातिने हैं । आपकी वंशावली पृष्ठ २३ से २५ पर। विद्वद्वरेण्य श्री अगरचन्दजी नाहटाके व्यक्तित्व में ही उनका कृतित्व सन्निहित है। उन्होंने अनेकरूप होकर माँ सरस्वतीकी सेवा की है और करनेमें संलग्न हैं । श्री नाहटाजीने हजारों अज्ञात कवियोंको और बीस हजारसे अधिक पाण्डुलिपियोंको सारस्वत संसारके सम्मुख प्रस्तुत किया है। जो सरस्वती छिन्नभिन्न स्थितिमें जीर्णशीर्ण होकर अन्धकारावृत थी; उसे श्री नाहटाने स्वकरस्पर्शसे स्वस्थ-शुद्ध बनाकर सार्वजनिक एवं सार्वजनीन बना दिया है। उन्होंने अनेक ग्रन्थोंकी सारगर्भित एवं प्रमाणपुष्ट भूमिका-प्रस्तावनाएँ लिखकर नयेसे नये तथ्योंका उद्घाटन किया है। श्री नाहटाकी दृष्टि शोधमुखी है, इसलिए उनके द्वारा लिखित किसी भी लेखमें आप अधिकसे अधिक नये और अश्रुतपूर्व निष्कर्ष अवश्य प्राप्त करेंगे। श्री नाहटाजी शोधकर्ता तो हैं ही; वे शोधसहायक भी हैं। शोध करनेवाले जिज्ञासुओंकी हर संभव सहायता हेतु वे सदैव तत्पर रहते हैं । वे अपने विस्तृत अध्ययन, गहन चिन्तन और स्पष्ट निर्णायक प्रतिभासे हजारों छात्रों और विद्वानोंको लाभ पहँचा चुके हैं और पहुँचाते ही जा रहे हैं । इस पवित्र कर्ममें न उन्हें आलस्य घेरता है और न तन्द्रा । निःशुल्क भोजन और आवासकी व्यवस्था भी प्रायः नाहटाजीकी ओरसे की जाती है। शोधछात्रोंके लिए श्री अभय जैन ग्रंथालयकी पुस्तकें तो आरक्षित हैं ही, वे आवश्यकता पड़नेपर इतर व्यक्तियों अथवा हस्तलिखित पुस्तकालयोंसे अपने दायित्वपर पुस्तकें भी दिलाते हैं और इस प्रकार 'शोध-सहायक' के स्वरूपका भी सुन्दर निर्वाह करते हैं । जीवन परिचय : ५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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