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किसी कविने ठीक कहा है कि संसारमें बहुत व्यसन हैं, लेकिन श्रेष्ठ व्यसन तो केवल दो हैं, प्रथम विद्या व्यसन और द्वितीय प्रभुभक्तिव्यसन ।
व्यसनानि सन्ति बहुधा, व्यसनद्वयमेव केवलं व्यसनम् ।
विद्याव्यसनं व्यसनं, अथवा हरिपादसेवनं व्यसनम् ॥ _हमारे चरित-नायक श्री अगरचन्द जी नाहटाका विद्या-व्यसन उच्चकोटिका है। वे प्रतिदिन दस घंटे पढ़ते-लिखते और मनन-चिन्तन करते हैं। उनके विद्या-व्यसनका इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि उन्होंने स्वश्रमसे 'श्री अभय जैन ग्रन्थालय' जैसी विश्वविश्रुत संस्थाको जन्म देकर पल्लवित, पुष्पित और फलित किया। इसमें लगभग चालीस हजार हस्तलिखित दुर्लभ ग्रन्थोंका संग्रह है और इतनी ही मुद्रित पुस्तकोंका । इसका समस्त श्रेय आपके विद्या-व्यसनी व्यक्तित्वको है।
श्री शंकरदान नाहटा कलाभवनमें आज तीन हजार दुष्प्राप्य चित्र, सैकड़ों सिक्के, हजारों प्राचीन मूत्तियाँ और कलाकृतियाँ सुरक्षित एवं संगृहीत हैं। इसका अनुमानित मूल्य दस लाखसे अधिक है। इस गौरवपूर्ण संग्रहालयको प्रथम श्रेणीके संग्रहालयोंकी श्रेणीमें बिठाना आपके विद्याव्यसनका ही सुफल है।
. आपके विद्यावैभवसे प्रभावित होकर देशकी अनेक संस्थाओंने आपका सम्मान किया है। जैन सिद्धान्त भवन, आराने आपको 'सिद्धान्ताचार्य', जिनदत्तसूरिसंघने 'जैन इतिहास रत्न', दी इण्टरनेशनल अकादमी जैन विजडम एण्ड कल्चर, आराने 'विद्यावारिधि' माणिकल्री अष्टम शताब्दी समारोह पर 'संघरत्न' और राजस्थान भाषा प्रचार सभा, जयपुरने 'राजस्थानी साहित्य वाचस्पति' जैसी उच्चस्तरीय उपाधिसे आपको विभूषित किया है। देशकी अनेक संस्थाओंने आपको अभिनन्दित किया है। कुछ अभिनन्दन पत्र गद्यमें तो कुछ पद्यमें । अभिनन्दन पत्रोंको पढ़नेसे यह प्रभाव पड़ता है कि आपके विद्याव्यसनी स्वरूपने आपके प्रशंसकों को कितना गहरा प्रभावित किया है। मैं तो यह कहने की स्थितिमें हूँ कि शब्दावलीके माध्यमसे अपने भावोंको आपके चरणोंमें समर्पित करने वाले विद्यानुरागी-गणग्राहक-समर्पक आपसे अभिभूत है, आपकी सरस्वतीसे अभिभूत हैं और आपके विद्याव्यसनसे अभिभूत है।
४० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रथ
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